Yashoda Jayanti 2021: बहुत प्यारी हैं कान्हा की मैया यशोदा, आज है उनका जन्मदिन, जानिए कब करें पूजा?
नई दिल्ली। मां का जिक्र यशोदा मैया के बिना पूरा नहीं होता है। यशोदा का नाम लेते ही आंखों के सामने मोहक,प्यारी, त्याग- प्रेम से परिपूर्ण वाली मां की तस्वीर सामने आ जाती हैं, आज उन्हीं का जन्मदिन है। बता दें कि हर साल यशोदा जयंती फाल्गुन कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाई जाती है। हमारी पौराणिक किताबों में जिस तरह से यशोदा और उनके पुत्र कान्हा जी के संबंधों का जिक्र है, वैसे ही मां-बेटे रिश्ते की कल्पना हर मां करती है। कहते हैं आज के दिन मां यशोदा की पूजा करने से निसंतान लोगों को संतान की प्राप्ति होती है और बच्चे से जुड़ी हर समस्या का अंत हो जाता है, यही नहीं मैया की पूजा करने से इंसान को सारे कष्टों से मुक्ति भी मिल जाती है।
अनोखा है कान्हा और मैया यशोदा का रिश्ता
मालूम हो कि भगवान श्रीकृष्ण को जन्म मां देवकी ने जरूर दिया था लेकिन उनका लालन-पोषण मां यशोदा ने ही किया था। यशोदा जयंती के अवसर पर श्रीकृष्ण मंदिरों में सुबह से ही भक्तों का दर्शन और पूजन के लिए तांता लग जाता है, हालांकि इस बार मंदिरों में कोरोना के कारण भीड़ कम है लेकिन फिर भी श्रद्धालुगण मंदिर में देखे जा रहे हैं।
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बलराम का भी पालन-पोषण मां यशोदा ने किया था
मालूम हो कि यशोदा, नंदगांव के नंद की पत्नी थीं। यशोदा ने केवल कन्हा का ही पालनपोषण नहीं किया बल्कि उन्होंने उनके बड़े भाई बलराम के पालन पोषण की भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, जो कि मां रोहिणी के पुत्र और सुभद्रा के भाई थे।
मां यशोदा ने बेटी को दिया था जन्म
मां यशोदा ने एक पुत्री को जन्म दिया था, जिनका नाम एकांगा था, जिन्हें मारने के लिए जब कंस ने उसे गोद में उठाया था तो वो उड़ गई थीं, ऐसा माना जाता है कि वो विन्धयवासिनी पर्वत पर जाकर बैठ गई थीं और उन्हें लोग मां विन्ध्यवासिनी के नाम से पूजते हैं। सूरदास ने मां यशोदा और बाल श्रीकृष्ण की लीलाओं का बड़ा ही सुंदर चित्रण अपने पद्यों में किया है, जो कि बेहद मनोरम और कर्णप्रिय हैं।
ये है पूजा का समय
षष्ठी
तिथि
प्रारंभ
-
4
मार्च
को
रात
12
बजकर
21
मिनट
से
षष्ठी
तिथि
समाप्त
-
4
मार्च
को
रात
9
बजकर
58
मिनट
तक
पढ़ें कुछ प्रचलित सूरदास के पद
जसोदा
हरि
पालने
झुलावै।
हलरावै,
दुलराइ
मल्हावै,
जोइ-सोइ
कछु
गावै॥
मेरे
लाल
कौं
आउ
निंदरिया,
काहे
न
आनि
सुवावै।
तू
काहैं
नहिं
बेगहिं
आवै,
तोकौं
कान्ह
बुलावै॥
कबहुँ
पलक
हरि
मूँदि
लेत
हैं,
कबहुँ
अधर
फरकावै।
सोवत
जानि
मौन
ह्वै
कै
रहि,
करि-करि
सैन
बतावै॥
इहिं
अंतर
अकुलाइ
उठे
हरि,
जसुमति
मधुरै
गावै।
जो
सुख
सूर
अमर-मुनि
दुरलभ,
सो
नँद-भामिनि
पावै॥
कौन
किसको
सुलाने
का
प्रयास
कर
रहा
है?
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खीजत
जात
माखन
खात।
अरुन
लोचन,
भौंह
टेढ़ी,
बार-बार
जँभात॥
कबहुँ
रुनझुन
चलत
घुटुरुनि,
धूरि
धूसर
गात।
कबहुँ
झुक
कै
अलक
खैँचत,
नैन
जल
भरि
जात॥
कबहुँ
तोतरे
बोल
बोलत,
कबहुँ
बोलत
तात।
सूर
हरि
की
निरखि
सोभा,
निमिष
तजत
न
मात॥
बाल
कृष्ण
के
रूप
सौंदर्य
का
वर्णन
कीजिए।
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