Most Inspirational story: थोड़ा सा सहयोग भी होता है महत्वपूर्ण
नई दिल्ली। जीवन में महान लक्ष्यों को साधने के लिए कई बार अपरिमित साधन जुटाने पड़ते हैं, अथक प्रयास करने पड़ते हैं। आमतौर पर माना जाता है कि बड़े लक्ष्यों को प्राप्त कर पाने की क्षमता हर किसी के वश की बात नहीं होती है। इसका कारण यह है कि जितना महान लक्ष्य होता है, उसके लिए साधन भी उतने ही बड़े जुटाने पड़ते हैं और प्रयास भी उतने ही सशक्त करने पड़ते हैं और यह आम आदमी के बस की बात नहीं होती।
यही सोच कर जाने कितने ही लोग अपने जीवन में कुछ बड़ा करने की सोच कर भी हिम्मत नहीं जुटा पाते या किसी बड़े लक्ष्य का हिस्सा ही नहीं बनते। लेकिन क्या यह सही है कि बड़े लक्ष्यों को केवल बड़े कार्य से ही पाया जा सकता है? क्या यही सोचकर बड़े लक्ष्यों को छोड़ देना सही है? क्या यह अच्छा नहीं होगा कि हम अपनी क्षमता के अनुरूप तो सहयोग करें, बाकी ईश्वर पर छोड़ दें? आज भगवान राम से जुड़ी एक कथा का रसास्वादन करते हैं और जानते हैं कि कैसे आपका थोड़ा- सा सहयोग भी बड़े काम में अपना महत्व रखता है-
समुद्र पर पत्थरों का पुल बनाने की तैयारी
यह उस समय की बात है, जब भगवान राम लंका पहुंचने के लिए समुद्र पर पत्थरों का पुल बनाने की तैयारी कर रहे थे। यह बात तो सब जानते हैं कि श्री राम की वानर सेना में नल और नील नाम के दो वानर थे, जिन्हें आशीर्वाद प्राप्त था कि उनके छुए हुए पत्थर पानी में नहीं डूबेंगे। यही वजह थी कि सारी वानर सेना हर तरफ से पत्थर उठा- उठाकर नल और नील के पास लाती थी और वे अपने हाथों से उसे समुद्र की सतह पर जमाते जाते थे। राम सेतु बनाने का यह काम जब पूरे जोर-शोर से चल रहा था, तब एक छोटी सी गिलहरी समुद्र तट पर बैठी सारा दृश्य देख रही थी। उसके छोटे से मन में यह बात आई कि भगवान को सहयोग की आवश्यकता है और जब यह सारे बंदर उन्हें सहयोग कर रहे हैं, तो मुझे भी इस काम में हाथ बंटाना चाहिए।
गिलहरी ने हार ना मानी
उस नन्हीं गिलहरी ने थोड़ी देर तक सब काम होते हुए देखा और पत्थर उठाने की कोशिश भी की, पर सफल ना हो सकी। इसके बावजूद उसने हार ना मानी और बहुत सोच-विचार कर सहयोग करने का तरीका ढूंढ ही लिया। वह पहले समुद्र के पानी में अपनी पूंछ डुबोती, फिर वापस तट पर आकर अपनी पूंछ रेत पर फेरती और जो रेतकण उसकी पूंछ पर चिपक जाते, उन्हें सेतु पर डाल आती। वह दिनभर अपने काम में लगी रही। कुछ वानरों ने उसे देखा और उसका मजाक भी उड़ाया, पर जन-जन और कण-कण का मान रखने वाले श्री राम ने उसके मन की लगन को समझा। शाम ढलने पर उन्होंने स्वयं गिलहरी को अपने पास बुलाया और उसकी पीठ पर हाथ फेरकर उसे शाबाशी और धन्यवाद दोनों दिए। कहते हैं कि उसी दिन से गिलहरियों के शरीर पर राम जी की अंगुलियों के निशान रेखाओं के रूप में पड़ गए।
नन्हीं सी गिलहरी ने श्री राम का स्नेह प्राप्त कर लिया
तो देखा आपने, नन्हीं सी गिलहरी की छोटी-सी उमंग ने उसे श्री राम का स्नेह प्राप्त करा दिया। यदि वह गिलहरी भी यही सोचती कि इतने बड़े काम में मैं क्या सहयोग कर सकती हूं, तो क्या वह इस अमर स्नेह की प्राप्ति कर पाती? इसीलिए सोचिए मत, बस सहयोग में जुट जाइए। जहां, जितना और जिस रूप में सहयोग कर सकें, कीजिए। आपका छोटा-सा सहयोग ना केवल दूसरों के लिए, बल्कि आपके लिए भी बहुत महत्वपूर्ण साबित हो सकता है।
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