जब कृष्ण ने अर्जुन से कहा-यह समय भी बीत जाएगा
नई दिल्ली। श्री कृष्ण भारतीय संस्कृति के ऐसे आधार हैं, जिन्होंने दो अतिवादी बिंदुओं को साथ में लाने, जीने और समभाव से स्वीकार करने का दृष्टिकोण प्रतिपादित किया है। भारतीय दर्शन के प्रणेताओं में से एक श्री कृष्ण ने आम जीवन के लिए आवश्यक ऐसे सिद्धांतों को इतनी सहजता से साकार किया है, जिनकी गूढ़ता का रहस्य समझना हर किसी के वश की बात नहीं है। संभवतः यही कारण है कि श्री कृष्ण ने स्वयं व्यक्ति के रूप में अवतार लेकर आम आदमी के जीवन को जिया, ताकि जीवन के गूढ़ रहस्यों को सामान्य व्यक्ति भी सरलतम रूप में समझ सके।
आज सुख और दुख के संबंध में उनकी ऐसी ही विवेचना का आनंद लेते हैं
श्री कृष्ण और अर्जुन की मित्रता से हर कोई परिचित है। हालांकि यह मित्रता बराबरी की नहीं थी। अर्जुन सदैव ही श्री कृष्ण को अपना स्वामी, भगवान और पथ प्रदर्शक मानते थे और उनसे जीवन के हर अवसर पर मार्गदर्शन लेना नहीं भूलते थे। एक तरह से उन्होंने अपने जीवन की डोर श्री कृष्ण को सौंप दी थी। महाभारत युद्ध के बाद एक दिन दोनों बैठकर जीवन दर्शन पर बातचीत कर रहे थे। इसी समय अर्जुन ने कहा- हे वासुदेव! संसार में हर कोई सुख की कामना करता है और जीवन पर्यंत उसकी प्राप्ति के लिए प्रयास भी करता है। फिर क्यों दुख जीवन में प्रवेश करता है? दुख रूपी भावना के निर्माण का अर्थ ही क्या है? क्यों इसकी सृष्टि की गई? यदि दुख होता ही नहीं, तो जीवन कितना आसान हो जाता। सुख और दुख दोनों विरोधी भाव हैं और इनकी आवाजाही ने आम जीवन को दुखी कर रखा है।
सुख और दुख एक-दूसरे के विरोधी नहीं
अर्जुन की बात सुनकर श्री कृष्ण ने कहा- हे पार्थ! सबसे पहली और आवश्यक बात यह जान लो कि सुख और दुख एक-दूसरे के विरोधी नहीं, बल्कि पूरक हैं। वास्तव में ये एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। यदि दुख ना हो, तो सुख की अनुभूति भी ना हो पाएगी। जब दुख आता है, उसके बाद ही सुख की प्राप्ति की इच्छा होती है, नहीं तो व्यक्ति सुख की कीमत जान ही नहीं पाता। यह बात सुनकर अर्जुन ने कहा- हे कृष्ण! तब एक ऐसा वाक्य कहिए, जिसे दुख में पढ़ा जाए, तो मन सुख पाए और सुख में पढें़, तो मन नियंत्रित हो जाए अर्थात वह बात सुख और दुख में समान रूप से प्रभावी हो।
कृष्ण ने मुस्कुराते हुए कहा- यह समय भी बीत जाएगा
श्री कृष्ण ने मुस्कुराते हुए कहा- यह समय भी बीत जाएगा। हे अर्जुन! समय का पहिया कभी एक जगह नहीं थमता। दुख आया, तो एक दिन जाएगा ही और सुख आया, तो वह भी एक दिन जाएगा ही और यह भी तय है कि दोनों बारी-बारी वापस लौट कर आएंगे ही क्योंकि यही जीवन है। अर्जुन ने तुरंत ही श्री कृष्ण की चरण वंदना की और कहा- सत्य है प्रभु! अब कोई संशय नहीं।
समय सबसे बलवान है
यही सत्य है दोस्तों! समय सबसे बलवान है। उसे अपनी गति से आना है और जाना है। उसके हर कदम के साथ कभी सुख, तो कभी दुख को भी जीवन में आना है। इन दोनों के आने से व्यक्ति को घबराना नहीं चाहिए क्योंकि समय कब एक-सा रूका है। जब भी निराश हों, यही मन को समझाएं कि यह समय भी बीत ही जाएगा।
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