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Anxiety and Depression: समय में छिपा है चिंता का समाधान

By Pt. Gajendra Sharma
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नई दिल्ली। जीवन का मूल स्वभाव आनंद है, पर विविध प्रकार की सार्थक, निरर्थक समस्याओं में उलझकर मनुष्य ने स्वयं को इतना चिंताग्रस्त कर लिया है कि हम सुख को भूल गए हैं। आज किसी भी परिचित से चर्चा कर लीजिए, यही सुनने को मिलता है कि हम बड़े परेशान हैं। स्थिति यह है कि बिना चिंता के लोग जीना भूल गए हैं। यहां तक कि एक आम वाक्य सुनने को मिलने लगा है कि मनुष्य का जीवन मिला है, तो समस्याएं होंगी ही और समस्याएं हैं, तो चिंताएं सताएंगी ही। क्या यह सत्य है? क्या ईश्वर ने हमें इसीलिए जीवन दिया है कि हम उसे चिंताओं में बिता दें? बिल्कुल नहीं। जीवन एक अमूल्य वरदान है, जिसके पल पल को पूरी आस्था, पूरे विश्वास और और भरपूर आनंद के साथ जीना चाहिए।

एक जीवात्मा 84 लाख योनियों में भ्रमण करती है...

एक जीवात्मा 84 लाख योनियों में भ्रमण करती है...

शास्त्रों में बताया गया है कि जब एक जीवात्मा 84 लाख योनियों में भ्रमण करती है, उसके बाद उसे मनुष्य योनि में जन्म मिलता है। इसका अर्थ यह है कि हम सभी ने 84 लाख बार विविध रूपों में जन्म लेने के बाद यह मनुष्य जन्म पाया है। इतनी प्रतीक्षा से मिले इस बहुमूल्य जीवन को हम चिंता की भेंट कैसे चढ़ा सकते हैं? कहा गया है कि चिंता चिता समान होती है। इसके साथ ही इस सत्य को भी झुठलाया नहीं जा सकता कि चिंता आज के जीवन का एक अभिन्न अंग बन चुकी है। भले ही यह हमारी अपनी गलतियों का फल हो, पर आज हर मनुष्य चिंतित है। कुछ मनुष्य तो इतने अधिक चिंतित हैं कि उनका एक पल भी बिना चिंता के नहीं बीतता। ऐसे मनुष्यों के लिए आज एक संत की कथा सुनते हैं-

उसने हंसना, मुस्कुराना तक छोड़ दिया ...

किसी नगर में एक माने हुए संत रहा करते थे। ऐसा माना जाता था कि उनके पास हर प्रश्न का उत्तर है, हर समस्या का समाधान है। उनकी यह ख्याति एक ऐसे व्यक्ति के पास पहुंची, जो सदा चिंताओं में ही घिरा रहता था। चिंताओं ने उसकी यह हालत कर दी थी कि उसने हंसना, मुस्कुराना तक छोड़ दिया था। उसके अपने उसके चेहरे पर मुस्कान देखने को तरस गए थे। जब उस व्यक्ति ने इन प्रसिद्ध संत के बारे में सुना, तो उसने एक बार उनसे मिलने का सोचा। अपनी चिंताओं की गठरी लिए वह व्यक्ति उन संत के आश्रम में पहुंचा। शाम तक उसकी बारी आई और उसने संत को बताया कि वह जीवन से परेशान हो चुका है। उसके जीवन का एक क्षण भी ऐसा नहीं जाता, जबकि वह किसी चिंता में ना पड़ा हो।

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 संत ने कही ये बात

संत ने कही ये बात

उसकी बात सुनकर संत ने कहा कि तुम्हारी समस्या कोई बड़ी तो मालूम होती नहीं, पर मैं समाधान कल बताउंगा। आज रात तुम मेरे आश्रम में ही रूको, यहीं भोजन करो और मेरी थोड़ी सी मदद भी कर दो। मेरे पास ऊंटों का बाड़ा है, पर आज उसकी देखभाल करने वाला सेवक नहीं आया है। आज रात तुम उसकी रखवाली कर दो। वहां तुम्हें सोना ही है, कोई खास काम नहीं है। उस व्यक्ति ने तुरंत हामी भर दी और खुशी खुशी सेवा का भार ले लिया।

क्यों भाई, रात में कोई परेशानी तो नहीं आई?

दूसरे दिन सुबह जब वह व्यक्ति संत के पास पहुंचा, तो उन्होंने पूछा कि क्यों भाई, रात में कोई परेशानी तो नहीं आई? नींद ठीक से आई या नहीं? उनकी बात सुनकर वह व्यक्ति बोला कि महाराज, नींद तो लगी ही नहीं। पूरे समय ऊंटों को बैठाने में ही रात निकल गई। संत ने पूछा कि क्या सारे ऊंट एक साथ खड़े थे, तब उस व्यक्ति ने कहा कि मैं एक को बैठाता, तो थोड़ी देर में दूसरा खड़ा हो जाता। संत ने फिर पूछा कि सबको तुमने ही बैठाया या कुछ खुद भी बैठे? उसने बताया कि कुछ ऊंट खुद बैठे, कुछ को बैठाना पड़ा, पर उनकी चहलकदमी से मैं सो ही नहीं पाया।

चिंताएं भी जीवन का एक आवश्यक अंग हैं

उसकी बात सुनकर संत हंसते हुए बोले, भैया, यही तो मनुष्य का जीवन है। यह ऊंटों का बाड़ा ही है। यदि तुम चाहो कि सारे ऊंट एक साथ बैठ जाएं, तो यह संभव नहीं है। ठीक इसी तरह यदि तुम चाहो कि जीवन में चिंताएं आएं ही नहीं या सब एक साथ हल हो जाएं तो यह भी संभव नहीं है। चिंताएं भी जीवन का एक आवश्यक अंग हैं। ये हमारी बुद्धि को परिमार्जित करती हैं। हमें किसी विषय पर कई तरह से सोचना और हल ढूंढना सिखाती हैं, पर इनका सही समायोजन करने की आवश्यकता होती है। इसका सही तरीका यही है कि अपनी समस्याओं को कुछ हिस्सों में बांट दो। जिन समस्याओं को तुम सुलझा सकते हो, सुलझा लो, बाकी ईश्वर का नाम लेकर समय पर छोड़ दो। समय हर रोग की दवा है। क्या पता, जिस चिंता के कारण तुम सो नहीं पा रहे हो, वो समय के साथ अपने आप ही सुलझ जाए।

...आधी समस्याएं अपने आप सुलझ गई थीं

...आधी समस्याएं अपने आप सुलझ गई थीं

संत की बात समझकर वह व्यक्ति जान गया कि केवल चिंताओं में उलझकर वह जीवन व्यर्थ गंवा रहा है और उसने संत के बताए मार्ग पर चलने का निश्चय कर लिया। शीघ्र ही उसके घर में खुशियां लौट आईं क्योंकि उसके अपने तो उसकी मुस्कान देखकर ही तृप्त हो गए थे। उसके हंसने, मुस्कुराने से ही आधी समस्याएं अपने आप सुलझ गई थीं।

दो पल के लिए थमकर सोचिए

तो आप भी दो पल के लिए थमकर सोचिए, कहीं आप भी व्यर्थ की चिंताओं में जीवन तो नहीं गंवा रहे हैं? यदि ऐसा है, तो समाधान आपके सामने है। समय हर दुख की दवा है। अपनी कुछ चिंताएं समय के हवाले कर निश्चिंत हो जाइए।

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English summary
Psychology of religion has been captivated byhow religion relates to health, happiness, and various problems.
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