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Nag Panchami 2020: तप और भक्ति ने बना दिया शेषनाग को पूजनीय

By Pt. Gajendra Sharma
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नई दिल्ली। श्रावण मास हो और नाग देवता की चर्चा ना हो, यह संभव नहीं है। भारत जैसे प्रकृति पूजक देश में पेड़-पौधों, जीवों, पशुओं सभी को देवतुल्य स्थान दिया गया है। इनमें से नागवंश का तो अपना वृहद वंश इतिहास रहा है। सृष्टि में इनके लिए अलग से एक लोक की भी परिकल्पना की गई है। नागलोक की वंशावली इतनी समृद्ध है कि उसके संपूर्ण वर्णन के लिए एक जन्म भी कम पड़ जाए। इसीलिए संपूर्ण नागवंशावली के बजाय आज हम नागों में सबसे विशिष्ट और संपूर्ण संसार में परम पूज्य शेषनाग जी की चर्चा करते हैं-

तप और भक्ति ने बना दिया शेषनाग को पूजनीय

नागपुराण के अनुसार महर्षि कश्यप की दो पत्नियां थीं- कंद्रू और विनता। इन दोनों में बिल्कुल नहीं बनती थी या कहा जा सकता है कि एक तरह से शत्रुता का ही व्यवहार था। कंद्रू के 1000 पुत्र थे और वे सभी नागवंश से थे, वहीं विनता के केवल एक पुत्र था- गरूड। नागों और गरूड़ों की शत्रुता जगत विख्यात है। इसका कारण भी इन दोनों की माताओं का आपसी विद्वेष ही था। कंद्रू के सबसे बड़े पुत्र थे शेषनाग, जो परम पराक्रमी और सबसे अधिक सम्माननीय माने जाते थे। उनकी बात सभी बिना तर्क के माना करते थे। सभी जानते थे कि शेषनाग ही नागवंश के राजा बनेंगे, लेकिन स्वयं शेषनाग पद ग्रहण करना नहीं चाहते थे। वे अपनी माताओं के विद्वेष और ईर्ष्या से थक चुके थे और संसार से विरक्त हो गए थे। इसीलिए उन्होंने राजसत्ता को ठुकरा कर तपस्या का मार्ग चुना। शेषनाग के राज्य छोड़ते ही उनके छोटे भाई वासुकि का राजतिलक कर दिया गया।

शेषनाग गंधमादन पर्वत पर तपस्या करने लगे

भक्ति का मार्ग अपनाने के बाद शेषनाग गंधमादन पर्वत पर तपस्या करने लगे। वर्षों की कठोर तपस्या के बाद ब्रह्मा जी उन पर प्रसन्न हुए और उन्हें पाताल लोक का राजा बना दिया। शेषनाग तो स्वयं ही राज-पाठ त्याग चुके थे। राजा बनने में उनकी कोई रुचि नहीं थी। ब्रह्मा जी ने उन्हें बताया कि उन्हें भविष्य में पृथ्वी को अपने शीष पर ग्रहण करना है और विष्णु जी की सेवा का परम सौभाग्य भी उन्हें मिलेगा। ब्र्रह्मा जी के वरदान का मान रखने के लिए शेषनाग पाताल लोक चले गए और उन्होंने विष्णु भगवान को प्रसन्न कर उनसे स्वयं को सेवक रूप में ग्रहण करने की प्रार्थना की। विष्णु जी ने उन्हें अपना सेवक बनाकर शय्या रूप में ग्रहण किया। तब से वे विष्णु जी के अनंत सेवक बने हुए हैं। उन्होंने विष्णु जी के आदेश पर ही जलमग्न धरा को अपने फन पर धारण किया है।

शेषनाग को अनंत नाम से भी पुकारा जाता है

माना जाता है कि शेषनाग जी के 1000 शीष हैं और उनका कहीं अंत नहीं है। इसीलिए उन्हें अनंत नाम से भी पुकारा जाता है। तप और भक्ति का मार्ग अपनाने से ही शेषनाग हिंदू धर्म में भगवान स्वरूप प्राप्त कर चुके हैं और परम पूजनीय माने जाते हैं।

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Comments
English summary
Sheshanaga is the nagaraja or King of all Ngas and one of the primal beings of creation. In the Puranas, Sheshanaga is said to hold all the planets of the universe on his hoods and to constantly sing the glories of the God Vishnu from all his mouths.
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