Sankashti Chaturthi 2019: संकट हर लेता है संकट चतुर्थी का व्रत
नई दिल्ली। प्रत्येक माह के शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष को आने वाली चतुर्थी तिथि के दिन भगवान गणेश की पूजा कर व्रत किया जाता है। शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी कहते हैं और कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकट चतुर्थी कहा जाता है। वैसे तो दोनों ही चतुर्थी का अपना-अपना बड़ा महत्व है, लेकिन संकट चतुर्थी को विशेषकर उसके नाम के अनुरूप संकट हरने वाली चतुर्थी कहा जाता है। इस दिन व्रत रखकर भगवान गणेश की पूजा की जाती है। मान्यता है कि संकट चतुर्थी की पूजा करने से जीवन के समस्त संकटों का नाश हो जाता है। संकट चतुर्थी पूरे साल भर की जाती है।
कैसे करें संकट चतुर्थी पूजा
- संकट चतुर्थी के दिन व्रत पूजा करने वाले महिला-पुरुष प्रात: काल सूर्योदय से पहले उठ जाएं।
- स्नान कर स्वच्छ कपड़े पहन लें। इस दिन लाल रंग का वस्त्र धारण करना बेहद शुभ माना जाता है। व्रत की पूर्णता के लिए लाल वस्त्र पहनना शुभ होता है।
- स्नान के बाद गणपति की पूजा करें। गणपति की पूजा करते समय जातक को अपना मुंह पूर्व या उत्तर दिशा की ओर रखना चाहिए।
- सबसे पहले गणपति की मूर्ति को फूलों से अच्छी तरह से सजा लें।
- पूजा में लड्डू, फूल तांबे के कलश में पानी, धूप, चंदन, फलों में केले, श्रीफल रखें।
- गणपति को रोली लगाएं, फूल और जल अर्पित करें।
- विधि विधान से पूजा करने के बाद भगवान गणेश को दुर्वा डालकर लड्डू या मोदक का नैवेद्य लगाए।
- गणपति के सामने धूप-दीप जलाएं और ध्यान करें। गणपति का जो भी मंत्र आप जानते हैं उसका उच्चारण करें। कोई मंत्र ना आता हो तो ऊं गं गणपतयै नम: का ही जाप कर लें।
- पूजा के बाद फल, मूंगफली, खीर, दूध या साबूदाने को छोड़कर कुछ भी न खाएं।
- शाम के समय चांद निकलने से पहले एक बार फिर गणपति की पूजा करें और संकट चतुर्थी व्रत की कथा का पाठ करें या सुनें।
- पूजा समाप्त होने के बाद प्रसाद बाटें। रात को चांद की पूजा करके उसे अर्घ्य दें और व्रत खोलें।
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क्यों की जाती है संकट चतुर्थी
- भगवान श्री गणेश के अनेक व्रतों में संकट चतुर्थी को सबसे अधिक सशक्त और शीघ्र प्रभावी माना गया है।
- संकट चतुर्थी व्रत और पूजा करने से घर के सभी नकारात्मक प्रभाव दूर होते हैं। घर में शुभता आती है।
- रिद्धि सिद्धि के दाता श्री गणेश इस दिन व्रत-पूजा करने वाले को समस्त प्रकार के सुख-सौभाग्य प्रदान करते हैं।
- हर प्रकार के संकट इस व्रत से दूर हो जाते हैं। किसी विशेष संकट को दूर करने की कामना और संकल्प लेकर यह व्रत किया जाए और सालभर में आने वाली सभी संकट चतुर्थी पर व्रत रखकर पूजा की जाए तो वह कामना अवश्य पूरी होती है।
यह है संकट चतुर्थी व्रत कथा
एक बार माता पार्वती और भगवान शिव नदी के पास बैठे हुए थे, तभी अचानक माता पार्वती ने चौपड़ खेलने की इच्छा जताई। लेकिन समस्या यह थी कि वहां उन दोनों के अलावा तीसरा कोई नहीं था जो खेल में निर्णायक की भूमिका निभाए। इसका समाधान निकालते हुए शिव और पार्वती ने मिलकर एक मिट्टी की मूर्ति बनाई और उसमें जान डाल दी। मिट्टी से बने बालक को दोनों ने यह आदेश दिया कि तुम खेल को अच्छी तरह से देखना और यह फैसला लेना कि कौन जीता और कौन हारा। खेल शुरू हुआ, जिसमें माता पार्वती बार-बार भगवान शिव को मात देकर विजयी हो रही थीं।
बालक की इस गलती ने माता पार्वती को बहुत क्रोधित कर दिया
खेल चलता रहा, लेकिन एक बार गलती से बालक ने माता पार्वती को हारा हुआ घोषित कर दिया। बालक की इस गलती ने माता पार्वती को बहुत क्रोधित कर दिया जिसकी वजह से गुस्से में आकर बालक को श्राप दे दिया और वह लंगड़ा हो गया। बालक ने अपनी भूल के लिए माता से बहुत क्षमा मांगी। बालक के निवेदन को देखते हुए माता ने कहा कि अब श्राप वापस तो नहीं हो सकता, लेकिन वह एक उपाय बता सकती हैं जिससे वह श्राप से मुक्ति पा सकेगा। माता ने कहा कि संकट चतुर्थी वाले दिन पूजा करने इस जगह पर कुछ कन्याएं आती हैं, तुम उनसे व्रत की विधि पूछना और उस व्रत को सच्चे मन से करना। बालक ने व्रत की विधि जानकर श्रद्धापूर्वक और विधि अनुसार उसे किया। उसकी आराधना से भगवान गणेश प्रसन्न् हुए और उसकी इच्छा पूछी।
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