Dussehra 2020: श्री राम की श्रद्धा से शमी बना सोना पत्ती, जानिए रोचक कहानी
नई दिल्ली। दशहरे के दिन की बात आते ही तीन चीजें विशेष रूप से हम सभी के ध्यान में आती हैं- श्री राम, रावण और शमी पत्ती, जिसे अधिकांश लोग सोना पत्ती के नाम से जानते हैं। हमारे देश के कई हिस्सों में रावण दहन के बाद परिचितों को सोना पत्ती भेंट कर दशहरे की बधाई देने का चलन है। आखिर शमी में ऐसा क्या है, जो इसे सोना पत्ती का नाम मिला और दशहरे से इसका क्या सम्बन्ध है, आज इसी के बारे में जानते हैं-
यह उस समय की बात है, जब श्री राम, रावण से युद्ध करने के लिए पूरी तैयारी कर चुके थे। लंका पर आक्रमण के लिए निकलने से पूर्व श्री राम किसी प्रबल शक्ति स्रोत से आशीर्वाद लेने के इच्छुक थे। शास्त्रों में अग्नि को शमी गर्भ के नाम से भी जाना जाता है और अग्नि से अधिक प्रचण्ड शायद ही संसार में कोई और होगा। जब श्री राम युद्ध भूमि के लिए प्रस्थान करने चले, तो सामने शमी का वृक्ष दिखाई पड़ा। श्री राम को अग्नि रूपी शमी वृक्ष के दर्शन कर हार्दिक प्रसन्नता हुई।
शमी को स्वर्ण मानकर विजय के आशीर्वाद से जोड़ लिया
उन्होंने उसी क्षण शमी वृक्ष को साष्टांग प्रणाम किया, उससे विजय का आशीर्वाद देने की कामना की और उसकी पत्तियों को अपने पास रख लिया। रामायण के इस महायुद्ध में श्री राम की विजय के साथ शमी वृक्ष को विशेष महत्वपूर्ण और पूजनीय स्थान प्राप्त हो गया। इसके बाद से ही अग्नि रूपी शमी को स्वर्ण मानकर विजय के आशीर्वाद से जोड़ लिया गया। शमी की पत्तियों को स्वर्ण या सोना पत्ती का नाम मिल गया और लोग अपने परिचितों को सोना पत्ती भेंट करने लगे।
कम साधनों के बाद भी श्री राम ने लंका पति रावण पर विजय पाई
इस सोना पत्ती को भेंट करने के पीछे यह भावना रहती है कि जिस तरह विपरीत परिस्थितियों और कम साधनों के बाद भी श्री राम ने लंका पति रावण पर विजय पाई, ठीक उसी तरह हमारे परिचित भी जीवन की हर विपत्ति का सामना करने और उस पर विजय पाने में सक्षम हों।
यह पढ़ें: Dussehra 2020: रावण ने लक्ष्मण को बताई थीं ये तीन महत्वपूर्ण बातें