Navratri 2017: आखिर तवायफ के घर की मिट्टी से ही क्यों बनती है मां दुर्गा की मूर्ति?
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कोलकाता। आदिशक्ति का पर्व नवरात्रि का आगाज हो चुका है। पूरे देश में इस पर्व के लिए हर्षोल्लास का माहौल है लेकिन इस पावन पर्व की बात कोलकाता की दुर्गा-पूजा के बिना अधूरी है। पूरे भारत में लोकप्रिय इस पूजा के लिए यहां विशेष मिट्टी से माता की मूर्तियों का निर्माण होता है और उस मिट्टी का नाम है 'सोनागाछी'।
जहां महिलाएं केवल उपभोग की वस्तु
जो कि उन बदनाम गलियों में पाई जाती हैं, जहां महिलाएं केवल उपभोग की वस्तु हैं, जी हां, हम बात कर रहे हैं रेडलाइट एरिया की, जहां की महिलाओं को कभी भी इज्जत की नजरों से तो नहीं देखा जाता है लेकिन बिना इनके सहयोग के मां की पूजा अधूरी और बेमानी है। आपको बता दें कि 'सोनागाछी' एशिया का सबसे बड़ा रेडलाइट एरिया है।
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क्या है मान्यता?
मान्यता है कि जब भी कोई व्यक्ति ऐसी जगह पर जाता है तो वह अपनी सारी अच्छाइयां बाहर ही छोड़ जाता है, वहां जाने से पहले तक तो वो अच्छा होता है लेकिन वहां जाने के बाद वो बुरा हो जाता है यही कारण है कि सेक्स वर्कर के घर के बाहर की मिट्टी को मूर्ति में लगाया जाता है।
समाज की गलती
यही नहीं माना जाता है कि महिला एक शक्ति है, जिनकी पूजा होनी चाहिए, अगर वो तवायफ बनी है तो इसमें गलती उनकी नहीं बल्कि समाज की है इसलिए उनके घरों की मिट्टी को प्रतिमा में मिलाने से उन्हें सम्मान दिया जाता है क्योंकि मां के आंचल से पवित्र कोई जगह नहीं और जहां कि मिट्टी उनके शरीर पर लगी तो वहां को लोग अपवित्र कैसे हो सकते हैं?
प्रचलित है ये कथा
कुछ पौराणिक कहानियों में जिक्र है कि मां दुर्गा ने अपनी एक भक्त वेश्या को सामाजिक तिरस्कार से बचाने के लिए उसे वरदान दिया था कि उसके यहां की मिट्टी के उपयोग के बिना प्रतिमाएं पूरी नहीं होंगी और इसी वजह से तुम्हें समाज इज्जत की नजरों से देखेगा और इसी वजह से मां की प्रतिमाओं में बदनाम गलियों की घरों की मिट्टी का प्रयोग होता है।
मिट्टी की कीमत 300 से 500 रुपए
वैसे इस मिट्टी का प्रयोग अब पूरे भारत में होने लगा है। सोनागाछी मिट्टी की सप्लाई अब कोलकाता से देश के विभिन्न शहरों में होती है, ये मिट्टी काफी महंगी है , इस मिट्टी की कीमत 300 से 500 रुपए बोरी तक होती है।
हर नारी इज्जत के लायक
कुल मिलाकर बात इतनी सी है कि महिलाओं को सम्मान मिलना चाहिए, जहां महिलाओं का सम्मान नहीं वहां मां की पूजा नहीं इसलिए ये परंपरा समाज को शिक्षा देती है कि हर नारी का अस्तित्व है और हर नारी इज्जत के लायक है।