Shani Jayanti 2020: जानिए कैसे हुआ शनिदेव का जन्म
नई दिल्ली। ज्येष्ठ अमावस्या को शनि जयंती के रूप में मनाया जाता है, शनि को नवग्रहों में न्यायाधिपति का पद प्राप्त है। वे लोगों को उनके कर्मों के आधार पर अच्छा-बुरा फल प्रदान करते हैं इसलिए इन्हें कर्म फलदाता भी कहा जाता है। इन्हें ग्रह होते हुए भी देवता का दर्जा प्राप्त है। शनि जयंती के दिन शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए अनेक उपाय किए जाते हैं। यूं तो शनि देव को प्रसन्न करने के लिए प्रत्येक शनिवार को लोग अपनी-अपनी मान्यता और श्रद्धा के अनुसार दान, पूजा करते हैं, लेकिन शनि की कृपा प्राप्त करने के लिए शनि जयंती से अच्छा कोई और दिन नहीं। इस दिन शनि से संबंधित उपाय करके आप भी शनिदेव के कृपा पात्र बन सकते हैं।
कैसे हुआ शनि का जन्म
शनि के जन्म के संदर्भ में स्कंद पुराण के काशीखंड में एक कथा प्रचलित है। जिसके अनुसार शनि, सूर्य देव और उनकी पत्नी छाया के पुत्र हैं। सूर्य देव का विवाह दक्ष की पुत्री संज्ञा से हुआ और कुछ समय पश्चात उन्हें तीन संतानों के रूप में मनु, यम और यमुना की प्राप्ति हुई। इस प्रकार कुछ समय तो संज्ञा ने सूर्य के साथ निर्वाह किया परंतु संज्ञा सूर्य के तेज को अधिक समय तक सहन नहीं कर पाईं, इस वजह से संज्ञा ने अपने तपोबल से हुबहू अपने जैसी दिखने वाली स्त्री छाया को प्रकट किया और उसे सूर्यदेव की सेवा के लिए छोड़कर अपने पिता के पास चली गई। कुछ समय बाद छाया के गर्भ से शनि देव का जन्म हुआ। शनि का अत्यंत काला रंग देखकर सूर्यदेव को शंका हुई कि यह मेरा पुत्र नहीं हो सकता। छाया भगवान शिव की भक्त थी। तब शिव ने प्रकट होकर सूर्यदेव का भ्रम दूर किया और कहा कि ये आपके ही पुत्र हैं। चूंकि शनि छाया के पुत्र हैं इसलिए उनका रंग काला है। सूर्यदेव ने यह बात मान तो ली लेकिन वे उस बालक शनि से घृणा करते थे। तभी से सूर्य और शनि में शत्रुता है। यही कारण है कि ज्योतिष में भी सूर्य और शनि की गणना शत्रुओं के रूप में की जाती है।
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शनि जयंती का महत्व
शनि को क्रूर ग्रह जरूर माना जाता है, लेकिन वे केवल उन्हीं लोगों को दंड देते हैं जो बुरे कर्मों में लिप्त रहते हैं। शनि जयंती का महत्व उन लोगों के लिए ज्यादा बढ़ जाता है, जिनकी जन्म कुंडली में शनि बुरे प्रभाव दिखा रहा हो। जिन्हें शनि की महादशा, अंतरदशा, साढ़ेसाती, ढैया चल रहा हो, इन सब स्थितियों के कारण व्यक्ति भयंकर मानसिक, शारीरिक और आर्थिक परेशानियों से जूझता है। दांपत्य जीवन संकटपूर्ण रहता है और समस्त कार्यों में उसे असफलता हाथ लगती है।
अमावस्या तिथि कब से कब तक
- अमावस्या प्रारंभ 21 मई रात्रि 9.35 बजे से
- अमावस्या समाप्त 22 मई रात्रि 11.07 बजे तक
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