‘हुई मुद्दत कि गालिब मर गया पर याद आता है'
गालिब की 212वीं जयंति के अवसर पर कथक कलाकार उमा शर्मा, लेखक व राजनयिक पवन के.वर्मा, ऐतिहासिक धरोहरों की रक्षा के लिए काम करने वाले फिरोज बख्त अहमद, कवि गुलजार देहलवी और नौकरशाह आबिद हुसैन 'यादगार-ए-गालिब" की परंपरा को इस वर्ष भी आगे बढ़ा रहे हैं।
जुलूस
उल्लेखनीय है कि गालिब का जन्म 27 दिसम्बर 1797 को हुआ था। 'यादगार-ए-गालिब" की शुरुआत शनिवार को चांदनी चौक स्थित टाउन हॉल से होगी। यहां उमा शर्मा मोमबत्ती की लौ के साथ एक जुलूस में हिस्सा लेंगी जो गालिब की हवेली पहुंचकर खत्म होगा।
समारोह के दूसरे दिन लोदी रोड स्थित इस्लामिक कल्चर सेंटर में उमा शर्मा 'शमां बुझती है.." कार्यक्रम पेश करेंगी, जिसकी शुरुआत में पवन वर्मा अपनी पुस्तक 'गालिब : द मैन, द टाइम्स" का पाठ करेंगे।
'हुई मुद्दत कि गालिब मर गया पर याद आता है/ वो हरेक बात पे कहना कि यूं होता तो क्या होता..". गालिब की याद में इस प्रकार के समारोह हर वर्ष आयोजित किए जाते हैं, जिनमें बड़ी संख्या में उनके चाहने वाले शिरकत करते हैं।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।