शनि प्रदोष का शुभ संयोग 6 अक्टूबर को, व्रत से करें शिव को खुश
नई दिल्ली। भगवान शिव को प्रसन्न् करने का सबसे अच्छा साधन होता है प्रदोष व्रत। प्रदोष व्रत त्रयोदशी के दिन होता है। यह प्रत्येक चंद्रमास में दो बार आता है, शुक्लपक्ष त्रयोदशी और कृष्णपक्ष त्रयोदशी। त्रयोदशी तिथि पर कुछ विशेष दिनों का संयोग मिलने से इस व्रत का प्रभाव और भी अधिक बढ़ जाता है। जैसे रविवार, मंगलवार, गुरुवार और शनिवार को त्रयोदशी तिथि आए तो व्रत हजार गुना अधिक फलदायी हो जाता है। यह दिन भगवान शिव को विशेष प्रिय होता है। उनकी प्रसन्न्ता के लिए प्रत्येक गृहस्थ को यह व्रत अवश्य करना चाहिए। खासकर उन्हें जो उत्तम संतान चाहते हैं या जिनकी संतानें रास्ते से भटक गई हैं उन्हें सही राह पर लाने के लिए विशेषरूप से प्रदोष व्रत किया जाता है। यह व्रत पति-पत्नी दोनों साथ में करें तो अधिक शुभ होगा।
कब है प्रदोषकाल
6 अक्टूबर को प्रदोष व्रत किया जाएगा। इस दिन शनिवार होने से शनि प्रदोष का शुभ संयोग बन गया है। प्रदोष की पूजा सायंकाल के समय की जाती है। सायंकाल में सूर्यास्त के बाद 2 घंटे 24 मिनट का समय प्रदोष काल कहलाता है। इस समय में विधि विधान से भगवान शिव और उनके पूरे परिवार का पूजन करना चाहिए। इस व्रत को करने के लिए उदयातिथि नहीं देखी जाती है, क्योंकि पूजा प्रदोषकाल में की जाती है। 6 अक्टूबर को सायं 4 बजकर 40 मिनट से त्रयोदशी तिथि प्रारंभ होगी जो अगले दिन 7 अक्टूबर तक दोपहर 2 बजकर 02 मिनट तक रहेगी। इसलिए प्रदोषकाल 6 अक्टूबर को शाम के समय रहेगा। इस दिन शनिवार होने से इस व्रत का महत्व और बढ़ गया है।
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कैसे करें प्रदोषव्रत की पूजा
प्रदोष के दिन प्रात: सूर्योदय पूर्व उठकर स्नानादि से निवृत्त होकर भगवान शिव की पूजा करें और व्रत का संकल्प लें। यदि किसी विशेष कामना की पूर्ति के लिए व्रत कर रहे हैं तो संकल्प के समय वह कामना भी बोलें। इस दिन अन्न् ग्रहण ना करें। अपनी सामर्थ्य के अनुसार फलाहार किया जा सकता है। शाम के समय प्रदोषकाल प्रारंभ होने से पूर्व पुन: स्नान कर शुद्ध श्वेत वस्त्र धारण करें और पुन: पूजा स्थल पर बैठें। सबसे पहले भगवान श्रीगणेश का पूजन करें। इसके बाद भगवान शिव का पंचामृत और फिर गंगाजल से अभिषेक करके उनका पूजन करें। उन्हें श्वेत वस्त्र भेंट करें। फल और दूध या मावे से बनी मिठाई का भोग लगाएं। इसके बाद प्रदोष व्रत की कथा पढ़े या सुनें। भगवान शिव की कर्पूर से आरती करें। अगले दिन सुबह व्रत का पारणा करें। किसी ब्राह्मण दंपती को भोजन करवाएं या उन्हें भोजन बनाने की सामग्री भेंट करें।
प्रदोष व्रत के लाभ
- प्रदोष व्रत करने वाले दंपती को उत्तम संतान की प्राप्ति होती है। नि:संतान दंपतियों को यह व्रत अवश्य करना चाहिए।
- जिन लोगों की संतानें गलत संगत में पड़कर उल्टे-सीधे काम करने लगी हैं उन्हें सही रास्ते पर लाने के लिए व्रत करें।
- प्रदोष व्रत के प्रभाव से शिवजी की कृपा प्राप्त होती है। इससे आयु और आरोग्य प्राप्त होता है। बीमारियां दूर होती हैं।
- आर्थिक संकटों का नाश होता है। भाग्योदय होता है। यदि संपत्ति की कामना से यह व्रत किया जाए तो वह प्राप्त होती है।