जानिए क्यों 'रमजान' के महीने में रखा जाता है 'रोजा'?
रोजा का मतलब बंदिश (मनाही), सिर्फ खाने पीने की बंदिश नहीं है, बल्कि हर उस बुराई से दूर रहने की बंदिश है, जो इस्लाम में मना है।
नई दिल्ली। पाक-साफ महीने 'रमजान' की शुरूआत हो चुकी है, इस्लामिक कैलेंडर का यह महीना त्याग, सेवा, समर्पण और भक्ति का मानक है, आज से पूरे एक महीने तक इस्लाम में विश्वास रखने वाले लोग रोजा रखेंगे।
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जन्नत नसीब होती है
- मान्यता है कि रमजान के महीने में जन्नत के दरवाजे खोल दिए जाते हैं और जो रोजे रखता हैं उसे ही जन्नत नसीब होती है।
- पैंगम्बर इस्लाम के मुताबिक रमजान महीने का पहला अशरा (दस दिन) रहमत का, दूसरा अशरा मगफिरत और तीसरा अशरा दोजख से आजादी दिलाने का है।
- यह महीने प्रेम और अपने ऊपर संयम रखने का मानक है इसलिए कहा गया है कि हर मुसलमान को रोजा जरूर रखना चाहिए।
- मासिक-धर्म के दौरान इस्लामिक महिलाओं को रोजा ना रखने को कहा गया है।
- इस दौरान केवल अल्लाह की इबादत करनी चाहिए और सहरी और इफ्तार का खास ख्याल रखना चाहिए।
- इस दौरान शराब, सिगरेट, तंबाकू और नशीली चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए।
- बूढ़े, बच्चे, गर्भवती महिलाएं. नवजात की मांओं और सफर करने वाले यात्रियों को रोजा ना रखने की मनाही है।
संयम रखने का मानक
अल्लाह की इबादत
हर मुस्लिम को जकात देना होता है
रमजान के दौरान हर मुस्लिम को जकात देना होता है। आपको बता दें कि जकात का मतलब अल्लाह की राह में अपनी आमदनी से कुछ पैसे निकालकर जरूरतमंदों को देना। कहा जाता है जकात को रमजान के दौरान ही देना चाहिए ताकि गरीबों तक वो पहुंचे और वो भी ईद बना सकें।
रोजा का मतलब...
रोजा का मतलब बंदिश (मनाही),सिर्फ खाने पीने की बंदिश नहीं है बल्कि हर उस बुराई से दूर रहने की बंदिश है जो इस्लाम में मना है। इस्लाम के मुताबिक रोज़ा केवल भूखे प्यासे रहने का ही नाम नहीं बल्कि नब्ज़ को व्यवस्थित और शुद्धि करने का नाम है और हर वर्ष 30 दिन अपनी आत्मा को शुद्ध करके हम शेष 11 महीने इसी जीवन को जीने की ट्रेनिंग पाते हैं।