बसंत पंचमी विशेष: या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता...
वसंत पंचमी का त्योहार हिंदू धर्म में एक विशेष महत्व रखता है। इस दिन विद्या की देवी सरस्वती की पूजा की जाती है। यह पूजा पूर्वी भारत में बड़े उल्लास से की जाती है। इस दिन स्त्रियाँ पीले वस्त्र धारण कर पूजा-अर्चना करती हैं। पूरे साल को जिन छः मौसमों में बाँटा गया है, उनमें वसंत लोगों का मनचाहा मौसम है।
बसंत/वसंत पंचमी का पर्व-त्यौहार इस वर्ष 4 फरवरी 2014 (मंगलवार) को मनाया जा रहा है। पंचमी तिथि 3 फरवरी को दोपहर 2.35 से आज दोपहर 1.01 बजे तक रहेगी। इसके साथ ही दिवस पर्यंत रेवती नक्षत्र होगा।
जब फूलों पर बहार आ जाती है, खेतों में सरसों का सोना चमकने लगता है, जौ और गेहूँ की बालियाँ खिलने लगती हैं, आमों के पेड़ों पर बौर आ जाती है और हर तरफ तितलियाँ मँडराने लगती हैं, तब वसंत पंचमी का त्योहार आता है। इसे ऋषि पंचमी भी कहते हैं।
वसंत का मौसम
भारतीय पंचांग अनुसार मौसम को छह भागों में बाँटा गया है उनमें से एक है वसंत का मौसम। इस मौसम से प्रकृति में उत्सवी माहौल होने लगता है। वसंत ऋतु आते ही प्रकृति के सभी तत्व मानव, पशु और पक्षी उल्लास से भर जाते हैं। वसंत आते-आते शीत ऋतु लगभग समाप्त होने लगती है।
सरस्वती को बागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणावादनी और वाग्देवी सहित अनेक नामों से पूजा जाता है। संगीत की उत्पत्ति करने के कारण वह संगीत की देवी भी हैं।वसंत पंचमी के दिन को इनके जन्मोत्सव के रूप में भी मनाते हैं।
कथा
पुराणों के अनुसार श्रीकृष्ण ने सरस्वती से खुश होकर उन्हें वरदान दिया था कि वसंत पचंमी के दिन तुम्हारी भी आराधना की जाएगी। इस कारण हिंदू धर्म में वसंत पंचमी के दिन विद्या की देवी सरस्वती की पूजा की जाती है।
देवी भागवत में उल्लेख है कि माघ शुक्ल पक्ष की पंचमी को ही संगीत, काव्य,कला, शिल्प, रस, छंद, शब्द व शक्ति की प्राप्ति जीव को हुई थी। सरस्वती को प्रकृति की देवी की उपाधि भी प्राप्त है।
वैसे
सायन
कुंभ
में
सूर्य
आने
पर
वसंत
शुरू
होता
है।
इस
दिन
से
वसंत
राग,
वसंत
के
प्यार
भरे
गीत,
राग-रागिनियां
गाने
की
शुरुआत
होती
है।
इस
दिन
सात
रागों
में
से
पंचम
स्वर
(वसंत
राग)
में
गायन,
कामदेव,
उनकी
पत्नी
रति
और
वसंत
की
पूजा
की
जाती
है।
इस दिन सैंकड़ों स्थानों पर सामूहिक आयोजन किया जाता है। माता सरस्वती की पूजा में मूर्तियों के साथ पलाश की लकड़ियों, पत्तों और फूलों आदि का उपयोग किया जाता है।
विधि-विधान के साथ पूजन, पुष्पांजलि और आरती के साथ पूजा संपन्न होती है। रातभर भक्ति संगीत के साथ अगले दिन सरस्वती की मूर्तियों को नदी में विसर्जन किया जाता है।