क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

Success Mantra: परोपकार में साथ खड़े होते हैं परमात्मा

By Pt. Gajendra Sharma
Google Oneindia News

नई दिल्ली। भारतीय संस्कृति के महानतम् ग्रंथों में से एक है- महाभारत। इस महाग्रंथ में ऐसे अनेक सुंदर प्रसंग देखने में आते हैं, जो बहुत ही सहजता से जीवन का गहन पाठ पढ़ा जाते हैं। इसका कारण यह है कि महाभारत के महानायक श्री कृष्ण ने पांडवों और कौरवों को समय-समय पर शिक्षा देते हुए इसी के माध्यम से आम व्यक्ति के लिए भी संस्कार के बीज बोए हैं। यही वजह है कि महाभारत की प्रासंगिकता आज भी यथावत् बनी है।

आज महाभारत के ही एक प्रसंग का आनंद लेते हैं...

Success Mantra: परोपकार में साथ खड़े होते हैं परमात्मा

महाभारत में श्री कृष्ण और अर्जुन के बीच का स्नेह सर्वविदित है। श्री कृष्ण अर्जुन के प्रति सखा भाव रखते थे और अर्जुन उन्हें भगवान मानते थे। महाभारत के महासंग्राम के बाद दोनों अक्सर साथ में घूमने निकला करते थे। ऐसे ही एक बार भ्रमण के दौरान श्री कृष्ण और अर्जुन को एक दुखी ब्राह्मण दिखाई पड़ा। वह अपनी निर्धनता से अति दुखी था। अर्जुन ने सोचा कि उसकी दरिद्रता दूर करना चाहिए और उसे सोने की मोहरों से भरी एक पोटली दे दी। ब्राह्मण खुशी से नाचता अपने घर की तरफ चला, किंतु दुर्भाग्य से उसका सामना एक डाकू से हो गया, जो उसकी पोटली छीन ले गया। दूसरे दिन अर्जुन और कृष्ण ने वापस उस ब्राह्मण को भिक्षा मांगते देखा, तो हैरान रह गए। ब्राह्मण ने रोते हुए सारा किस्सा सुनाया। अर्जुन को फिर से दया आ गई और उन्होंने ब्राह्मण को एक बहुत कीमती रत्न दे दिया। ब्राह्मण अपने भाग्य पर चकित होता हुआ सीधे घर गया और उसने वह रत्न एक पुराने घड़े में छिपा दिया। उसने सोचा था कि सुबह इस रत्न को बाजार में बेच दूंगा और कंगाली से हमेशा के लिए पीछा छूट जाएगा। पर हाय रे दुर्भाग्य! ब्राह्मण की पत्नी उस समय पानी भरने नदी पर गई हुई थी। राह में उसका घड़ा फूट गया, तो वापस आकर उसने वही पुराना घड़ा उठाया और पानी भर लाई।

अर्जुन को लगा कि इसके भाग्य में धन है ही नहीं

दूसरे दिन नींद खुलने पर ब्राह्मण ने घड़ा पानी से भरा देखकर पूछा तो सारी घटना जानकर उसने अपना सिर पीट लिया। पानी भरने के साथ रत्न नदी में बह चुका था। अब ब्राह्मण वापस भिक्षा मांगने निकला। एक बार फिर उसका सामना श्री कृष्ण और अर्जुन से हुआ। उसने पूरा घटनाक्रम बताया, तो अर्जुन को लगा कि इसके भाग्य में धन है ही नहीं। ऐसा सोचकर उसने वापस सहायता ना की। इस बार श्री कृष्ण ने दो पैसे निकाल कर ब्राह्मण को दिए। अर्जुन ने कहा कि जब मेरा दिया इतना धन इसके काम ना आ सका, तो दो पैसे से क्या होगा? श्री कृष्ण मुस्कुरा दिए।

ब्राह्मण खुशी से चिल्ला उठा- मिल गया

इधर, ब्राह्मण के मन में भी यही विचार आया। वह अपने घर की तरफ जा रहा था कि उसने मछुआरे के जाल में एक मछली तड़पती देखी। उसने विचार किया कि दो पैसे से मेरा तो कुछ ना होगा, क्यों ना इस मछली के प्राण बचा लूं। ऐसा सोचकर उसने दो पैसे में वह मछली ले ली और उसे कमंडल में डाल कर वापस नदी में छोड़ने गया। ज्यों ही उसने मछली को उठाया, उसके मुंह से कमंडल में कुछ गिरा। ब्राह्मण ने कमंडल में देखा, तो वही रत्न था, जो अर्जुन ने एक दिन पहले दिया था। ब्राह्मण खुशी से चिल्ला उठा- मिल गया, मिल गया। इसी समय वह डाकू पास से निकल रहा था। उसे लगा कि ब्राह्मण ने उसे पहचान लिया है और अब राजसैनिकों से बोलकर उसे जेल भेज देगा। वह फौरन ब्राह्मण के पैरों पर गिर पड़ा और मोहरों की थैली वापस लौटा दी।

हे अर्जुन! यह व्यक्ति की नीयत की बात है...

जब अर्जुन को इस घटना का पता चला, तो उसने हैरानी से श्री कृष्ण से पूछा कि यह कैसे संभव हुआ? आखिर मात्र दो पैसे ने उसे सब कैसे दिलवा दिया। श्री कृष्ण ने कहा कि हे अर्जुन! यह व्यक्ति की नीयत की बात है। जब तक मनुष्य केवल अपने बारे में सोचता है, वह अकेला होता है। जब तुमने ब्राह्मण को धन दिया, तो उसने केवल अपने और परिवार के बारे में सोचा और वह अकेला रह गया। मेरे दो पैसे पाते ही उसमें परमार्थ जाग गया। उसने अपने बारे में ना सोचकर उस मछली के बारे में पहले सोचा। इसी समय परमात्मा स्वयं उसके साथ खड़े हो गए। याद रखना अर्जुन, जैसे ही हृदय में परमार्थ जागता है, परमात्मा स्वयं सहायक बनकर व्यक्ति के साथ खड़े हो जाते हैं और बिगड़े काम स्वयं बन जाते हैं।

Note: तो याद रखिए दोस्तों, संसार में अपना भला तो सभी सोचते हैं। जब हम दूसरों के बारे में पल भर भी सोचते हैं, तो हम परमात्मा की कृपा के अधिकारी हो जाते हैं। इस तरह परोक्ष रूप से हम अपना ही भला कर रहे होते हैं।

यह पढ़ें: Must Read: राधा में समाया है ब्रह्मांड का पुण्ययह पढ़ें: Must Read: राधा में समाया है ब्रह्मांड का पुण्य

Comments
English summary
Charity is considered as one of the seven virtues and is understood by Thomas Aquinas as the friendship of man for God, which unites us to God.
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
For Daily Alerts
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X