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नवरात्रि 2019:जानिए क्यों हुआ था महिषासुर मर्दिनी का जन्म?

By पं. गजेंद्र शर्मा
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नई दिल्ली। नवरात्र में देवी के जिस अनंत तेजयुक्त अवतार की आराधना की जाती है, वे हैं लक्ष्मीस्वरूपा महिषासुर मर्दिनी। अधिकांश स्थानों पर देवी की स्थापना में आधे भैंसे और आधे मनुष्य शरीर वाले असुर का संहार करती हुई जिस सौम्य मूर्ति के दर्शन होते हैं, वे यही मां महिषासुर मर्दिनी ही हैं। इनकी शक्ति, युद्धकौशल, प्राकट्य और तेज के अनुरूप इन्हें अनेक नामों से जाना जाता है, लेकिन महिषासुर नाम इतना अधिक विख्यात है कि वह शक्तिस्वरूपा मां दुर्गा का पर्याय ही बन गया है।

जन्म किसी खास बात के लिए

जन्म किसी खास बात के लिए

देवी के प्रत्येक स्वरूप का जन्म किसी विशेष प्रयोजन के लिए हुआ है। प्राचीन काल में दैत्यकुल में महाप्रतापी, महाबली राजा महिषासुर हुआ करता था। वह रूप बदलने की विद्या में पारंगत था और जो ठान लेता था, करके ही मानता था।

घोर तपस्या से ब्रह्मा जी को प्रसन्न कर लिया

घोर तपस्या से ब्रह्मा जी को प्रसन्न कर लिया

ऐसे महाधुर्त दैत्य महिषासुर ने अपनी घोर तपस्या से ब्रह्मा जी को प्रसन्न कर लिया और उनसे वरदान मांगा कि संसार का कोई और किसी भी प्रजाति का नर उसे ना मार सके। इस तरह का वरदान पाकर वह एक प्रकार से अमर हो गया और उसने पृथ्वी और पाताल पर अधिकार करने के बाद स्वर्गलोक पर आक्रमण कर दिया।

यह युद्ध पूरे 100 वर्षों तक चला

यह युद्ध पूरे 100 वर्षों तक चला

कहते हैं कि यह युद्ध पूरे 100 वर्षों तक चला, जिसके अंत में देवताओं की हार हुई। इस युद्ध के बाद देवता अपना सारा तेज खोकर आम मानवों की भांति हो गए। ऐसी दुर्दशा में सभी देवता भगवान विष्णु के पास पहुंचे और उनसे इस विपत्ति से पार कराने की प्रार्थना की। देवताओं की दुर्दशा देखकर विष्णु जी क्रोधित हो उठे और उनके शरीर से एक तेजपुंज निकला। इसके साथ ही शिव जी, ब्रह्मा जी और वहां उपस्थित सभी देवताओं के शरीर से तेज निकलना शुरू हो गया। समस्त देवताओं के शरीर से निकला यह तेज एकरूप हो गया और उसने एक विशाल आकृति धारण कर ली। जब इस आकृति का तेज सामान्य हुआ, तब देवताओं ने देखा कि एक महातेजस्वी, अनंत रूपवती देवी साकार हुईं हैं, जिनके तीन नेत्र हैं। इस देवी के अवतरण के साथ ही तीनों भगवान समेत सभी देवताओं ने उन्हें अपनी शक्ति और अस्त्र प्रदान किए।

 खतरनाक हुंकार

खतरनाक हुंकार

सब देवताओं से शक्ति और अस्त्र पाकर देवी ने एक खतरनाक हुंकार भरी। वह हुंकार ऐसी तीव्र और भयानक थी कि पूरेे ब्रह्मांड में व्याप्त हो गई। उस हुंकार को सुन महिषासुर अपने सारे सैनिकों और महाभयंकर राक्षसों के साथ देवी को मारने दौड़ा। देवी ने देखते ही देखते उसकी अधिकांश सेना को सेनापतियों समेत समाप्त कर दिया। इसके बाद महिषासुर ने अनेक रूप धरकर महादेवी के साथ प्रचंड युद्ध किया। वह कभी शेर का रूप रखकर देवताओं पर टूट पड़ता, तो कभी भैंसे का रूप रखकर पूरी धरती को ही उखाड़ फेंकता। उसने अनेक प्रकार से देवी को मारने का प्रयास किया, पर अंत में देवी ने चंडिकास्वरूप धारण कर पाश फेंका। महिष अर्थात भैंसे का रूप धारण किए महिषासुर उस पाश में फंस गया और तभी देवी अपने सिंह समेत उछलकर उसके उपर सवार हो गईं। इस स्थिति में भी महिषासुर ने युद्ध जारी रखा और मनुष्य रूप में वापस आने ही लगा था कि देवी ने आधा मनुष्य बनते ही उसका सिर अपने फरसे के एक प्रहार से धड़ से अलग कर दिया। इस तरह महादुष्ट महिषासुर का अंत हुआ और देवताओं ने देवी की जय जयकार करते हुए स्वर्ग का सुख वापस पाया।

सीख

सीख

देवी का महिषासुर रूप साधारण मनुष्यों को भी अनेक तरह की सीख देता है। पहली सीख यह है कि स्त्री कभी स्वयं को कमजोर न समझें। उसमें बुराइयों, दुष्टों को नष्ट करने की पूरी क्षमता मौजूद है। दूसरी सीख यह कि परिवार पर जब भी कोई संकट आता है स्त्री शक्ति ही उससे बाहर निकालती है। स्त्री का धैर्य, संयम, शीलता और साहस परिवार को कठिन परिस्थितियों में भी हिम्मत देता है।

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English summary
Mahishasura Mardini is the incarnation of Goddess Durga who had taken birth to kill the asura king Mahisasura. Mahishasura was the king who ruled the kingdom of Mahisha or Mahishaka.
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