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संघर्ष के असंख्य पड़ावों को पार करते हुए चौ देवीलाल बने जन-जन के जननायक: डॉ. अजय सिंह चौटाला

संघर्ष के असंख्य पड़ावों को पार करते हुए चौ देवीलाल बने जन-जन के जननायक: डॉ. अजय सिंह चौटाला

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चंडीगढ़। मेरे दादा चौधरी देवीलाल देश की राजनीति के वो जननायक हैं, जिन्होंने संघर्ष के असंख्य पड़ावों को पार करते हुए अपने जीवन को आदर्शवादी संस्था के रूप में स्थापित किया। संघर्ष करने की घुट्टी उन्हें पारिवारिक संस्कारों से मिली। चौ. लाला राम, जस्सा राम, तेजा राम, आशा राम, तारू राम व चौ. लेखराम समेत उनके पूर्वजों ने 18वीं तथा 19वीं सदी में अनेकों पीड़ाओं को सहन किया, किन्तु कभी भी अपने सिद्धांतों के साथ समझौता नहीं किया।

 Dr. Ajay Singh Chautala

यही कारण था कि उन्होंने बीकानेर स्टेट की 'नोखा' में अपनी विरासत को छोड़कर तेजा खेड़ा व चौटाला में जमींन लेकर सैद्धांतिक रूप से अपनी शर्तों पर जीवन यापन करना स्वीकार किया। ऐसे संघर्षमय परिवार में चौ. देवीलाल का जन्म उस समय हुआ जब भारत मां के चरणों में आजादी का आन्दोलन ज्वार-भाटे की तरह उफनते हुए ऊंची तरंगों सा ठाठे मार रहा था। ऐसे दौर में 25 सितम्बर, 1914 को देवी के लाल चौ. देवीलाल का जन्म तेजाखेड़ा गांव में हुआ। दादा चौ. देवीलाल जी को बचपन में देवीदयाल के नाम से भी जाना जाता था।

मेरे दादा चौ. देवीलाल को बचपन से ही संघर्षमय जीवन यापन करना पड़ा। जब वह छोटी अवस्था के थे, तो उनकी माता श्रीमती सुगनो देवी का देहांत हो गया। परिणामतय: देवीलाल अन्तर्मुखी हो गए और अपने निर्णय खुद ही लेने लगे। तत्कालीन पंजाब के बादल गांव के अखाड़े में पहलवानी का शौक पूरा करने के लिए जोर-अजमाईश करने लगे, वहां भी बात न बनी तो छोटे किसानों, मुज़ारों, गरीब परिवारों के नौजवानों को इकट्ठा कर गांव में ही भारत माता के जयकारों के नारे लगवाने लगे। परिणामत: चौ. देवीलाल को चौटाला गांव के कांग्रेस पार्टी के कार्यालय से महज 16 वर्ष की उम्र में ही गिरफ्तार कर लिया गया। इतना ही नहीं, अंग्रेजी पुलिस ने चौ. देवीलाल के पिता चौ. लेखराम तथा उनके परिवार के अन्य बुजुर्गों को एक झूठे केस में फंसाकर हिसार सेंट्रल जेल में बंद कर दिया गया।

चौ. देवीलाल पर दबाव बनाया गया कि वो जमींदार विरोधी कार्य न करे, लेकिन चौ. देवीलाल अंग्रेजों के दबाव में कहां आने वाले थे, उन्होंने स्वयं अपनी जमानत रद्द करवाकर मान-सम्मान की खातिर सन् 1930 में अपने आपको पुलिस के हवाले कर दिया। उनकी कम उम्र होने की बदौलत 4 जनवरी 1931 को चौ. देवीलाल को लाहौर की बोस्टल जेल में भेज दिया गया। वहां पर चौ. देवीलाल की मुलाकात सरदार भगत सिंह, श्री दुनीचन्द, जीवन लाल कपूर जैसे महान स्वतंत्रता सेनानियों से हुई। जेल में जब चौ. देवीलाल ने भारतीय कैदियों को कोल्हू में बैलों की जगह जोतते हुए तथा अंग्रेजों द्वारा डण्डों से खाल उधेड़ते हुए व खाने में हो रहे भेदभाव को देखा, तो उनका खून खोल उठा। उन्होंने अंग्रेज जेलर की गर्दन पकड़कर कहा, "पहले यह खाना तुम खाकर दिखाओ, फिर हम खाएंगे"। लाहौर की बोस्टल जेल में चौ. देवीलाल की कद-काठी एवं उनके रौब की बदौलत जेल में भारतीय कैदियों को अच्छा खाना मिलना शुरू हुआ। उधर 23 मार्च, 1931 को भगत सिंह एवं उसके साथियों को फांसी दे दी गई, फांसी के विरोध में चौ. देवीलाल ने स्वयं भठिंडा रेलवे स्टेशन पर पहुंचकर झंडे दिखाकर विरोध-प्रदर्शन किया। 4 जनवरी 1932 को सविनय अवज्ञा आन्दोलन के विरोध में चौ. देवीलाल को एक बार फिर गिरफ्तार कर दिल्ली सदर थाने में रखा गया और बाद में उन्हें जेल भेज दिया गया। इस प्रकार 1934 में जब महात्मा गांधी ने यह आन्दोलन वापिस लिया तो चौ. देवीलाल जेल से रिहा हुए।

सन् 1937 में पंजाब प्रांतीय असेम्बली में चौ. देवीलाल के समर्थन से आत्मा राम विजयी हुए। 21 दिसम्बर, 1937 को आत्मा राम का चुनाव रद्द होने के कारण कांग्रेस ने देवीलाल की आयु कम होने की बदौलत उनके बड़े भाई चौ. साहब राम को प्रत्याशी बनाया। इस प्रकार चौ. देवीलाल की मेहनत रंग लाई और चौ. साहब राम मार्च 1938 में पंजाब असेम्बली के एमएलए बन गए। सन् 1942 में भारत छोड़ो आन्दोलन के तहत चौ. साहब राम एवं चौ. देवीलाल दोनों को ही बन्दी बनाकर जेल में डाल दिया गया। चौ. देवीलाल के पिता चौ. लेखराम के लिए यह परीक्षा की घड़ी थी क्योंकि इस समय उनके दोनों बेटे मुलतान जेल में बंद थे। चौ. देवीलाल अक्तूबर 1943 को रिहा हुए और उन्होंने अगस्त 1944 को अपने बड़े भाई चौ. साहब राम को मुलतान जेल से रिहा करवाया।

अगस्त 1944 में ही चौ. छोटू राम ने चौटाला गांव का दौरा किया और चौ. देवीलाल व चौ. साहब राम के घर स्वयं आकर यूनियन पार्टी में शामिल होने का आग्रह किया। इस दौरान अंग्रेज चौ. देवीलाल तथा उसके परिवारजनों को तंग करते रहे, ताकि वे स्वतंत्रता आन्दोलन में बढ़-चढ़ कर भाग न ले सके। चौ. देवीलाल कहा झुकने वाले थे, किसानों काश्तकारों, भूमिहीन मजदूरों की आवाज को उठा कर, उन्हें मंच प्रदान किया तथा उनकी आवाज को चौ.छोटू राम के कानों तक पहुंचाया। चौ. देवीलाल व साथियों की मेहनत रंग लाई और 15 अगस्त 1947 को भारत आजाद हो गया।

भारत को आजादी दिलवाने के बाद भी चौ. देवीलाल ने किसानों व काश्तकारों को उनके हक दिलवाने के लिए 1948 में रोहिरनवाली में किसान सम्मेलन का आयोजन किया। परिणामत: इलाके के सारे मजदूर एवं किसानों ने चौ. देवीलाल को अपना नेता माना। इसी की बदौलत 1952 में सिरसा से पहला असेम्बली चुनाव जीता। अपने चुनाव की जीत का समाचार जब अपने पिता जी को देने चौटाला गांव पहुंचे तो उनको पिता की मृत्यु का दु:खद समाचार मिला। पिता के निधन के शोक से उभर कर चौ. देवीलाल पुन: राजनीतिक गतिविधियों में जुट गए। परिणामत: प्रताप सिंह कैरो के साथ मित्रता का हाथ बढ़ाया और पूरे हरियाणा क्षेत्र में उनकी जनसभाएं करवाई। जनता ने चौ. देवीलाल को इस अभियान में 43 हजार रूपए की थैली भेंट की, लेकिन उन्होंने यह थैली प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गुरमुख सिंह मुसाफिर को सौंप दी। सन् 1958 में चौ. देवीलाल पंजाब प्रदेश के कांग्रेस अध्यक्ष निर्वाचित हुए। चौ. देवीलाल सन् 1959 में डबवाली से एक बार फिर विधायक बने एवं पंजाब विधानसभा में विधानसभा दल का उन्हें मुख्य सचेतक नियुक्त किया गया।

चौ. देवीलाल ने हिन्दी भाषी जनता (हरियाणा क्षेत्र) के साथ पंजाब विधानसभा में भेदभाव होते देखा तो उन्होंने इनके विरूद्ध आवाज उठाई और हरियाणा को अलग राज्य बनाने के लिए हरियाणा लोक समिति का गठन किया। 7 दिसम्बर 1965 को हरियाणा को अलग राज्य बनाने के लिए रोहतक में सम्मेलन किया। सम्मेलन में 21 सदस्यीय समिति का गठन किया गया, जिसके संयोजक देवीलाल बने। इतना ही नहीं 1965 में गम्भीर बीमार होने के बावजूद भी हरियाणा प्रांत को बनाने के लिए डॉक्टरों के मना करने पर भी यह कहते हुए कि, "अगर मैं जाने से बच गया तो, मेरा हरियाणा मर जायेगा" संत फतेह सिंह से मिलने के लिए अमृतसर गये। परिणामत: चौ. देवीलाल के अथक प्रयासों के बावजूद 1 नवम्बर 1966 को हरियाणा का 17वां राज्य बना, इसीलिए चौ. देवीलाल को हरियाणा का निर्माता एवं जनक कहा जाता है।

चौ. देवीलाल ने सन् 1967 में हरियाणा में हुए आम चुनाव लड़ने का फैसला किया। सन् 1968 में चौ. देवीलाल को खादी बोर्ड का अध्यक्ष बनाया गया। सन् 1971 में चौ. चरण सिंह के क्रांतिदल में शामिल हुए और किसानों के हितों के लिए संघर्ष समिति का गठन किया। सन् 1973 में उनको गिरफ्तार कर अम्बाला जेल में रखा गया। 4 अक्तूबर 1973 को पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायलय के आदेश पर उनको रिहा किया गया। सन् 1974 में संयुक्त विपक्ष के सदस्य के रूप में रोड़ी से विधानसभा का चुनाव कांग्रेस उम्मीद्वार को हराकर जीता। इसी दौरान वे भारतीय लोकदल हरियाणा के अध्यक्ष बने। आपातकाल के दौरान चौ. देवीलाल को 26 जून, 1975 को सोहना में गिरफ्तार कर लिया गया। बाद में सभी नेताओं को 26 जनवरी, 1977 को छोड़ा गया।

चौ. देवीलाल 25 जून 1977 में पहली बार हरियाणा के मुख्यमंत्री बने। उन्होंने जनसेवक के रूप में विकास का बीड़ा गरीबों की झोपड़ियो, किसानों की दहलीज तथा मजदूरी की चौखट तक पहुंचाया। उन्होंने 'भ्रष्टाचार बंध करो तथा बिजली-पानी का प्रबंध करो' का नारा दिया। 4 जून 1977 को हरियाणा के लिए द्विसूत्री कार्यक्रम की घोषणा की गई, जिसके तहत कृषि, पशुपालन, लघु, कुटीर उद्योगों तथा ग्रामीण विकास को प्राथमिकता दी गई।

सन् 1979 में चौ. देवीलाल ने जनता पार्टी विभाजन के बाद चौ. चरणसिंह से हाथ मिलाया और जनता पार्टी सेक्युलर की स्थापना की, बाद में इसे लोकदल पार्टी का नाम दिया गया। सन् 1980 में सातवीं लोकसभा के लिए चौ. देवीलाल सोनीपत से चुनाव जीते। किसानों के हितों के लिए किसान संघर्ष समिति का निर्माण किया। उन्होंने हरियाणा के किसानों के लिए सतलुज-यमुना-सम्पर्क नहर तथा रावी-ब्यास के पानी के लिए राष्ट्रीय स्तर पर मुद्दों को उठाया। सन् 1982 में हरियाणा विधानसभा के चुनाव हुए और देवीलाल महम से चुनाव जीते। सन् 1985 में उन्होंने राजीव-लौंगोंवाल समझौते का विरोध किया और हरियाणा में न्याय युद्ध छेड़ते हुए 'रास्ता रोके अभियान' चलाया। इस अभियान में उन्होंने जनता को नारा दिया 'हर खेत को पानी, हर हाथ को काम, हर तन पे कपड़ा, हर सिर पे मकान, हर पेट में रोटी, बाकी बात खोटी'।

चौ. देवीलाल ने हरियाणा के जनता के हितों की जो लड़ाई लड़ी उसका परिणाम उनको हरियाणा में 1987 के विधानसभा चुनाव में मिला उनके नेतृत्व में विधानसभा की 90 में से 85 सीटों पर जीत हासिल हुई। चौ. देवीलाल 20 जून 1987 को दूसरी बार हरियाणा के मुख्यमंत्री बनें। उन्होंने हरियाणा के किसानों, गरीबों, मजदूरों, युवाओं, महिलाओं, वृद्धों एवं व्यापारियों के अनेक कल्याणकारी योजनएं लागू की, जो अत्यंत लोकप्रिय एवं दूरदर्शी भी साबित हुई। इन्हीं की बदौलत चौ. देवीलाल का कद राष्ट्रीय नेता के रूप में उभरा।

सन् 1989 में लोकसभा चुनाव में चौ. देवीलाल के नेतृत्व में पूरे भारत के नेता एकजुट हुए और नौंवी लोकसभा में राष्ट्रीय मोर्चा को बहुमत मिला। वे स्वयं सीकर तथा रोहतक से सांसद बनें। 1 दिसम्बर 1989 का दिन चौ. देवीलाल ही नहीं सम्पूर्ण भारत के नेताओं के लिए आदर्शवादी दिन था। राष्ट्रीय मोर्चा के सभी सांसदों ने चौ. देवीलाल को सर्वसम्मति से संसदीय दल का नेता चुना। उन्होंने सभी का धन्यवाद ज्ञापित कर त्याग का परिचय देते हुए कहा कि 'मैं हरियाणा में ताऊ कहलाता हूं, यहां भी ताऊ ही रहना चाहता हूं' और मैं अपना नाम प्रधानमंत्री पद से वापिस लेता हूं। 2 दिसम्बर 1989 को चौ. देवीलाल भारत के उपप्रधानमंत्री बने, नवम्बर 1990 में दोबारा भारत के उपप्रधानमंत्री बनें।

चौ. देवीलाल ने 1992 में ग्रामीण भारत को जगाने तथा गरीब किसानों के उत्थान के लिए चेतना यात्रा प्रारम्भ की। सन् 1998 में वह हरियाणा से राज्यसभा के सदस्य बनें। 6 अप्रैल 2001 को किसानों के मसीहा जन-जन के नायक ताऊ चौ. देवीलाल हमेशा के लिए पंचतत्व में विलीन होकर हम सभी से रूकसत हो गए। उनकी दूरगामी और हर वर्ग का हित करने वाली सोच, उनके दिखाए रास्ते पर निरंतर आगे बढ़ने का प्रण लेकर हम उन्हें नमन करते हुए याद करते हैं।

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English summary
Crossing innumerable stages of struggle, Chau Devi Lal became the Jannayak of the people: Dr. Ajay Singh Chautala
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