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Navrari 2017: गुरूदेव ने नवरात्रि को बताया, 'स्त्रोत की ओर एक यात्रा'

By Staff
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नई दिल्ली। नवरात्रि का त्यौहार आश्विन (शरद) की शुरुआत में और चैत्र (वसंत) की शुरुआत में प्रार्थना और उल्लास के साथ मनाया जाता है। यह काल आत्म निरिक्षण और अपने स्त्रोत की और वापस जाने का समय है। परिवर्तन के इस काल के दौरान, प्रकृति भी पुराने को झंड कर नवीन हो जाती है; जानवर सीतनिद्रा में चले जाते हैं और वसंत के मौसम में जीवन वापस नए सिरे से खिल उठता है।

Sri Sri Ravi Shankar

वैदिक विज्ञान के अनुसार, प्रदार्थ अपने मूल रूप में वापस आकर ओहिर बार बार अपनी रचना करता है। यह सृष्टि सीधी रेखा में चल रही है बल्कि वह चक्रीय है, प्रकृति के द्वारा सभी कुछ का पुनर्नाविनिकरण हो रहा है - कायाकल्प की यह एक सतत प्रक्रिया है। तथापि सृष्टि के इस नियमित चक्र से मनुष्य का मन पीछे छूटा हुआ है। नवरात्रि का त्यौहार अपने मन को वापस अपने स्त्रोत की ओर ले जाने के लिए है।

उपवास, प्रार्थना, मौन और ध्यान के माध्यम से जिज्ञासु अपने सच्चे स्त्रोत की ओर यात्रा करता है। रात को भी रात्रि कहते हैं क्योंकि वन भी नवीनता लाती है। वह हमारे अस्तित्व के तीन स्तरों पर राहत देती है - स्थूल शरीर को, सूक्ष्म शरीर को और कारण शरीर को। उपवास के द्वारा शरीर विषाक्त पदार्थो से मुक्त हो जाता है, मौन के द्वारा हमारे वचनों में शुद्धता आती है और बातूनी मन शांत हो जाता है और ध्यान के द्वारा अपने अस्तित्व की गहराई में डूबकर हमें आत्मसाक्षात्कार मिलता है।

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यह आंतरिक यात्रा हमारे बुरे कर्मो को समाप्त करती है। नवरात्रि आत्मा अथवा प्राण का उत्साव है जिसके द्वारा ही महिषासुर (अर्थात जड़ता), शुम्भ-निशुम्भ (गर्व और शर्म) और मधु-कैटभ (अत्यधिक राग-द्वेष) को नष्ट किया जा सकता है। ये एक दुसरे से पूर्णत: विपरीत हैं, फिर भी एक दुसरे की पूरक हैं. जड़ता, गहरी नकारात्मकता और मनोग्रस्तियाँ (रक्त्बिजासुर), बेमतलब का वितर्क (चंड-मुंड) और धुंधली दृष्टि (ध्रूमलोचन) को केवल प्राण और जीवन शक्ति उर्जा के स्तर को ऊपर उठाकर ही दूर किया जा सकता है।

नवरात्रि के नौ दिन तीन मौलिक गुणों से बने इस ब्रम्हांड में आनंदित रहने का भी एक अवसर है। यद्यपि हमारा जीवन इन तीन गुणों के द्वारा ही संचालित है, हम उन्हें कम ही पहचान पाते हैं या उनके बारे में विचार करते हैं। नवरात्रि के पहले तीन दिन तमोगुण के हैं, दूसरे तीन दिन रजोगुण के और आखरी तीन दिन सत्व के लिए हैं। हमारी चेतना तमोगुण और रजोगुण के बीच बहती हुई सतोगुण के आखरी तीन दिनों में खिल उठती है। जब भी जीवन में सत्व बढ़ता है, तब हमें विजय मिलती है। इस ज्ञान का सारतत्व जश्न के ररूप में दसवें दिन विजयादशमी द्वारा मनाया जाता है।

यह तीन मौलिक गुण हमारे भव्य ब्रह्मांड की स्त्री सकती माने गए हैं। नवरात्रि के दौरान देवी माँ की पूजा करके, हम त्रिगुणों में सामंजस्य लाते हैं और वातावरण में स्तव को बढ़ाते हैं।

हांलाकि नवरात्रि बुराई पर अच्छाई की विजय के रूप में मनाई जाती है, परन्तु वास्तविक में यह लड़ाई अच्छे और बुरे के बीच में नहीं है। वेदांत की दृष्टि से यह द्वैत पर अद्वैत की जीत है। जैसे अष्टावक्र ने कहा था, बेचारी लहर अपनी पहचान को समुद्र से अलग रखने की लाख कोशिश करती है, लेकिन कोई लाभ नहीं होता।

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हांलाकि इस स्थूल संसार के भीतर ही सूक्ष्म संसार समाया हुआ है, लेकिन उनके बीच भासता अलगाव की भावना ही द्वन्द का कारण है। एक ज्ञानी के लिए पूरी सृष्टि जीवन्त बसता है ठीक उसी प्रकार उसे भी सब में जीवन दिखता है। देवी माँ या शुद्ध चेतना ही सब नाम और रूप में व्यास है। हर नाम और हर रूप में वास है. हर नाम और हर रूप में एक ही देवत्व को जानना ही नवरात्रि का उत्सव है। अत: आखरी के तीन दिनों के दौरान विशेष पूजाओं के द्वारा जीवन और प्रकृति के सभी पहलुओं का सम्मान किया जाता है।

काली माँ प्रकृति की सबसे भयानक अभिव्यक्ति है। प्रकृति सौंदर्य का प्रतिक है, फिर भी उसका एक भयानक रूप भी है। इस द्वैत यथार्थ को मनाकर मन में एक स्वीकृति आ जाती है और मन को आराम मिलता है।

देवी माँ को सिर्फ़ बुद्धि के रूप में ही नहीं जाना जाता, लेकिन भ्रांति के रूप में भी; वह न सिर्फ़ लक्ष्मी (समृद्धि) है, वह भूख (क्षुधा) भी और प्यास (तृष्णा) भी है। सम्पूर्ण सृष्टि में देवी माँ के इस दोहरे पहलू को पहचान कर एक गहरी समाधि लग जाती है। यह पच्छम की सदियों पुरानी चली आ रही धार्मिक संघर्ष का भी एक उतर है। ज्ञान, भक्ति और निष्काम कर्म के द्वारा अद्वैत सिद्धि प्राप्त की जा सकती है अथवा इस अद्वैत चेतना में पूर्णता की स्तिथि प्राप्त करी जा सकती है।

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English summary
Navratri 2017: Sri Sri Ravi Shankar Shares Journey of Navratri Nine Days
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