Navratri 2019: दैत्यों का भक्षण कर कहलाईं 'मां रक्तदंतिका'
नई दिल्ली। नवरात्र में मां के विभिन्न रूपों में सातवें क्रम पर पूजनीय है मां का रक्तदंतिका अवतार। इस काल में वैप्रचलित नाम के राक्षस से संसार को मुक्ति दिलाने के लिए मां ने धरती पर अवतरण किया था। अपने इस अवतार में मां का रूप ऐसा विकराल था कि उनके दर्शन मात्र से दैत्यों का कलेजा कांप उठता था।
आइए, सुनते हैं उनकी कथा
एक समय पृथ्वी आकाश, पाताल अर्थात् पूरे ब्रह्मांड पर महाभयंकर दैत्य वैप्रचलित का राज्य स्थापित हुआ। यह काल पाप के मामले में सबसे अधिक भीषण था। संसार के सारे ज्ञात पाप इस समय साकार हो उठे थे। वैप्रचलित ने इतने अधिक कुकर्म किए थे कि देवता थर्रा उठे थे। ऐसे में सब ओर से असहाय देवताओं ने एकजुट होकर मां का स्मरण किया और उन्हें अवतार लेकर रक्षा करने का आवाहन किया। मां अंबिका देवताओं की पुकार पर देवी रक्तदंतिका के रूप में प्रकट हुईं। पुराणों में उल्लेख मिलता है कि इस काल में भी देवी रक्तदंतिका और वैप्रचलित के बीच भयानक युद्ध हुआ। वैप्रचलित की महाभयंकर सेना ने देवी को हर तरफ से घेर लिया। कहते हैं कि देवी रक्तदंतिका ने भयानक अट्टहास करते हुए दैत्यों का घेरा अपनी हुंकार मात्र से तोड़ दिया। इसके बाद देवी ने अस्त्रों से प्रहार ना कर सीधे असुर सेना को खाना शुरू कर दिया।
मसूडे़ फूलकर अनार के फूलों के समान लाल हो गए
यह देखकर वैप्रचलित मां को मारने के लिए दौड़ा आया। मां रक्तदंतिका ने उसे भी नहीं छोड़ा। महाभयानक युद्ध के बाद मां ने उसका भी भक्षण कर लिया। जब वे दैत्यों के रक्त का पान और उनका भक्षण कर रही थीं, तब उनके दांत और मसूडे़ फूलकर अनार के फूलों के समान लाल हो गए थे। इसी कारण से देवी के इस अवतार को रक्तदंतिका के नाम से जाना गया।
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सीख:
देवी का रक्तदंतिका स्वरूप साहस, शौर्य, बल, पराक्रम का अद्भुत मिश्रण है। स्त्री शक्ति के लिए यह सीख है कि वे किसी से डरें, घबराएं नहीं, वक्त आने पर अपने भीतर छुपी शक्तियों को पहचानें और उनका उपयोग करें।
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