भारतीय संस्कृति का मूल मंत्र आध्यात्मिकता है: स्वामी अवधेशानंद जी महाराज
संपूर्ण दृश्य-वर्ग के चक्रव्यूह में दृष्टिपात करते ही मनुष्य के समक्ष प्रेय तथा श्रेय दो विरोधी मार्गों की पगडंडियां स्पष्ट झलकती है,प्रेय मार्ग अपेक्षाकृत सहज-सरल सुगम तथा भौतिकीय दृष्टि से आकर्षक प्रतीत होता है किंतु परिणाम में दुखद है जबकि श्रेय मार्ग ही कल्याणकारी-हितकर है ।
नई दिल्ली। पूज्य "सद्गुरुदेव" जी ने कहा - संपूर्ण विश्व-वसुधा एक कुटुंब है। प्रत्येक प्राणी के अधिकार, सम्मान-स्वाभिमान संवेदनाएं अभिरक्षित हों एवं लौकिक-पारलौकिक अनुकूलताओं के सृजन की प्रतिबद्धता के साथ भारतीय संस्कृति एकत्व, सह-अस्तित्व एकात्मकता में विश्वास रखती है, इस दिव्यता को अनुभूत कर हमें अपनी संस्कृति पर गर्व है ..! भारतीय संस्कृति का मूल मंत्र आध्यात्मिकता है। भारतीय संस्कृति की आध्यात्मिकता का आधार ईश्वरीय विश्वास होता है। यहाँ पर विभिन्न धर्मों और मतों में विश्वास रखने वाले लोग आत्मा-परमात्मा के अस्तित्व में विश्वास रखते हैं। हमारी दृष्टि में भगवान ही इस संसार के रचयिता एवं निर्माता हैं। वही संसार का कारण, पालक और संहारकर्ता हैं। त्याग और तपस्या भारतीय संस्कृति के प्राण हैं।
अनेकता में भी एकता यही भारतीय संस्कृति की विशेषता है .
भारतीय संस्कृति के प्रमुख तत्व त्याग के कारण से मनुष्य में संतोष गुण परिपूर्ण रहता है। त्याग की भावना से मनुष्य के मन में दूसरों की सहायता एवं सहानुभूति जैसे गुणों का विकास होता है और स्वार्थ और लालच जैसी बुरी भावनाओं का नाश होता है। यहाँ पर त्याग की भावना में जन-कल्याण की भावना छिपी होती है। संयम भारतीय संस्कृति की प्रमुख विशेषता होती है। भारतीय संस्कृति में उन्मुक्त अथवा स्वच्छन्द सुख भोग का विधान नहीं है। मुक्त सुख भोग से मानव में लालच प्रवृति का उदय होता है और व्यक्ति हमेशा असंतोषी बना रहता है। अतः भारतीय संस्कृति संयम का आदेश देती है। भारत में विभिन्न धर्मों के लोग रहते हैं। वे सभी अपने-अपने धर्मों में विश्वास और निष्ठा रखते हैं और दूसरों के धर्म के प्रति सम्मान भी करते हैं। इस प्रकार अनेकता में भी एकता यही भारतीय संस्कृति की विशेषता है ...।
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भारतीय संस्कृति विश्व की सर्वाधिक समृद्ध संस्कृति
पूज्य "आचार्यश्री" जी ने कहा - भारतीय संस्कृति विश्व की सर्वाधिक प्राचीन एवं समृद्ध संस्कृति है। इसे विश्व की सभी संस्कृतियों की जननी माना गया है। जीने की कला हो या विज्ञान और राजनीति का क्षेत्र, भारतीय संस्कृति का सदैव विशेष स्थान रहा है। अन्य देशों की संस्कृतियाँ तो समय की धारा के साथ-साथ नष्ट होती रही हैं, किन्तु भारत की संस्कृति आदि काल से ही अपने परम्परागत अस्तित्व के साथ अजर-अमर बनी हुई है। भारतीय संस्कृति की एक महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि हजारों सालों के बाद भी यह अपने मूल स्वरूप में जीवित है, जबकि मिस्त्र, असीरिया, यूनान और रोम आदि की संस्कृतियाँ अपने मूल स्वरूप को विस्मृत कर चुकी हैं। भारत में नदियों, वट, पीपल जैसे वृक्षों, सूर्य तथा अन्य प्राकृतिक देवी-देवताओं की पूजा करने का क्रम शताब्दियों से चला आ रहा है।देवताओं की मान्यता, हवन और पूजा-पाठ की पद्धतियों की निरंतरता आज के समय तक अप्रभावित रही है। वेदों में और वैदिक धर्मों में करोड़ों भारतीयों की आस्था और विश्वास आज भी उतना ही है जितना हजारों साल पहले था। गीता और उपनिषदों के संदेश हजारों साल से हमारी प्रेरणा और क्रम का आधार रहे हैं। भारत की सांस्कृतिक परम्परा बहुत सम्पन्न है। संगीत, ललित कला, नृत्य, नाटक, रंगमंच और शिल्पकला आदि सभी सांस्कृतिक परम्परा से प्राप्त हुए है। आध्यात्मिक उन्नति, इच्छाओं के दमन, व्रत अनुष्ठान आदि की दृष्टि से भी हमारा देश महान है। हमारे ऋषि-मुनियों ने उस अदृश्य सत्ता के ज्ञान की आकांक्षा की है। हमारे धार्मिक ग्रंथ आध्यात्मिक ज्ञान के भंडार हैं। भारतीय संस्कृति अपने आप में अनूठी और विश्व की प्राचीनतम संस्कृतियों में से एक है। इसमें अनेक विशेषताऐं विद्यमान हैं। यहाँ की संस्कृति ने प्राकृतिक और सांस्कृतिक पर्यावरण को अपने भीतर रचा-बसा रखा है, तभी तो भारत "विश्वगुरू " के पद पर सुशोभित है ...।
संस्कृति किसी भी देश की आत्मा होती है...
पूज्य "सद्गुरुदेव" जी ने कहा - संस्कृति किसी भी देश, जाति और समुदाय की आत्मा होती है। संस्कृति से ही देश, जाति या समुदाय के उन समस्त संस्कारों का बोध होता है जिनके सहारे वह अपने आदर्शों, जीवन मूल्यों आदि का निर्धारण करता है। संस्कृति का साधारण अर्थ होता है - संस्कार, सुधार, परिष्कार, शुद्धि आदि। भारतीय संस्कृति स्वाभाविक रूप से शुद्ध है जिसमें प्यार, सम्मान, दूसरों की भावनाओं का मान-सम्मान और अहंकार रहित व्यक्तित्व अंतर्निहित है। भारतीय संस्कृति का उद्देश्य मनुष्य का सामूहिक विकास है। उसमें "वसुधैव कटुम्बकम् ..." और "सर्वे भवन्तु सुखिन: ..." के भाव सर्वत्र विद्यमान हैं। भारतीय संस्कृति एक महान जीवनधारा है जो प्राचीनकाल से सतत प्रवाहित है। इस तरह से भारतीय संस्कृति स्थिर एवं अद्वितीय है, जिसके संरक्षण की जिम्मेदारी वर्तमान पीढ़ी पर है। इसकी उदारता और समन्यवादी गुणों ने अन्य संस्कृतियों को समाहित तो किया है, किन्तु अपने अस्तित्व के मूल को सुरक्षित रखा है। एक राष्ट्र की संस्कृति उसके लोगों के हृदयों और आत्मा में बस्ती है। इस प्रकार सर्वांगीनता, विशालता, उदारता और सहिष्णुता की दृष्टि से अन्य संस्कृतियों की अपेक्षा भारतीय संस्कृति अग्रणी स्थान रखती है ...।
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