Vaishakha Amavasya: पितरों को मोक्ष दिलाती है वैशाख अमावस्या
नई दिल्ली। वैशाख माह हिंदू वर्ष का दूसरा माह होता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इसी माह से त्रेता युग का आरंभ हुआ था। इसलिए संपूर्ण वैशाख माह अपने आप में अत्यधिक पवित्र और पुण्यदायी होता है। इस माह में आने वाली अमावस्या का भी बड़ा महत्व है। दक्षिण भारत में वैशाख अमावस्या पर शनि जयंती मनाई जाती है। धर्म-कर्म, स्नान-दान और पितरों के निमित्त तर्पण के लिए यह अमावस्या बहुत महत्व रखती है। इस दिन कालसर्प दोष, शनि की शांति के लिए भी पूजा करवाई जाती है। इस वर्ष वैशाख अमावस्या 4 मई को आ रही है। इस दिन शनिवार होने के कारण शनैश्चरी अमावस्या का संयोग भी बन गया है। वैशाख माह और उसमें भी शनि अमावस्या का संयोग अनेक वर्षों में बनता है, इसलिए अपने जीवन की समस्याओं का निवारण और कुंडली के अशुभ दोषों का शमन करने के लिए इस अमावस्या पर विशेष पूजा अवश्य करें।
वैशाख अमावस्या की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीनकाल में धर्मवर्ण नाम का एक ब्राह्मण था। वह बहुत ही धार्मिक, दयालु और ऋषि मुनियों का सम्मान करने वाला ब्राह्मण था। एक बार उन्होंने ऐसे ही किसी संत से सुना कि भगवान विष्णु के नाम स्मरण से ज्यादा पुण्य किसी अन्य कार्य में नहीं। धर्मवर्ण ने इस बात को अपने जीवन में उतार लिया और सांसारिक जीवन त्यागकर संन्यास ग्रहण कर लिया। एक दिन विचरण करते हुए वह पितृलोक पहुंचा। वहां धर्मवर्ण को अपने पितर मिले। वे बड़े कष्ट में थे। पितरों ने उसे बताया कि उनकी ऐसी हालत तुम्हारे संन्यास लेने के कारण हुई है। क्योंकि अब उनके लिए तर्पण, पिंडदान करने वाला कोई नहीं है। यदि तुम वापस जाकर गृहस्थ जीवन की शुरुआत करो, संतान उत्पन्न करो तो हमें शांति मिलेगी। साथ ही वैशाख अमावस्या के दिन पिंडदान करो। धर्मवर्ण से अपने पितरों की ऐसी दशा देखी नहीं गई। उसने संन्यासी जीवन छोड़कर पुनः गृहस्थ जीवन में प्रवेश किया और वैशाख अमावस्या पर पितरों के निमित्त विधि-विधान से तर्पण, पिंडदान, दानकर्म आदि किए। इस प्रकार उसने अपने पितरों को मुक्ति दिलाई।
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वैशाख अमावस्या पर क्या उपाय करें
- इस दिन किसी पवित्र नदी, जलाशय, कुएं आदि में स्नान करें और सूर्य को अर्घ्य देकर बहते हुए जल में तिल प्रवाहित करें। इससे कार्यों में आ रही रूकावटें दूर होती है।
- पितरों की शांति के लिए तर्पण, पिंडदान करें और अमावस्या का व्रत रखें। किसी गरीब व्यक्ति को भोजन करवाकर उचित दान-दक्षिणा दें।
- वैशाख अमावस्या पर शनि जयंती भी मनाई जाती है। इस दिन शनिदेव को तिल, तेल और नीले पुष्प अर्पित करने से संकटों का नाश होता है।
- अमावस्या के दिन पीपल के पेड़ में सुबह के समय जल अर्पित करें और शाम के समय पेड़ के नीचे दीपक जलाएं। गरीबी दूर होगी।
- निर्धन और जरूरतमंदों को भोजन, वस्त्र, अन्न का दान करने से आर्थिक संकटों का समाधान होता है।
- वैशाख अमावस्या पर गाय को हरा चारा, कुत्ते को ताजी रोटी खिलाएं, पक्षियों को सूखा अनाज और बंदरों को फल जरूर खिलाएं। इससे आपका भाग्योदय होगा।
- अमावस्या के दिन मछलियों को आटे की गोली बनाकर खिलाएं। काली चीटियों को शक्कर मिला हुआ आटा डालें। ऐसा करने से अनेक परेशानियों का अंत होता है। पाप कर्मों का नाश होता है और पुण्य कर्म उदय होते हैं। इस प्रयोग से भाग्य के रास्ते में आ रही रूकावटें दूर होती हैं।
- इस दिन कालसर्प दोष की शांति करने का विधान है। इसके लिए सुबह स्नान करने के बाद चांदी से निर्मित नाग-नागिन के जोड़े की पूजा करें और सफेद पुष्प के साथ इसे बहते जल में प्रवाहित करें। कालसर्प की शांति का यह अचूक उपाय है।
- बेराजगार व्यक्ति अमावस्या की रात में 1 नीबू अपने घर के पूजा स्थान में रखें। रात के समय इसे सात बार बेरोजगार व्यक्ति के सिर पर से उतारें और चार बराबर भागों में काटकर किसी चौराहे पर जाकर चारों दिशाओं में चुपचाप डाल आएं। इससे रोजगार की समस्या शीघ्र ही दूर हो जाती है।
- अमावस्या प्रारंभ 4 मई तड़के 4.03 बजे से
- अमावस्या पूर्ण 5 मई तड़के 4.15 बजे तक
लक्ष्मी को प्रिय है अमावस्या
अमावस्या तिथि पर जहां शनि, राहु-केतु और कालसर्प जैसे दोषों की शांति का महत्व है, वहीं अमावस्या तिथि का महत्व लक्ष्मी से भी जुड़ा हुआ है। दीपावली भी अमावस्या के दिन ही मनाई जाती है। इसलिए प्रत्येक अमावस्या पर लक्ष्मी को प्रसन्न करने के उपाय किए जा सकते हैं। अमावस्य पर मां लक्ष्मी की साधना-आराधना विशेष तौर पर की जाती है। इस दिन कनकधारा यंत्र की पूजा करके रात भर कनकधारा स्तोत्र का पाठ किया जाए तो धन की वर्षा होती है। यानी व्यक्ति के जीवन में कभी आर्थिक संकट नहीं रह जाता। वह जिस काम में हाथ डालता है उसमें सफलता मिलती है।
अमावस्या तिथि कब से कब तक
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