Rama Navami 2020: श्री राम ने भी किए थे नवरात्रि के उपवास
नई दिल्ली। नवरात्र अर्थात् आदि शक्ति की आराधना का उत्सव, जिसे हम सभी भारतवासी हिंदू बड़े ही उत्साह से मनाते हैं। धर्मग्रंथों के अनुसार इन नौ दिनों में ब्रह्मांड की आदि शक्ति मां दुर्गा धरती पर साक्षात प्रकट होती हैं और अपने भक्तों का कल्याण और रक्षण करती हैं। इस आदि शक्ति को हम अपनी श्रद्धानुसार अनेक नामों से पुकारते हैं, उन्हें अनेक रूपों में पूजते हैं। भारत के सभी श्रद्धालुगण माता रानी के आगमन का यह उत्सव पूरी श्रद्धा और क्षमता से मनाते हैं।
कई लोग नौ दिनों में निराहार उपवास करते हैं,
कई लोग इन नौ दिनों में निराहार उपवास करते हैं, तो कुछ लोग केवल एक लौंग या फल ग्रहण करते हैं। कहने का आशय यह है कि सभी लोग अपनी क्षमता के अनुरूप मां दुर्गा को प्रसन्न करने और उनसे आशीर्वाद पाने का यत्न करते हैं। यह तो हम आम व्यक्तियों के प्रयास की बात हुई, लेकिन क्या आप जानते हैं कि जगत के स्वामी भगवान श्री राम ने भी आदिशक्ति का आशीर्वाद पाने के लिए पूरे नौ दिनों का उपवास रखा था। कब और कैसे, आइए, जानते हैं-
राम के लंका गमन से जुड़ी है कथा
यह घटना राम जी के वनवास, रावण द्वारा सीता हरण और उसके बाद श्री राम के लंका गमन से जुड़ी हुई है। यह वह समय था, जब राम जी अपनी वानर सेना को लेकर रामेश्वरम तक पहुंच गए थे और माता सीता तक पहुंचने के लिए उन्हें समुद्र पर पुल बनाना था। इस काम में समस्त वानर सेना और नल-नील पूरे मनोयोग से लगे हुए थे।
कई जिम्मेदार लोग प्राणपण से व्यस्त थे
पूरे आयोजन की देखभाल और सफलता के लिए लक्ष्मण, हनुमान, जामवंत जैसे कई जिम्मेदार लोग प्राणपण से व्यस्त थे। इसी समय नवरात्र का योग पड़ा और श्री राम ने विचार किया कि सृष्टि की आदिशक्ति मां दुर्गा का आशीर्वाद लेने का यही सही समय है। स्वयं भगवान विष्णु का अवतार होने के नाते श्री राम जानते थे कि असुरों का संहार करने के लिए हर युग में आदिशक्ति के आशीर्वाद की आवश्यकता पड़ी है। वे यह भी जानते थे कि किसी भी असुर का नाश आदिशक्ति के सहयोग के बिना संभव नहीं हो सका है। वास्तव में आदिशक्ति का प्राकट्य ही असुरों के नाश के लिए हुआ है।
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श्री राम ने सेतु के निर्माण तक नवरात्र के उपवास रखे...
इन्हीं सब बातों को विचार कर श्री राम ने सेतु के निर्माण तक नवरात्र के उपवास रखे और उपलब्ध संसाधनों से विधिपूर्वक उद्यापन भी किया। इसी समय श्री राम ने रेत के शिवलिंग बनाकर उनका भी पूजन किया। इस तरह जितने दिनों तक रामसेतु का निर्माण हुआ, उतने समय तक श्री राम ने ब्रह्मांड की समस्त दैवीय शक्तियों का आवाहन कर उनसे आशीर्वाद लिया। ब्रह्मांड की समस्त शक्तियों का आशीर्वाद और सहयोग पाकर ही वे रावण जैसे अकाट्य वीर, बलशाली, मायावी और बुद्धिमान असुरराज को समाप्त करने में सफल हुए।
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