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वर महालक्ष्‍मी पर्वः सोलह शृंगार के बाद होती है मां लक्ष्मी की विधिवत पूजा

By Bhavna Pandey
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बंगलुरू। दक्षिण भारत के राज्‍यों में मनाया जाने वाला प्रमुख वर महालक्ष्‍मी त्‍योहार शुक्रवार को बड़ी धूमधाम से मनाया जा रहा है। इस अवसर पर महिलाओं ने वरदान के सर्वश्रेष्‍ठदात्री वरमहालक्ष्‍मी देवी के अष्‍ट स्‍वरूप आदि, धन धान्‍य, धैर्य, सौभाग्य, विजय, संतान तथा विद्या रूप का पूजन किया। इस पूजा को अष्‍टपूजन भी कहा जाता है।

इस पर्व पर महिलाएं परिवार की संपन्‍नता, शांति, कीर्ति और सुख की कामना करती हैं। इस अवसर पर मां लक्ष्‍मी की कलश और नारियल के माध्‍यम से आकार दिया जाता है और फिर देवी को सिल्क साड़ी और सोने चांदी और हीरे में जड़े आभूषण पहना कर विधिवत शृंगार के बाद मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है। मां के शृंगार के बाद उनका यह रूप और भी आकर्षक दिखता है।

var mahalaxmi

उत्‍तर भारतीय भी अब मनाने लगे हैं यह त्‍योहार

कर्नाटक, आन्‍ध्र प्रदेश और तमिलनाडु में बसे उत्तर भारतीय परिवार जो यहां के रंग में रच बस चुके है उन्‍होंने भी वरदान के सर्वश्रेष्‍ठदात्री वरलक्ष्‍मी देवी से अर्शीवाद प्राप्‍त करने के लिए यह त्‍योहार विधिविधान से मनाया। यह पर्व श्रावण मास की पूर्णिमा के ठीक पहले पड़ने वाले प्रथम शुक्रवार को मनाया जाता है। क्‍यों‍कि यह पर्व धन और सुख शांति प्रदान करने वाली लक्ष्‍मी देवी की अराधना से जुड़ा हुआ है इसलिए अन्‍य प्रान्‍तोंं केेलोगों में यह त्‍योहार लोकि‍प्र‍िय होता जा रहा है।

स्‍कंद पुराण में वरमहालक्ष्‍मी व्रत का बताया गया है महत्‍व

वर महालक्ष्‍मी व्रत का महत्व 'स्कंद पुराण' में बताया गया है। वरलक्ष्मी व्रत का मुख्य उद्देश्य देवी लक्ष्मी से दिव्य आर्शीवाद प्राप्‍त करने के लिए सच्ची प्रार्थना करना है। इस व्रत के पालन के लिए कोई सख्त नियम नहीं हैं। कहा जाता है कि इसका अनुष्ठान कठोर नहीं हैं और यहां तक ​​कि एक सरल प्रार्थना भी देवी वरलक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए पर्याप्त है।

जैसा कि हिंदू पौराणिक कथाओं में उल्लेख किया गया है, देवी लक्ष्मी समृद्धि, धन, भाग्य, ज्ञान, प्रकाश, उदारता, साहस और उर्वरता के देवी हैं। महिलाएं, विशेष रूप से विवाहित, देवी लक्ष्मी को प्रसन्न करने और उनकी दिव्य कृपा प्राप्त करने के लिए इस व्रत को करती हैं। वह अपने पति की लंबी उम्र के लिए देवी से प्रार्थना करती हैं और अपनी संतान के लिए आशीर्वाद भी मांगती हैं। वरलक्ष्मी व्रत मुख्य रूप महिलाओं द्वारा मनाया जाता है जिसमें पूरा परिवार और सगे संबंधी शामिल होते हैं।

कब मनाया जाता है वरमहालक्ष्मी पर्व
वर महालक्ष्मी व्रत को आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, उत्तर तमिलनाडु और तेलंगाना में पूरे उत्साह और विश्वास के साथ मनाया जाता है। इस पर्व को यहां वरालक्ष्मी भी कहा जाता है 'वर' या 'वरम' अर्थात वरदानों की सर्वश्रेष्ठ दात्री व्रत श्रावण मास में पूर्णिमा से ठीक पहले, दूसरे शुक्रवार को मनाया जाता है।

विवाहित महिलाएँ इस पवित्र वरलक्ष्मी व्रत को पूरे परिवार, विशेष रूप से अपने पति और बच्चों के लिए रखती हैं। हिंदू शास्त्रों के अनुसार, यह एक मजबूत धारणा है कि इस शुभ दिन में देवी लक्ष्मी की पूजा करना अष्टलक्ष्मी - प्रेम, धन, बल, शांति, प्रसिद्धि, सुख, पृथ्वी और शिक्षा के आठ देवी-देवताओं की पूजा करने के बराबर है।

वर महालक्ष्मी पूजा करने की विधि

वरलक्ष्मी व्रत की तैयारी महिलायें एक दिन पूर्व से आरंभ कर देती हैं पूजा के लिए आवश्यक चीजें एक दिन पहले इकट्ठी की जाती हैं। श्रावण मास में पुर्णिमा के पहले आने वाले पहले शुक्रवार के दिन, ब्रह्म मुहूर्त में (सुर्योदय से ठीक पहले का समय) स्नान करने के बाद सुहागन घर और पूजा स्थल की सफाई करती हैं और घर की चौखट और पूजा स्‍थल को आम और केलों के पत्‍तों और फूलों से सजाती और द्वार पर सुंदर रंगोली बनाती है।

चांदी या कांसे के 'कलश' को चंदन से साफ करके उस पर स्वस्तिक 'का चिन्‍ह बनाती है फिर कलश में पानी या कच्चा चावल, सिक्के, सुपारी और पांच अलग-अलग तरह के पत्ते भरती हैं। 'कलश' के अंदर भरने वाली वस्‍तुएं क्षेत्रों के अनुसार अलग अलग होती हैं। कलश फिर साफ कपड़े से और मुंह को आम के पत्तों से ढ़क दिया जाता है।

अंत में, कलश के मुख को ढ़कने के लिए हल्‍दी से रंगा हुआ नारियल रखा जाता हैं। यह कलश चावल के ढे़र पर रखा जाता है। इसके बाद नारियल पर, हल्दी के साथ देवी लक्ष्मी की एक तस्वीर बनायी जाती हैं या उस पर चांदी से बना लक्ष्‍मी देवी का मुखौटा पहनाया जाता है। नयी साड़ी पहना कर देवी आभूषणों और कुमकुम हल्‍दी से देवी का पूरा श्रृंगार किया जाता है।

महिलायें घर में मौजूद सोने के गहने लक्ष्‍मी मां को पहनाती हैं। देवी वरलक्ष्मी के सजाये गये स्‍वरूप की पूरी श्रद्धा के साथ पूजा करती है्। भक्त पहले भगवान गणेश की पूजा करके पूजा शुरू करते हैं। देवी लक्ष्मी की स्तुति,लक्ष्मी सहस्रनाम का पाठ करके पूजा शुरू होती है। प्रसाद के रूप में घर पर विशेष मिठाइयाँ और पकवान बना जाती हैं। पोंगल को प्रसाद के रूप में भी चढ़ाया जाता है। वरमहालक्ष्‍मी की आरती की जाती है। पूजा के दौरान, महिलाएं हाथों में एक पीला धागा बांधती हैं। कुछ स्थानों पर, कलश के पीछे एक दर्पण भी रखा जाता है।

कुमकुम हल्‍दी के लिए सुहागन महिलाओं को घर में करती हैं आमंत्रित

कुछ स्थानों पर, पूजा के समापन तक महिलाएं उपवास रखती हैं और विवाहित महिलाओं को अपने घर कुमकुम हल्‍दी के लिए आमंत्रित करती हैं। उनके आने पर उन्‍हें कुमकुम हल्‍दी और सुहाग का सामान के साथ नारियल और पुष्‍प भेंट करती हैं।

पूजा के एक दिन बाद, शनिवार को श्रद्धालु स्नान करते हैं और फिर पूजा में इस्तेमाल किए कलश को हटाते हैं। पूजा में रखा प्रयोग किये कलश के अंदर पानी और चावल को पूरे घर में परिवार की सुख शांति और संपन्‍नता के लिए छिड़का जाता है।

यह भी पढ़ें-खूब बरसेगा धन जब करेंगे वरलक्ष्मी व्रत, जानिए पूजा विधि

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English summary
Var Mahalakshmi festival mostly celebrated in the south India.Today people of south region celebrating the festival with great pomp. On this occasion, the women worshiped the form of Adi, money grain, patience, good luck, victory, child and wisdom
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