Parama Ekadashi 2020 : परमा एकादशी आज, जानिए इसका महत्व और कथा
नई दिल्ली। आश्विन अधिकमास या पुरुषोत्तम मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को परमा एकादशी कहा जाता है। यह एकादशी 13 अक्टूबर 2020 मंगलवार को आ रही है। इस एकादशी को परम एकादशी और मतभिन्न्ता के कारण कमला एकादशी भी कहा जाता है। मान्यता है कि इस एकादशी का व्रत करके भगवान विष्णु का विधिवत पूजन किया जाए तो दुर्लभ सिद्धियां, सौभाग्य और धन के भंडार प्राप्त किए जा सकते हैं, अत्यंत दुर्लभ सिद्धियों के कारण ही इसे परम या परमा एकादशी कहा जाता है।
इस एकादशी पर शालिग्राम पूजन का भी विशेष महत्व होता है। विष्णु पुराण का मत है कि शालिग्राम पूजन से धन, सुख-ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है और मनुष्य के जीवन से समस्त दुख और दरिद्रता दूर हो जाती है। इस एकादशी में दान का भी महत्व है। इस दिन स्वर्ण दान, विद्या दान, अन्न् दान, भूमि दान और गोदान करने से लोक-परलोक में विजय होती है।
पंचरात्रि व्रत देता है दुर्लभ सिद्धियां
शास्त्रों में इस एकादशी का व्रत पांच दिन का बताया गया है, लेकिन सामान्य लोग जो पांच दिन व्रत नहीं कर सकते, वे केवल एकादशी के दिन भी व्रत कर सकते हैं। शास्त्रीय मत के अनुसार इस व्रत में पांच दिनों तक पंचरात्रि व्रत किया जाता है। जिसमें एकादशी से अमावस्या तक जल का त्याग किया जाता है। केवल भगवत चरणामृत लिया जाता है। इस पंचरात्र का भारी पुण्य और फल होता है। पंचरात्रि के बाद मनुष्य को दुर्लभ प्रकार की सिद्धियां हासिल होती हैं।
परमा एकादशी व्रत की पूजा विधि
इस
एकादशी
के
दिन
प्रात:काल
स्नानादि
से
निवृत
होने
के
बाद
भगवान
विष्णु
के
समक्ष
बैठकर
हाथ
में
जल,
अक्षत,
पूजा
की
सुपारी
लेकर
व्रत
संकल्प
करें।
इसके
बाद
भगवान
विष्णु
का
पूजन
करें।
पांच
दिनों
तक
श्री
विष्णु
का
स्मरण
करते
हुए
व्रत
का
पालन
करना
चाहिए।
पांचवें
दिन
ब्राह्मण
को
भोजन
करवाकर
दान-दक्षिणा
सहित
विदा
करने
के
बाद
व्रती
को
स्वयं
भोजन
करना
चाहिए।
इस
व्रत
में
केवल
फलाहार
लिया
जा
सकता
है।
जल
का
त्याग
किया
जाता
है,
लेकिन
केवल
भगवान
का
चरणामृत
लिया
जा
सकता
है।
जिन
लोगों
की
ज्यादा
क्षमता
नहीं
होती,
वे
फलों
का
जूस
ले
सकते
हैं।
परमा एकादशी व्रत की कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को परमा एकादशी व्रत का महत्व और कथा का वर्णन सुनाया था। प्राचीन काल में काम्पिल्य नगर में सुमेधा नामक एक ब्राह्मण रहता था। उसकी पत्नी का नाम पवित्रा था। वह परम सती और साध्वी थी। यह दंपती दरिद्रता में जीवन निर्वाह करने के बाद भगवत भक्ति में कोई कमी नहीं रखता था। घर में जो भी अतिथि आता, उसका अपनी क्षमतानुसार पूरा आदर करता था। एक दिन गरीबी से दुखी होकर ब्राह्मण ने परदेश जाने का विचार किया, किंतु उसकी पत्नी ने कहा- स्वामी धन और संतान पूर्वजन्म के दान से ही प्राप्त होते हैं, अत: आप इसके लिए चिंतित न हों। एक दिन भ्रमण करते हुए महर्षि कौडिन्य उनके घर आए। ब्राह्मण दंपती ने तन-मन से उनकी सेवा की। महर्षि ने उनकी दशा देखकर उन्हें परमा एकादशी का व्रत करने को कहा। उन्होंने कहा- दरिद्रता को दूर करने के लिए भगवान विष्णु की शरण में जाओ। तुम दोनों मिलकर अधिकमास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का व्रत करो। रात्रि जागरण करके भगवान विष्णु का जप, पूजन, भजन करें। इस एकादशी व्रत के प्रभाव से भगवान विष्णु की आज्ञा से यक्षराज कुबेर तुम्हें धनाधीश बना देंगे। ऐसा कहकर महर्षि चले गए और सुमेधा ने पत्नी सहित व्रत किया। प्रात: काल एक राजकुमार घोड़े पर सवार होकर आया और उसने सुमेधा को सर्व साधन, संपन्न्, सर्व सुख समृद्ध कर रहने के लिए एक विशाल आवास दे दिया। इसके बाद से ब्राह्मण दंपती एकादशी का व्रत रखने लगा।
एकादशी समय
एकादशी
तिथि
प्रारंभ
12
अक्टूबर
2020
सायं
4.38
बजे
से
एकादशी
तिथि
पूर्ण
13
अक्टूबर
2020
दोपहर
2.35
तक
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