यूपी पुलिस की वर्दी पर लगतार बढ़ रहे हैं बदनामी के तमगे, योगी राज में क्या हो रहा है
नई दिल्ली- यूपी पुलिस पिछले कुछ दिनों में बदनामी के सारे रिकॉर्ड लगातार तोड़ते जा रही है। ज्यादातर संगीन मामले कानपुर जिले से ही सामने आए हैं, जिसमें हत्याकांड के लिए पुलिस वाले सीधे तौर पर जिम्मेदार ठहराए जा रहे हैं। एक मामला गाजियाबाद का भी है, जहां अगर पुलिस वाले ने समय पर कार्रवाई की होती तो एक पत्रकार की जान बच सकती थी। लेकिन, पुलिस वाले आरोपियों का इतिहास जानकर भी चुपचाप किसी की जान जाने का इंतजार करते रह गए। राज्य सरकार की ओर से प्राथमिक तौर पर दोषी पाए जाने वाले पुलिस वालों के खिलाफ सख्त कदम भी उठाए जा रहे हैं, लेकिन जब तक एक मामले में कार्रवाई होती है, तब तक कोई दूसरा और सनसनीखेज मामला सामने आ जाता है। जाहिर है कि इसके चलते योगी आदित्यनाथ सरकार की कानून-व्यवस्था पर ही उंगलियां उठ रही हैं और अब तो राष्ट्रपति शासन लगाए जाने तक की मांग शुरू हो गई है।
विकास दुबे एनकाउंटर से उठे सवाल
2-3 जुलाई की रात को जबसे पुलिस वालों की मिलीभगत के चलते ही कानपुर के बिकरू गांव में एक सीओ समेत 8 पुलिस वालों की बेरहमी से हत्या हुई, उसके बाद यूपी पुलिस की वर्दी पर एक के बाद एक इतने दाग लग चुके हैं, जिन्हें धोना आसान नहीं होगा। पहले तो इतनी बड़ी घटना को अंजाम देने के बाद गैंगेस्टर अपने गैंग के साथ फरार हो गया और पुलिस तब कुछ न कर सकी। जबकि, विकास के गैंग पर धावा बोलने के लिए तीन थानों की पुलिस गई थी। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि पुलिस वालों में से ही कुछ लोग विकास दुबे को कार्रवाई की पल-पल की जानकारी दे रहे थे। पुलिस वालों के नरसंहार के बाद पुलिस ने उसके साथियों को या तो पकड़ना शुरू किया या एनकाउंटर में एक-एक ढेर करती चली गई। विकास के पीछे यूपी के 40 थानों की टीम लगी थी। लेकिन, फिर भी वह करीब एक हफ्ते तक उनके साथ शह-मात का खेल खेलता रहा। जब विकास हत्थे नहीं चढ़ रहा था तो खिसायनी बिल्ली की तरह यूपी पुलिस ने उसके घर को ही जमींदोज करके अपनी भड़ास निकालने की कोशिश की। आखिरकार बड़े ही नाटकीय ढंग से 9 जुलाई को मध्य प्रदेश में उज्जैन के महाकाल मंदिर से बिना किसी सख्ती के उसकी गिरफ्तारी भी हो गई। तब ऐसा लगा कि विकास दुबे ने शायद खुद ही सरेंडर कर दिया। लेकिन, अगले ही दिन उसे कानपुर लाते वक्त यूपी एसटीएफ की गाड़ी पलट गई और पुलिस की कहानी के मुताबिक विकास पुलिस वालों का सर्विस रिवॉल्वर छीन कर फरार होने लगा। पुलिस वालों ने उसे वॉर्निंग दी, लेकिन विकास ने उनपर गोली चला दी। जान बचाने के लिए पुलिस वालों ने भी गोली चला दी और अस्पताल लाते-लाते विकास दुबे ने दम तोड़ दिया। यह कहानी अभी खत्म नहीं हुई है। यूपी पुलिस की जांच पर भरोसा नहीं रह गया है, इसलिए सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज जस्टिस बलबीर सिंह चौहान की अगुवाई में एक जांच समिति बनाई गई है। उधर विकास दुबे गैंग के खिलाफ पुलिस अपनी कार्रवाई जारी रखे हुए है। इस पूरे कांड में यूपी पुलिस महकमा संदेह के घेरे में है।
पत्रकार विक्रम जोशी हत्याकांड
बिकरू कांड के तीन हफ्ते भी नहीं हुए थे कि यूपी पुलिस की आपराधिक निकम्मेपन (या अपराधियों से साठगांठ) के चलते दिल्ली से सटे गाजियाबाद में विक्रम जोशी नाम के पत्रकार की उनकी मासूम बेटियों के सामने ही हत्या हो गई। पत्रकार की गलती ये थी कि उन्होंने विजयनगर थाने में कुछ असामाजिक तत्वों के खिलाफ अपनी भांजी के साथ छेड़छाड़ की शिकायत दर्ज कराने की कोशिश की थी। लेकिन, एक पत्रकार की शिकायत पर आरोपियों के नाम बताने के बावजूद भी पुलिस ने बच्ची से यौन उत्पीड़न का केस तो दर्ज नहीं ही किया, उलटे हिस्ट्रीशीटर्स के आरोपों के आधार पर पीड़िता के परिवार वालों के खिलाफ भी तहरीर ले ली। नजीता ये हुआ कि अपराधियों का हौसला बढ़ा और उन्होंने मासूम बेटियों के सामने ही उनके पिता की बेरहमी से जान ले ली। पुलिस तो इस मामले में अभी भी घूमती ही रहती अगर संयोग से सीसीटीवी फुटेज में क्राइम का पूरा सीन रिकॉर्ड नहीं हो जाता।
कानपुर किडनैपिंग मर्डर केस का राज क्या है?
विकास दुबे एनकाउंटर और पत्रकार विक्रम जोशी की हुई हत्या के आरोपों से यूपी पुलिस घिरी हुई थी कि कानपुर में ही लैब टेक्निशियन संजीत यादव हत्याकांड में भी पुलिस बुरी तरह से घिर गई है। इस केस में संजीत यादव की अपहरण के बाद हत्या कर दी गई है और अब तक पुलिस लाश भी बरामद नहीं कर सकी है। संजीत यादव की बहन का आरोप है कि पुलिस वालों ने अपहरणकर्ताओं को 30 लाख रुपये बतौर फिरौती दिलवाई थी फिर उन्हें जिंदा नहीं लौटा पाई। हालांकि, पुलिस की दलील है कि उन्होंने फिरौती नहीं दिलवाई, बल्कि पीड़ित के रिश्तेदारों का दावा है कि उन्होंने 30 लाख रुपये की फिरौती दी थी। जबकि पकड़े गए 5 आरोपियों से पूछताछ के आधार पर पुलिस कह रही है कि आरोपियों को यह रकम नहीं मिली है। आरोपियों का कहना है कि संजीत की हत्या 26-27 जून की रात में ही हो चुकी थी। चौतरफा यूपी पुलिस की किरकिरी होने के बाद इस मामले में आईपीएस समेत 11 पुलिसकर्मियों को सस्पेंड किया गया है।
कानपुर थाने में वीडियो बनाने वाले का टॉर्चर
यूपी की कानपुर पुलिस एक और कांड के चलते चर्चा में है। यह मामला है थाने में एक युवक के टॉर्चर का। दरअसल, युवक की गलती ये थी कि उसने सरकारी काम में सरिया चोरी होने की घटना की शिकायत सीएम पोर्टल पर कर दी थी। पहले तो उसे दबंगों ने पीटा और जब जान बचाने के लिए वह पनकी थाने पहुंचा तो थाना इंचार्ज धीरेंद्र सिंह ने उससे ही बदतमीजी शुरू कर दी। युवक ने थाना इंचार्ज की अभद्र बातों का ऑडियो रिकॉर्ड करके सोशल मीडिया पर डाल दिया। आरोपों के मुताबिक उसके बाद तो थाना इंचार्ज ने बॉलीवुड में गुंडों के पैसे पर पलने वाले थानेदारों की तरह उसे थाने बुलाकर जुल्म की इंतहा कर दी। उसने खुद को रातभर प्रताड़ित किए जाने का आरोप लगाया। थानेदार ने चैलेंज किया कि अब यातना वाला वीडियो बनाकर भी जरा वायरल करके दिखाए। यही नहीं जो युवक सरकारी सरिया चोरी की शिकायत लेकर थाने पहुंचा था, और पुलिस ने उसी का 151 (शांति भंग) के तहत चालान कर दिया गया। बवाल बढ़ने पर पुलिस ने जांच के आदेश दिए हैं, लेकिन इसके चलते खाकी पर जो दाग लगे हैं उसे मिटाना आसान नहीं है।
#PresidentRuleInUP हुआ ट्रेंड
यूपी पुलिस की वजह से हालत ऐसी हो गई है कि अब निशाने पर योगी आदित्यनाथ सरकार आ चुकी है। जो मुख्यमंत्री गुंडों के या तो सुधर जाने या यूपी छोड़ जाने की बात कहते थे, उनसे ही सवाल पूछे जाने लगे हैं। यही वजह है कि शुक्रवार को जब यूपी के एक रिटायर्ड आईएएस अधिकारी सूर्य प्रताप सिंह ने #PresidentRuleInUP लगाकर पहला ट्वीट किया तो उसपर ट्वीट्स की भरमार लग गई। सूर्य प्रताप के इस ट्वीट के पीछे चाहे कोई सियासी मकसद हो या नहीं, लेकिन यूपी पुलिस की कारगुजारियों के चलते राज्य सरकार के निशाने पर आना तो स्वाभिक ही लग रहा है।
अखिलेश, प्रियंका और माया के निशाने पर सरकार
करीब साढ़े तीन साल के शासनकाल में कानून-व्यवस्था को लेकर शायद पहली बार योगी आदित्यनाथ सरकार इस तरह से विपक्ष के निशाने पर आई है। करीब डेढ़ साल बाद विधानसभा चुनाव होने हैं, इसलिए सियासी दलों के लिए वॉर्मअप करने का इससे अच्छा मौका नहीं हो सकता। समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव हों या कांग्रेस की प्रियंका गांधी वाड्रा या फिर मायावती सबको मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को घेरने की माकूल वजह मिल गई है। पूर्व सीएम अखिलेश यादव एक ट्वीट में कुछ अखबारों की कटिंग लगाकर लिखते हैं, "भाजपा के राज की ‘सुपर अपराध-भ्रष्टाचार' की बन रहीं ऐसी खबरें, अब सुर्खिया हर अखबार की "। जबकि कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा लिखती हैं, "उप्र में कानून व्यवस्था दम तोड़ चुकी है। आम लोगों की जान लेकर अब इसकी मुनादी की जा रही है। घर हो, सड़क हो, ऑफिस हो कोई भी खुद को सुरक्षित महसूस नहीं करता। विक्रम जोशी के बाद अब कानपुर में अपहृत संजीत यादव की हत्या।......." जबकि, बसपा प्रमुख मायावती ने शुक्रवार को संजीत यादव हत्याकांड के बाद लिखा, "यूपी में जारी जंगलराज के दौरान एक और घटना में कानपुर में अपहरणकर्ताओं द्वारा श्री संजीत यादव की हत्या करके शव को नदी में फेंक दिया गया जो अति-दुःखद व निन्दनीय। प्रदेश सरकार खासकर अपराध-नियंत्रण व कानून-व्यव्स्था के मामले में तुरन्त हरकत में आए, बीएसपी की यह मांग है।"