Inspirational Story: गलतियां सिखाती हैं असली सबक
नई दिल्ली। संसार में आर्थिक असमानता का स्तर आज किसी से छिपा नहीं है। धनी और अधिक धन कमा रहा है और निर्धन गर्त में जा रहा है। इस स्थिति को कुछ लोग किस्मत का खेल मानकर अपने आपको संतुष्ट कर लेते हैं, कुछ जीवन के सारे सुख छोड़कर केवल धन कमाने में लग जाते हैं। कुछ लोग ऐसे भी होते हैं, जो उधार लेकर अपने जीवन की लालसाएं पूरी करने का झूठा प्रयास करते हैं।
आज हम इस तीसरे वर्ग के संदर्भ में एक रोचक कथा का आनंद लेते हैं और यह देखते हैं कि दिखावे की यह राह कितनी भारी पड़ सकती है...
रामलाल जी संपन्न आर्थिक स्थिति वाले व्यक्ति थे। आर्थिक संदर्भ में वे दूसरे वर्ग में आते थे अर्थात् उन्होंने पूरा जीवन पैसा कमाने में ही लगाया था और बुढ़ापे में अपनी संपत्ति देख अति प्रसन्न रहा करते थे। हालांकि वे कंजूस नहीं थे, पर जबरन पैसा उड़ाना, दिखावा करना उन्हें नापसंद था। वे सादगीपूर्ण जीवन जीने के पक्षधर थे। रामलाल जी का छोटा, साधारण-सा मकान था और एक ही बेटा था। बेटे का विवाह हो चुका था। उसे यह साधारण रहन-सहन पसंद ना था। वह रईसी वाला जीवन जीना पसंद करता था।
कई बार गलतियां वो सबक सिखा देती हैं
जब दो विपरीत स्वभाव वाले व्यक्ति एक ही छत के नीचे रहते हैं, तो रोज-रोज की किचकिच होना आम बात हो जाती है। यही हाल रामलाल जी के घर का हुआ। उन्होंने लाख समझाया, पर बेटा ना माना। एक दिन रामलाल जी चिंता में डूबे मंदिर में बैठे थे, तभी पंडित जी ने आकर हाल पूछा। रामलाल जी ने दिल खोलकर सारा मामला बता दिया। पंडित जी ने कहा- रामलाल जी, जब कोई समझाने से ना समझे, तो उसे गलती कर लेने दें। कई बार गलतियां वो सबक सिखा देती हैं, जो उदाहरण नहीं सिखा पाते।
हमारे विचार अलग हैं, घर में कलह रहती है
उनकी बात मानकर रामलाल जी ने बेटे से कहा कि हमारे विचार अलग हैं, घर में कलह रहती है। अच्छा होगा कि तुम अपनी रूचि के अनुसार मकान ले लो और मनचाहा जीवन जियो। हम अलग नहीं हैं, आना-जाना करते रहना। बेटा तुरंत ही सहमत हो गया। इसके साथ ही उसने बड़ा मकान, गाड़ी सब लोन पर ले ली। आए दिन उसके घर पर बड़ी पार्टियां होतीं, उसकी रईसी के चर्चे होते। पर माया महाठगिनी होती है, वह उसी के यहां टिकती है, जो उसे पूजता है, संचित करता है। दोनों हाथ से धन लुटाने से साल भर में ही बेटा कंगाली के रास्ते पर आ गया। घर, गाड़ी सब बैंक वाले जब्त कर गए। जब कोई रास्ता ना बचा, तब वह पत्नी समेत पिता के चरणों में गिर पड़ा। रामलाल जी ने उसे प्रेम से गले लगा लिया। उसकी गलती पर कोई बात ना की। आखिर बोलने को बचा ही क्या था? जो बात वह सिखाना चाहते थे, गलतियों ने वह सबक खुद ही सिखा दिया था।
जीवन में सुख पाना है, तो मन को थामना ही पड़ता है
दोस्तों, यही जीवन की सच्चाई है। दुनिया में मनमोहक वस्तुओं का अंबार लगा है और मानव का मन ऐसा है कि उसकी लालसा कभी खत्म नहीं होती। पर जीवन में सुख पाना है, तो मन को थामना ही पड़ता है। भौतिक वस्तुएं, विशेष रूप से उधारी की वस्तुएं कभी सुख नहीं दे सकतीं। अपनी चादर देखकर पैर पसारने में ही समझदारी होती है।
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