श्राद्ध पक्ष में क्यों सर्वाधिक महत्वपूर्ण है अन्नदान?
नई दिल्ली। भारतीय कर्मकांडीय परंपरा में श्राद्ध पक्ष का समय अपने पूर्वजों के प्रति श्रद्धा, प्रेम और सम्मान प्रकट करने के लिए नियत किया गया है। इस दौरान पूरे 16 दिन तक अपने घर के दिवंगत हो चुके पूर्वजों का उनकी तिथि के अनुरूप श्राद्ध किया जाता है, जिसमें उनकी आत्मा की शांति के लिए पूजा- पाठ के अलावा अन्न, वस्त्र, बर्तन, आभूषण आदि अपनी श्रद्धा और सामर्थ्य के अनुरूप दान करना शुभ और महाफलदायी माना जाता है।
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ऐसा माना जाता है कि इन 16 दिनों के दौरान जितना दान किया जाता है, वह सहस्र गुना फलदायी होता है। इसीलिए अधिकांश गृहस्थ इन 16 दिनों में दान-पुण्य का कोई अवसर जाने नहीं देते। पूर्वजों के नाम से दान देते समय यह प्रयास किया जाता है कि जो वस्तु वे अपने जीवित रहते पसंद करते थे, उसका दान अवश्य ही किया जाए। श्राद्ध पक्ष में अन्नदान के महत्व का उल्लेख महाकाव्य महाभारत में भी मिलता है।
महाकाव्य महाभारत
महाभारत काल में सबसे वीर, सबसे योग्य, सबसे त्यागी और सबसे बड़े दानी के रूप में यदि किसी का उल्लेख किया जाता है, तो वो हैं कर्ण। जैसा कि सर्वविदित है कि कर्ण राजमाता कुंती और भगवान सूर्यदेव की संतान थे और जन्म लेते ही लोकलाज के कारण पानी में बहा दिए गए थे क्योंकि कुंती तब तक विवाहित नहीं थीं। पानी में बहते हुए कर्ण एक सूत को मिले थे और उसी ने उनका लालन- पालन किया था। बाद में अपने पराक्रम के कारण कर्ण, दुर्योधन की पहली पसंद और परम मित्र बन गए और राज- पाठ भी पा गए। बचपन से लेकर राजा बनने तक कर्ण की दो विशेषताएं उनके साथ हमेशा रहीं, उनकी वीरता और उनकी दानशीलता। कर्ण की दानशीलता इसलिए चर्चित थी क्योंकि उनके दरवाजे पर आया याचक कभी भी खाली हाथ ना लौटा था। कर्ण ने अपने पूरे जीवन भर सोना, चांदी, हीरे, मोती आदि का जी भर कर दान किया था, लेकिन उन्होंने कभी भी अन्न दान ना किया था। अपने अतीत से अपरिचित होने के कारण उन्होंने कहा कि अपने पूर्वजों के नाम से किसी को भोजन भी नहीं कराया था। यही बात कर्ण के विपरीत चली गई।
कर्ण अर्जुन के हाथों पराजित होकर वीरगति को प्राप्त हुए
महाभारत में ऐसा उल्लेख मिलता है कि युद्ध के बाद जब कर्ण अर्जुन के हाथों पराजित होकर वीरगति को प्राप्त हुए, तब उन्हें स्वर्ग में स्थान मिला। स्वर्ग के राजसी वैभव के बीच उन्हें हर समय भोजन के रूप में हीरे, मोती, माणिक्य ही परोसे गए। यह देखकर कर्ण आश्चर्य में पड़ गए और उन्होंने देवराज इंद्र से इसका कारण पूछा। इंद्र ने उन्हें बताया कि आपने कभी भी, किसी को भी अन्न का दान नहीं दिया, ना ही अपने पूर्वजों के नाम से कभी अन्नदान किया। यही कारण है कि आपने जो दान किया, वही आपको वापस मिल रहा है।
कर्ण की बात पर विश्वास कर इंद्र ने उन्हें वापस 15 दिन के लिए धरती पर भेजा
कर्ण ने देवराज को बताया कि उन्हें ना तो अपने पूर्वजों का ज्ञान था और ना ही अन्नदान की महिमा का, इसीलिए ऐसा अपराध हुआ। ऐसा कहा जाता है कि कर्ण की बात पर विश्वास कर इंद्र ने उन्हें वापस 15 दिन के लिए धरती पर भेजा। धरती पर वापस आकर कर्ण ने अपने पितृ देवों का तर्पण कर उन्हें हर तरह का अन्नदान कर संतुष्ट किया। इसके बाद वापस स्वर्ग जाने पर उन्हें अन्न समेत सारे राजसी सुखों का उपभोग करने मिला।