Nirjala Ekadashi 2020: निर्जला एकादशी में समाया है सभी एकादशियों का पुण्य
नई दिल्ली। साल की सबसे बड़ी एकादशी निर्जला एकादशी 2 जून 2020, मंगलवार को आ रही है। एक वर्ष में 24 एकादशी आती है और जिस वर्ष अधिकमास हो उस वर्ष 26 एकादशी आती है। निर्जला एकादशी करने से इन सभी एकादशियों का पुण्य फल प्राप्त किया जा सकता है, बशर्ते इसका व्रत पूर्ण शास्त्रीय विधान के अनुसार किया जाए। ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष में आने वाली इस एकादशी को निर्जला एकादशी इसलिए कहा जाता है, क्योंकि इस दिन पानी तक ग्रहण नहीं किया जाता है। यह व्रत पूर्ण निर्जल रहते हुए करना अनिवार्य होता है। जो व्रती साल भर की एकादशियां नहीं कर सकते, उन्हें यह एक एकादशी तो अवश्य करना चाहिए। इसे पांडव एकादशी या भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है, क्योंकि इसे महाभारत काल में पांडु पुत्र भीम ने किया था। जो लोग पूरे साल की एकादशियों का व्रत प्रारंभ करना चाहते हैं वे इस एकादशी के दिन से व्रत प्रारंभ कर सकते हैं। गंगा दशहरा के ठीक अगले दिन आने के कारण निर्जला एकादशी का महत्व कई गुना बढ़ जाता है।
निर्जला एकादशी की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार सभी पांडव और द्रौपदी भगवान विष्णु के परम भक्त थे। वे सभी वर्ष की समस्त एकादशियों का व्रत किया करते थे, लेकिन भीम किसी भी एकादशी का व्रत नहीं कर पाता था क्योंकि वह भूखा नहीं रह सकता था। भूख सहन न कर पाने के कारण वह व्रत नहीं करता था और इसीलिए उसके मन में हमेशा यह पीड़ा रहती थी कि वह एकादशी का व्रत ना करके भगवान विष्णु का अनादर कर रहा है। भीमसेन अपनी इस परेशानी को दूर करने के लिए महर्षि व्यास के पास गया और अपनी पीड़ा कही। महर्षि व्यास ने भीमसेन से कहा कि अगर तुम वर्ष की समस्त एकादशी पर व्रत नहीं कर सकते तो भी तुम्हें कम से कम एक निर्जला एकादशी का व्रत अवश्य करना चाहिए, इसे पूर्ण श्रद्धा और शास्त्रोक्त विधि से करोगे तो समस्त एकादशियों का पुण्य तुम्हें मिल जाएगा। भीमसेन को यह बात जमी कि 24 एकादशी करने से अच्छा है एक कर ली जाए। भीमसेन से सभी भाइयों के साथ निर्जला एकादशी का व्रत किया। तभी से निर्जला एकादशी को भीमसेनी एकादशी या पांडव एकादशी भी कहा जाने लगा।
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कैसे करें पूजा
- निर्जला एकादशी व्रत से एक दिन पहले गंगा दशहरा होता है। दशमी के दिन व्रती एक ही वक्त भोजन करें और रात्रि में भोजन के स्थान पर फलों का सेवन कर सकता है।
- एकादशी के दिन प्रात: सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नानादि से निवृत्त होकर श्वेत स्वच्छ वस्त्र धारण करे और पूजा स्थान को स्वच्छ करके गंगाजल छिड़के।
- इसके बाद एक चौकी पर सफेद कपड़ा बिछाकर उस पर भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
- एकादशी व्रत का संकल्प लें। यदि पूरे साल की एकादशी प्रारंभ करना चाहते हैं तो उसके लिए भी संकल्प करें।
- पंचोपचार या षोड़शोपचार पूजन संपन्न् करें। ऊं नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र की एक या पांच माला जाप करें।
- विष्णुसहस्त्रनाम का पाठ भी करना चाहिए।
- उपलब्ध हो सके तो विष्णुजी का श्रृंगार पीले रंग के पुष्पों से करना चाहिए।
- इस दिन पूजा में भगवान विष्णु को आम का नैवेद्य लगाया जाता है।
- व्रती पूरे दिन निराहार, निर्जल रहे।
- अगले दिन द्वादशी को प्रात: व्रत का पारण करें।
एकादशी का पारण करने के नियम
- एकादशी व्रत के अगले दिन द्वादशी के दिन सूर्योदय के बाद प्रात:काल के समय में व्रत का पारण किया जाता है। अर्थात् एकादशी व्रत खोला जाता है।
- कभी-कभी द्वादशी तिथि प्रात: जल्दी समाप्त हो जाती है। ऐसे में एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि समाप्त होने से पहले कर लेना चाहिए।
- यदि द्वादशी तिथि सूर्योदय से पहले ही समाप्त हो रही हो तो एकादशी का पारण सूर्योंदय के तुरंत बाद कर लेना चाहिए।
- द्वादशी तिथि की पहली एक चौथाई अवधि को हरि वासर कहा जाता है। हरि वासर के दौरान एकादशी का पारण नहीं करना चाहिए।
- एकादशी व्रत प्रात:काल में खोलना सबसे शुभ माना जाता है। दोपहर बाद व्रत नहीं खोलना चाहिए। यदि प्रात: में व्रत नहीं खोल पाए तो फिर शाम के समय व्रत खोलना चाहिए।
- जब कभी दो दिन एकादशी हो तो पहले दिन स्मार्त मत को मानने वालों को करना चाहिए, वैष्णवों को दूसरे दिन वाली एकादशी करना चाहिए।
- एकादशी के दिन व्यसन, नशा, यौन संबंध, परस्त्री-परपुरुष का स्मरण नहीं करना चाहिए।
- एकादशी के दिन झूठ बोलना, निंदा करना, चोरी करना, किसी को अपशब्द नहीं कहना चाहिए। जो लोग व्रत नहीं कर रहे हैं, उन्हें भी ये कर्म नहीं करना चाहिए।
एकादशी का समय
- एकादशी प्रारंभ 1 जून को दोपहर 2.57 बजे से
- एकादशी पूर्ण 2 जून को दोपहर 12.05 बजे तक
- एकादशी पारण 3 जून को प्रात: 5.41 से 8.23 के बीच
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