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Navrari 2017: 'गतिशील शक्ति का आवाहन है नवरात्रि' - भानुमती नरसिम्हन

By Staff
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नई दिल्ली। हम सब एक अदृश्य जगमगाती ब्रह्मांडीय शक्ति के ओज में तैर रहे हैं जिसे 'देवी' कहा गया है। देवी या देवी माँ इस सम्पूर्ण सृष्टि का गर्भ स्थान है। वह गतिशीलता, ओज, सुंदरता, धैर्य, शांति और पोषण की बीज हैं। वह जीवन ऊर्जा शक्ति हैं।

Bhanumati Narsimhan Bhanu Didi

दुर्गा को सदा ही देवी शक्ति के रूप में वर्णित किया गया है जो सभी बुराइयों से हमको बचाती है। दुर्गा का एक अर्थ पहाड़ी होता है। बहुत कठिन कार्य के लिये प्रायः दुर्गम कार्य कहा जाता है। दुर्गा की उपस्थिति में नकारात्मक तत्व कमजोर पड़तें हैं। दुर्गा को ''जय दुर्गा''भी कहते हैं या जो विजेता बनाती है। वे दुर्गति परिहारिणी हैं - वे जो विघ्नों को हरण कर लेती हैं। वे नकारात्मकता को सकारात्मकता में परिवर्तित करती है। यहां तक कि कठिनाइयों को भी उनके पास आने में कठिनाई होती है|

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जब आप देवी माँ को दुर्गा के रूप में प्रार्थना करते हैं, तो आप साहसी, विजयी औरकरुणामय होते हैं। यह दिव्यता का कितना सुंदर रूप है जो आपको माँ के साथ जोड़ता है। वह सभी गुणों का पोषण करती है, सकारात्मकता को बढ़ावा देती हैं। ये एक तरह से सौभाग्य को संग्रह करने जैसा है। उदाहरण के लिये जब आप अपनी माता के साथ होते हैं तो सब कुछ अच्छा ही होता है। हम मेधावी हो जाते हैं और सौभाग्य को प्राप्त करके उसे बनाये रखने में समर्थ हो जाते हैं। जीवन अनेक बार आपको साहस, सौभाग्य और समृद्धि प्रदान करता है। लेकिन उसे बनाये रखने और उसे खुशी और करुणा में परिवर्तित करने की क्षमता में कमी रहती है। नवरात्रि दुर्गा की पूजा का विशेष अवसर है ताकि जीवन में ये सब गुण एक साथ पनपें और बढ़ें - सामंजस्य और एकता बनी रहे।

अगर हम हमेशा विजयी रहे, लेकिन खुश नहीं हो पाए तब उसका कोई लाभ नहीं है। इसी तरह, अगर हम हमेशा प्रयास करते आये हों, लेकिन सफलता नहीं पा रहे हों, तब भी यह बड़ा निराशाजनक होता है। दुर्गा शक्ति हमें सब कुछ एक साथ प्रदान कर सकती है। सभी गुण एक इकाई के रूप में आप के लिए उपलब्ध हैं। हम अपनी चेतना में इन सभी गुणों को जगाकर स्वस्थ शरीर, पदार्थ इच्छाओं की पूर्ति और आध्यात्मिक विकास के लिए दुर्गा से प्रार्थना करते हैं।

दुर्गा को लाल रंग से जोड़ा गया है। उनके रूप को लाल साड़ी पहने हुए दर्शाया गया है। लाल रंग गतिशीलता का प्रतीक है - एक देदीप्यमान मनोभाव, एक स्फ़ूर्त ऊर्जा। आप प्रशिक्षित और कुशल हो सकते हैं, लेकिन अगर आप अपने प्रयासों को, वस्तुओं को और लोगों को एक साथ लेते हुए चलायमान करने में सक्षम नहीं हैं तो फल देरी से मिलता है। लेकिन जब आप दुर्गा से प्रार्थना करते हो तब वे उसे संभव कर देती हैं। फल तुरंत मिलता है।

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प्रार्थना हमेशा किसी इच्छा की पूर्ती से जुड़ी हुई है। जब आप पूर्ण होते हैं, तब एक श्रृंखलाबद्ध प्रतिक्रिया बन जाती है। जब आप किसी एक कार्य में सफल हो जातें है तो आप अन्य सफलताओं के लिये प्रयासरत हो जातें हैं। इसलिये यह आवश्यक नही है कि आप संतुष्ट हो जाये। चेतना की प्रकृति उत्साह, कर्म के लिये प्रेरित होना है। गतिशीलता के लिये प्रार्थना करें, लेकिन स्थिरता अनुभव करें।

प्रकृति दिव्य माता है। यह सृष्टि तीन गुणों से बनी है: सत्व, रजस और तमस। सत्व स्थिरता, मन की स्पष्टता, उत्साह और शांति से जुड़ा है। रजस कर्म के लिये आवश्यक है लेकिन प्रायः ज्वर उत्पन्न करता है। तमस जड़ता है और इसके असंतुलन से आलस्य, सुस्ती और अवसाद आता है। जब आप तमस को ठीक से संभाल लेते हैं तो आप सत्व की ओर बढ़तें हैं। इस रचना का हर जीव इन तीन गुणों की कठपुतली है। इस चक्र से बाहर कैसे निकला जाये, और इसकी सीमा से बाहर कैसे आया जाये?

उसके लिये आपको अपना सत्व बढ़ाना होगा और ध्यान, मौन और शुद्ध भोजन की सहायता से इस चक्र से बाहर निकला जा सकता है। इन गुणों के परे निकल कर आप शिव तत्व में स्थित हो सकतें हैं जो कि विशुद्ध और अनंत चेतना है। प्रकृति विपरीत गुणों से परिपूर्ण है जैसे दिन और रात,सर्दी और गर्मी, दर्द और आनंद, सुख और दुख। विपरीत गुणों से ऊपर उठ कर, द्वैत से बाहर आकर, एक बार फिर शिव तत्व को प्राप्त किया जा सकता है।

यही नवरात्रि के दौरान होने वाली पूजा का महत्व है - अप्रकट और अदृश्य ऊर्जा का प्रकटीकरण, उस देवी का, जिनकी कृपा से हम गुणों से बाहर आ सकते हैं और परमतत्व को प्राप्त कर सकते हैं जो कि अविभाजित, अविभाजीय, शुद्ध, और अनंत चेतना है। यह जब ही संभव है जब आप गुरुतत्व में विलीन हो जातें है, गुरु की उपस्थिति में ही।

(लेखक श्री श्री रविशंकर की बहन हैं, ध्यान शिक्षक, और द आर्ट ऑफ़ लिविंग फाउंडेशन के महिला एवं बाल कल्याण कार्यक्रमों के निदेशक हैं।)

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English summary
Navratri 2017: Bhanumati Narsimhan Bhanu Didi On Different Forms Of Maa Durga
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