Vijay Diwas: आज ही के दिन 90 हजार पाकिस्तानी सैनिकों ने डाले हथियार, जन्मा था बांग्लादेश
नई दिल्ली। (Vijay Diwas 2020 16 december 1971) 16 दिसम्बर 1971, एक न भूली जा सकने वाली तारीख। ये वो दिन था जब भारत ने सिर्फ 13 दिनों में पाकिस्तान को अपने सामने घुटनों पर ला दिया था। 13 दिन पहले जिस पाकिस्तान ने खुद को जाबांज साबित करते हुए भारत पर हमला बोल दिया था उसी का एक जनरल 1971 में आज ही के दिन भारत के जनरल को अपनी पिस्टल सौंपकर सरेंडर कर रहा था। पाकिस्तान के उस जनरल का नाम था जनरल केके नियाजी और उसके साथ ही पाकिस्तानी सेना के 90 हजार सैनिक सरेंडर कर रहे थे। आधुनिक विश्व के इतिहास में शायद ही ऐसा नजारा किसी ने देखा हो जब जनरल और उसके हजारों जवान खुले मैदान में सरेंडर कर रहे हों। इस हार ने पाकिस्तान का मान चूर-चूर कर दिया था। इसके साथ ही भारत के पूर्व में बांग्लादेश नाम के एक नए देश का जन्म हुआ। तब से आज तक इस दिन को विजय दिव (Vijay Diwas) के रूप में मनाते हैं लेकिन ये कहानी बस इतनी नहीं है।
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शुरू में भारत नहीं चाह रहा था युद्ध
भारत का शुरू से इरादा पूर्वी पाकिस्तान में हस्तक्षेप का कभी नहीं रहा। इसकी वजह पाकिस्तान खुद था जिसके चलते भारत को हस्तक्षेप के लिए सेना उतारनी पड़ी। जब सेना उतरी तो वह इतिहास बन गया। आजादी के साथ ही भारत दो हिस्सों में बंटा भारत और पाकिस्तान। पाकिस्तान को दो हिस्से मिले पश्चिमी पाकिस्तान (वर्तमान पाकिस्तान) और पूर्वी पाकिस्तान। यही पूर्वी पाकिस्तान आगे चलकर बांग्लादेश बना। दरअसल पूर्वी पाकिस्तान था तो पाकिस्तान का हिस्सा ही लेकिन यहां बंगाली मूल के लोग थे। इनकी अपनी संस्कृति अपनी भाषा थी। पाकिस्तान को ये रास नहीं आया। पाकिस्तान को लगता था कि पूर्वी पाकिस्तान को पूरी तरह से बदलना होगा। इसके लिए पाकिस्तान ने लोगों को समझाने की जगह सेना का सहारा लिया। उसके बाद सेना ने पूर्वी पाकिस्तान में दमन का चक्र शुरू किया।
पीएम इंदिरा गांधी ने बताई थी युद्ध की वजह
पाकिस्तानी सेना के दमन का पूर्वी बांग्लादेश के लोगों ने विरोध किया तो उन्हें भारत का एजेंट कहकर मारा जाने लगा। भारत के साथ मिले होने के शक में पाकिस्तान आर्मी ने पूर्वी पाकिस्तान में सर्च अभियान चलाया। लोगों को घरों से निकालकर मौत के घाट उतारा गया। ढाका में छात्रों पर गोलियां बरसाई गईं। हजारों महिलाओं के साथ बलात्कार किया गया और उन्हें मार दिया गया।
आखिरकार पाकिस्तान के अत्याचारों से ऊबकर पूर्वी पाकिस्तान में मुक्तिवाहिनी संगठन बना। इसे बनाने वाले पूर्वी पाकिस्तान के वे लोग थे जो कभी पाकिस्तान सेना में काम कर चुके थे। अब तक भारत ने इस सबसे दूरी बना रखी थी इसकी वजह भी थी कि पाकिस्तान को अमेरिका का समर्थन प्राप्त था लेकिन अब आगे चलकर भारत के लिए खुद को तटस्थ बनाए रखना आसान नहीं था। लाखों शरणार्थी पूर्वी पाकिस्तान से भागकर भारत में पहुंच चुके थे और इनकी संख्या बढ़ती ही जा रही थी।
उस समय प्रधानमंत्री रहीं इंदिरा गांधी ने बाद में एक विदेशी समाचार संस्थान को दिए एक इंटरव्यू में कहा था "भारत के सामने कोई विकल्प नहीं था। लाखों लोग दूसरे देश से जान बचाने के लिए भागकर हमारे यहां आ गए थे। हमने दुनिया के नेताओं से कहा कि इस समस्या का हल कीजिए। हमारे पास और शरणार्थियों को रख पाने की क्षमता नहीं है। हमारे बगल की जमीन पर नृशंस हत्याए की जा रही थीं। मासूमों का खून बहाया जा रहा था। हम चुप नहीं रह सकते थे।"
भारत की पहले ही हमला करने की थी योजना
आखिरकार भारत ने मुक्ति वाहिनी को अपना समर्थन देने की घोषणा कर दी। इसके बाद पाकिस्तान तिलमिला गया और 3 दिसम्बर को भारत पर आक्रमण कर दिया। यह तय था कि आज नहीं तो कल युद्ध होना था इसलिए भारत पहले से ही तैयार बैठा था और जवाबी कार्रवाई करते हुए पूर्वी पाकिस्तान में घुस गया। यहां एक सवाल उठता है कि अगर पाकिस्तान हमला न करता तो युद्ध कब तक टाला जा सकता था ?
इसका जबाव उस समय भारतीय सेना के पूर्वी कमान स्टॉफ ऑफिसर जनरल जेएफआर जैकब की किताब में मिलता है। जनरल जैकब ही भारतीय सेना के वह मेजर जनरल थे जिन्होंने पाकिस्तान के आत्मसमर्पण कराने की पूरी जिम्मेदारी निभाई थी। वह उस ऐतिहासिक पल के गवाह थे जब जनरल नियाजी ने भारत के अफसर जनरल अरोड़ा के सामने हथियार डाले। जनरल जैकब ने लिखा था कि भारतीय सेना की योजना पहले ही हमला करने की थी। आर्मी चीफ जनरल सैम मॉनेकशॉ ने जैकब से अप्रैल में ही पूर्वी पाकिस्तान में घुसने के लिए कहा था। तब जनरल जैकब ने ही उन्हें समझाया था कि जल्द ही बंगाल में मानसून आने वाला है और उनके पास जरूरी सामान नहीं है। अगर सेना इस वक्त घुसी तो बारिश के चलते वहीं फंस जाएगी। सेना के इस हालात को मॉनेकशा ने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को बताया। समय को टालने के लिए प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को समझाने की बात मॉनेकशा ने भी एक इंटरव्यू में कही थी। मॉनेकशा ने कहा था कि मिसेज गांधी चाहती थीं कि हम जल्दी हमला करें लेकिन मैने उन्हें समझाया कि अभी सेना तैयार नहीं है। इसके बाद इस हमले को मानसून खत्म होने तक टाला गया।
भारत से पहले ही पाकिस्तान ने कर दिया हमला
जनरल जैकब के मुताबिक पहले 5 दिसम्बर का दिन कार्रवाई शुरू करने के लिए रखा था लेकिन सैम मॉनेकशा ने इसे बदलकर 4 दिसम्बर कर दिया। कहा जाता है कि मानेकशा 4 अंक को अपने लिए लकी नंबर मानते थे। लेकिन 4 दिसम्बर को भारत हमले की शुरुआत करता उसके पहले 3 दिसम्बर को ही पाकिस्तान ने हमला बोल दिया। पाकिस्तानी वायुसेना ने भारत में घुस आई और कई स्थानों पर बमबारी की। इनमें आगरा, पठानकोट पर भी बमबारी शामिल थी जो कि भारतीय वायुसेना के बड़े एयरबेस थे।
अब भारत रुक नहीं सकता था। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आपात बैठक की और सेना को आक्रमण के आदेश मिल गए। भारतीय सेना ने अपना लक्ष्य ढाका को बनाया और आगे बढ़ने लगी। इसके लिए एक रणनीति अपनाई गई कि बीच में पड़ने वाले शहरों को छोड़ दिया और ढाका को लक्ष्य बनाया गया। इस बीच भारतीय सेना में सामंजस्य की कमी की बात भी सामने आई। दरअसर लड़ाई में पूर्वी कमान से चीन की सीमा से भी फौज बुला ली गई थी। आर्मी मॉनकेशा को खबर मिली थो उन्होंने तुरंत चीन की सीमा पर फौज भेजने को कहा। मॉनेकशा ने तो कह दिया गया लेकिन कमांड को फोर्स की जरूरत थी इसलिए अपने पास फोर्स रोके रखी।
सरेंडर के समय भारत के पास थे बहुत कम सैनिक
इस बीच ये भी खबर आई कि अमेरिका का युद्धपोत पाकिस्तान की मदद के लिए पूर्वी पाकिस्तान पहुंचने वाला है। ये जरूरी था कि उसके पहले ही ढाका पहुंचा जाए। आखिरकार दो सप्ताह भी नहीं बीते थे और पाकिस्तान सेना का मनोबल टूट चुका था। भारतीय सेना ने ढाका पर कब्जा कर लिया और 16 दिसम्बर का वो दिन आया जब पाकिस्तान की सेना का एक कमांडर जनरल हजारों सैनिकों के साथ एक बड़े मैदान में सरेंडर कर रहे थे।
इस दौरान जो सबसे खास बात थी कि 16 दिसम्बर को ढाका में पाकिस्तान के पास 26,400 सैनिक मौजूद थे जबकि भारत के पास सिर्फ 3000 से ऊपर सैनिक थे। इसका पता पाकिस्तान में बने एक जांच आयोग के सामने नियाजी के बयान से चलता है। जिसमें उनसे कहा गया था कि आपके पास इतने सैनिक थे फिर भी आपने लड़ने की जगह हथियार डाले। पाकिस्तान चाहता था कि अगर लड़ाई लंबी खिंचती तो उसे इस बीच अमेरिकी मदद का भरोसा था। लेकिन ये सिर्फ अब खयालों की बात थी पाकिस्तान युद्ध बुरी तरह हारकर अपना एक हिस्सा गंवा चुका था। उसकी जगह एक नए देश बांग्लादेश का उदय हुआ था और इसी के साथ भारत एक क्षेत्रीय महाशक्ति के रूप में स्थापित हो चुका था जिसने बड़ी महाशक्तियों की बात ठुकराकर मानवता की रक्षा के लिए युद्ध किया था।
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