यहां करें मां कालिका की दक्षिण मुखी प्रतिमा के दर्शन, 40Km2 में फैले पर्वत की उम्र है 8 करोड़ साल
अहमदाबाद। दुनिया में सर्वाधिक मंदिरों वाले देश भारत, म्यांमार और इंडोनेशिया हैं। हिंदू समुदाय के सर्वाधिक अनुयायी भी भारत में हैं। यहां 90 करोड़ से ज्यादा हिंदू हैं, जिनके लिए हजारों मंदिर हैं। हर मंदिर की कुछ न कुछ कहानी रही है, मान्यताएं रही हैं। कई मंदिर हजारों टन सोने से बने हैं, तो बहुत से मंदिरों में भगवान की चांदी-तांबे की प्रतिमाएं मौजूद हैं। देश में कुछ ऐसे मंदिर भी हैं, जो अपने अलग तरह के भोग-प्रसाद के लिए विख्यात हैं। Oneindia.com की 'मंदिर दर्शन' सीरीज के तहत आज हम आपको कराएंगे पावागढ़ स्थित मां कालिका की दक्षिण मुखी प्रतिमा के दर्शन...
1525 फीट ऊंचाई पर स्थित है कालिका मां का मंदिर
गुजरात में पंचमहल जिले की हालोल तहसील से 7 किलोमीटर दूर रमणीय पर्वत की अंतिम चोटी पर जगत जननी मां कालिका का मंदिर है, जहां कालिका की दक्षिण मुखी प्रतिमा स्थापित है। यह मंदिर 1525 फीट ऊंचाई पर स्थित है।
मुनि विश्वामित्र ने यहां की थी कालिका मां की तपस्या
ऐसा कहा जाता है कि रामायण काल में मुनि विश्वामित्र ने यहां कालिका मां की तपस्या की थी। उन्हीं ने प्रतिमा स्थापित कराई थी। कालिका मां की इसी प्रतिमा को पावागढ़ शक्तिपीठ कहा जाता है।
8 करोड़ साल है पावागढ़ पर्वत की उम्र
किवदंतियों के अनुसार, पावागढ़ पर्वत की उम्र लगभग 8 करोड़ साल है। यह पहाड़ 40 वर्ग किलोमीटर के घेरे में फैला हुआ है। प्राचीन काल में इस दुर्गम पर्वत पर चढ़ाई करना असंभव था। चारों तरफ खाइयों से घिरे होने के कारण यहां हवा का वेग भी हर तरफ बहुत ज्यादा रहता था, इसलिए इसे पावागढ़ कहा जाने लगा। यानी, ऐसी जगह जहां पवन (हवा) का वास हमेशा एक जैसा हो।
1471 फीट की ऊंचाई पर 'माची हवेली'
पावागढ़ की पहाड़ियों के नीचे चंपानेर नगरी है, जिसे महाराज वनराज चावड़ा ने अपने बुद्धिमान मंत्री के नाम पर बसाया था। पावागढ़ पहाड़ी की शुरुआत चंपानेर से होती है। 1471 फीट की ऊंचाई पर 'माची हवेली' है।
250 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं मंदिर तक पहुंचने लिए
मंदिर तक जाने के लिए माची हवेली से रोप-वे की सुविधा उपलब्ध है। फिर वहां से पैदल मंदिर तक पहुंचने लिए लगभग 250 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं।
दिगंबर जैन समुदाय के भी 7 मंदिर
इतना ही नहीं, इसी पर्वत पर दिगंबर जैन समुदाय के भी 7 मंदिर हैं। माता का यह प्रसिद्ध मंदिर मां के शक्तिपीठों में से एक है। शक्तिपीठ उन पूजा स्थलों को कहा जाता है, जहां सती मां के अंग गिरे थे।
सती के दाहिने पैर का अंगूठा गिरा था
पौराणिक कथाओं के अनुसार, पावागढ़ में सती के दाहिने पैर का अंगूठा गिरा था, इसलिए यह स्थल पूजनीय और पवित्र माना जाता है।
दोनों नवरात्र में उमड़ती है भक्तों की भीड़
पावागढ़ पहाड़ी की शुरुआत प्राचीन गुजरात की राजधानी चंपानेर से होती है। यहां स्थित मंदिर पर आम दिनों के अलावा दोनों नवरात्र के दौरान भक्तों की भीड़ उमड़ती है।
इन राज्यों के भक्त आते हैं दर्शन करने
गुजरात के ही नहीं, अपितु राजस्थान, मध्यप्रदेश आदि राज्यों के भक्त भी माता के दर्शन करने पहुंचते हैं।
विश्वामित्र के ही नाम पर पड़ा नदी का नाम
यहां बहने वाली नदी का नाम विश्वामित्र के नाम पर ही विश्वामित्री पड़ा। ऐसी मान्यता है कि भगवान राम के बेटे लव और कुश के अलावा बहुत से बौद्ध भिक्षुओं ने यहां मोक्ष प्राप्त किया था।