Papankusha Ekadashi 2020: पापांकुशा एकादशी आज, जानिए पूजा विधि
नई दिल्ली। आश्विन माह के शुक्ल पक्ष में आने वाली पापांकुशा एकादशी 27 अक्टूबर 2020, मंगलवार को आ रही है। इस दिन भगवान विष्णु के पद्मनाभ स्वरूप की पूजा की जाती है। अपने नाम के अनुरूप यह एकादशी समस्त पापों से मुक्ति दिलाकर मृत्यु के बाद मनुष्य को बैकुंठ में स्थान दिलवाती है। धरती पर मनुष्य जब तक जीवित रहता है, भगवान विष्णु का कृपा पात्र बना रहता है। उसे जीवन में कोई अभाव नहीं रहता है। इस एकादशी के माहात्म्य के बारे में कहा जाता है कि हजारों अश्वमेघ यज्ञ और सैकड़ों राजसूय यज्ञ करने के बाद भी पापांकुशा एकादशी व्रत के 16वें भाग जितना भी फल नहीं मिलता है। जो मनुष्य पापांकुशा एकादशी का व्रत रखकर रात्रि जागरण करते हुए भगवान विष्णु के मंत्रों का जाप करता है, उसे स्वर्ग की प्राप्ति होती है और व्रत का पुण्य फल उस मनुष्य की आगामी 10 पीढ़ियों को भी मिलता है।
पापांकुशा एकादशी व्रत के लाभ
- पापांकुशा एकादशी का व्रत करने से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। व्रत करने वाला अक्षय पुण्य का भागी होता है।
- इस एकादशी का व्रत करने से निरोगी काया तथा सुंदर नारी और धन-धान्य की प्राप्ति होती है।
- इस एकादशी व्रत को करने वाले मनुष्यों के मातृपक्ष के दस पुरुष, पितृपक्ष के दस पुरुष तथा स्त्री पक्ष के दस पुरुष, भगवान विष्णु का रूप धरकर व सुंदर आभूषणों से परिपूर्ण होकर विष्णु लोक को जाते हैं।
- पापांकुशा एकादशी का विधानपूर्वक व्रत करने से विष्णु लोक की प्राप्ति होती है।
- इस एकादशी के दिन भूमि, गौ, अन्न्, जल, खड़ाऊ, वस्त्र, छत्र आदि का दान करने से यम के दर्शन नहीं होते।
- इस एकादशी के दिन प्रत्येक मनुष्य को अपने सामर्थ्य के अनुसार कुछ वस्तुएं दान करना चाहिए।
- पापांकुशा एकादशी के दिन तालाब, बगीचा, धर्मशाला, प्याऊ आदि बनवाने का बड़ा महत्व है। ऐसे व्यक्ति को कभी नरक की यातना नहीं भोगना पड़ती। वह मनुष्य इस लोक में निरोगी, दीर्घायु, उत्तम संतान वाले, धन-धान्य से परिपूर्ण होकर सुख भोगते हैं तथा अंत में स्वर्ग लोक को जाते हैं।
- पापांकुशा एकादशी का व्रत करने से मन शुद्ध और पवित्र होता है।
कैसे करें पापांकुशा एकादशी व्रत की पूजा
पापांकुशा एकादशी के दिन भगवान विष्णु के पद्मनाभ स्वरूप की पूजा की जाती है। एकादशी के दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर पवित्र नदियों में या पवित्र नदियों का जल डालकर स्नान करें। सूर्य को अर्घ्य दें और अपने पूजा स्थान में बैठकर एकादशी व्रत का संकल्प लें। इसके बाद अपने मस्तक पर सफेद चंदन या गोपी चंदन लगाकर भगवान पद्मनाभ की पूजा करें। भगवान को पंचामृत, पुष्प और ऋ तुफल अर्पित करें। व्रत के दिन अन्न् ग्रहण ना करें। शाम के समय फलाहार कर सकते हैं। शाम को आहार ग्रहण करने के पहले उपासना और आरती जरूर करें। इस दिन इंद्रिय संयम रखते हुए रात्रि जागरण करें और भगवान श्रीहरि के भजन करें, मंत्रों का जाप करें।
पापांकुशा एकादशी का महत्व
महाभारत काल में स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को पापांकुशा एकादशी का महत्व बताया था। भगवान ने कहा कि यह एकादशी पाप का निरोध करती है अर्थात पाप कर्मों से रक्षा करती है। इस एकादशी के व्रत से मनुष्य को अर्थ और मोक्ष की प्राप्ति होती है और संचित पाप नष्ट हो जाते हैं। इस दिन श्रद्धा और भक्ति भाव से पूजा तथा ब्राह्मणों को दान व दक्षिणा देना चाहिए। इस दिन मात्र फलाहार ही किया जाता है। इससे शरीर स्वस्थ व मन प्रफुल्लित रहता है।
पापांकुशा एकादशी व्रत कथा
प्राचीनकाल में विंध्य पर्वत पर क्रोधन नामक एक महाक्रूर बहेलिया रहता था। उसने अपनी सारी जिंदगी हिंसा, लूट-पाट, मद्यपान और झूठे भाषणों में व्यतीत कर दी। जब उसके जीवन का अंतिम समय आया तब यमराज ने अपने दूतों को क्रोधन को लाने की आज्ञा दी। यमदूतों ने उसे बता दिया कि कल तेरा अंतिम दिन है। मृत्यु के भय से वह बहेलिया महर्षि अंगिरा की शरण में उनके आश्रम पहुंचा। महर्षि ने दया दिखाकर उससे पापांकुशा एकादशी का व्रत करने को कहा। इस एकादशी का व्रत-पूजन करने से क्रूर बहेलिया को भगवान की कृपा से मोक्ष की प्राप्ति हो गई।
एकादशी तिथि कब से कब तक
- एकादशी तिथि प्रारंभ 26 अक्टूबर को प्रात: 8.59 बजे से
- एकादशी तिथि पूर्ण 27 अक्टूबर को प्रात: 10.46 बजे तक
- पारणा समय 28 अक्टूबर को प्रात: 6.29 से 8.46 बजे तक
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