क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

Pitru Paksha 2020: युधिष्ठिर ने ऐसे किया माता कुंती का श्राद्ध

By Pt. Gajendra Sharma
Google Oneindia News

नई दिल्ली। श्राद्ध पक्ष में पितरों का धूप, ध्यान, तर्पण करते हुए कई बार मन में यह बात आती है कि हमने जो प्रयास किए, सब सही हैं या नहीं? कई घरों में ऐसा भी होता है कि पूर्वजों की अज्ञात मृत्यु के कारण तिथि भ्रम हो जाता है। ऐसे में नियम के अनुरूप श्राद्ध कर्म करने के बाद भी मन में संशय बना रहता है कि सब कुछ धर्मानुकूल हुआ या कोई त्रुटि रह गई? क्या हमारे तर्पण से पूर्वज संतुष्ट व प्रसन्न हुए होंगे?

मन के ऐसे द्वंद्व से पार पाने के लिए आज हम धर्मराज युधिष्ठिर द्वारा किए गए श्राद्ध कर्म की कथा सुनते हैं -

Pitru Paksha 2020: युधिष्ठिर ने ऐसे किया माता कुंती का श्राद्ध

यह उस समय की बात है, जब महाभारत का युद्ध समाप्त हो चुका था। कौरवों का समूल नाश हो चुका था और पांडव अपना राज्य स्थापित कर चुके थे। इस पूरे घटनाक्रम में अपना सब कुछ गंवा चुके महाराज धृतराष्ट्र और महारानी गांधारी सबसे अधिक असहाय स्थिति में थे। उनके मन पांडवों के प्रति तीव्र घृणा से भरे हुए थे। युद्ध के उपरांत एक बार धृतराष्ट्र ने भीम को अपने आलिंगन में लेकर बाहुबल से दबाकर मार डालने का प्रयास भी किया था। अब दोनों को उन्हीं पांडवों की शरण में रहना पड़ रहा था। कौरव दंपति के जीवन में बाह्य रूप से तो सब सामान्य था, किंतु उनके मन अत्यंत दुखी थे। इसका कारण यह था कि पांडु पुत्र भीम नित्य ही उनको ताने मारा करते थे। बाकी चारों पांडव और स्वयं माता कुंती धृतराष्ट्र और गांधारी का पूरा मान और ध्यान रखा करते थे, किंतु एकमात्र भीम ने उनका जीवन नर्क बना दिया था। इस तरह 15 वर्ष बीत चुके थे। जीवन से थक चुके धृतराष्ट्र और गांधारी ने अब परिस्थितियों को असहनीय जान वनवास का निर्णय लिया। कुंती ने रोकने का प्रयास किया और दोनों के ना मानने पर वे भी वन में रहने चली गईं। कुंती के वन जाने से पांचों पांडव बहुत दुखी हुए, लेकिन उन्होंने माता की आज्ञा को शिरोधार्य किया।

तीनों के अज्ञातवास को कई वर्ष बीत गए

इस तरह वन में तीनों के अज्ञातवास को कई वर्ष बीत गए। पांडवों को उनके विषय में कोई समाचार प्राप्त ना था। माता कुंती की आज्ञा थी कि कोई भी उन्हें खोजने नहीं आएगा, इसीलिए वे वचन से बंधे हुए थे। ऐसे में एक दिन युधिष्ठिर के पास देवर्षि नारद का आना हुआ। महाराज युधिष्ठिर जानते थे कि देवर्षि को काल की हर गति का ज्ञान है। उन्होंने नारद जी से प्रार्थना की कि उन्हें माता कुंती के बारे में समाचार दें। देवर्षि ने बताया कि वनवास काल में तीनों ही प्राणी शरीर से क्षीण हो गए थे। ऐसे में एक दिन दावानल सुलग उठा। तीनों को ही भान था कि वे प्रयास करके भी इस भीषण अग्नि से बच नहीं पाएंगे, इसीलिए तीनों से वहीं अग्नि के मध्य अपने प्राण त्यागने का निश्चय किया और समाधि ले ली।

धर्मराज युधिष्टिर ने किया श्राद्ध

अपनी माता और ज्येष्ठ द्वय की इस दारूण मृत्यु के समाचार से पांचों पांडव शोक में डूब गए। इसके बाद युधिष्ठिर ने देवर्षि से अपने इन पितरों की आत्मा की शांति का, उन्हें तृप्त करने का उपाय पूछा। देवर्षि ने उन्हें तीनों प्राणियों का विधि- विधान से श्राद्ध करने को कहा। महाराज युधिष्ठिर ने नारद जी द्वारा निर्दिष्ट विधि से तीनों आत्मीयों का श्राद्ध संपन्न किया और उन्हें तृप्त कर उनका आशीर्वाद पाया।

यह पढ़ें: Pitru Paksha 2020: सर्वपितृ अमावस्या पर दीपदान दिलाएगा दोषों से मुक्तियह पढ़ें: Pitru Paksha 2020: सर्वपितृ अमावस्या पर दीपदान दिलाएगा दोषों से मुक्ति

Comments
English summary
How did Yudhishthira perform Shraddha of Mother Kunti, read story.
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
For Daily Alerts
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X