सोमवार व्रत कथा: शिव की कृपा से जीवित हो उठा मृत बालक
नई दिल्ली। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार सोमवार का दिन भगवान शिव को समर्पित है। शिव स्वभाव से भोले भंडारी कहे जाते हैं, इसीलिए उन्हें प्रसन्न करने और उनकी कृपा पाने के निहितार्थ किए गए सोमवार के व्रत को सर्वसुखप्रदायी माना जाता है।
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कहा जाता है कि सोमवार का व्रत करने वाले भक्तों के जीवन से हर कष्ट समाप्त हो जाते हैं और भगवान शिव की कृपा से उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। सोमवार के व्रत तीन तरह के होते हैं- सामान्य सोमवार, प्रदोष सोमवार और सोलह सोमवार। तीनों ही प्रकार के व्रत अत्यंत फलदायी हैं।
आइए, आज सामान्य सोमवार व्रत की कथा का रसपान करते हैं...
यह पुत्र की लालसा रखता है...
बहुत समय पहले की बात है। किसी शहर में एक साहूकार रहता था। वह शिवजी का अनन्य भक्त था और बड़ी श्रद्धा से हर सोमवार को शिवजी का व्रत करता था। हर सोमवार की शाम वह शिव मंदिर में जाकर दीया अवश्य लगाता था। उसकी अपार भक्ति को देख पार्वती माता बहुत प्रसन्न हुईं और शिवजी से बोलीं कि यह साहूकार जिस मनोकामना से आपकी पूजा करता है, उसे अवश्य पूरा करें। शिव भगवान ने बताया कि यह पुत्र की लालसा रखता है, पर इसके भाग्य में पुत्र का सुख नहीं है। इस पर पार्वती जी ने हठ पकड़ लिया कि भगवान उसे पुत्र होने का वरदान अवश्य दें। पार्वती के हठ पर शिवजी ने वरदान दे दे दिया, पर साथ ही यह भी बताया कि पुत्र की आयु मात्र 12 वर्ष की होगी। साहूकार भी यह वार्तालाप सुन रहा था।
साहूकार के घर एक सुंदर बालक ने जन्म लिया
समय आने पर साहूकार के घर एक सुंदर बालक ने जन्म लिया। जब बालक 11 वर्ष का हुआ तो साहूकार ने लड़के के मामा को बुलाकर बहुत सा धन देते हुए कहा कि मेरे बेटे को अध्ययन के लिए काशी ले जाओ और रास्ते में जहां भी रूको, यज्ञ और ब्राह्मण भोजन करवाते हुए जाना। मामा- भांजा उनकी आज्ञा का पालन करते हुए चल पड़े। रास्ते में एक शहर पड़ा, जहां राजकुमारी की शादी हो रही थी, पर उसका दूल्हा काना था।
टूट जाने के डर से परेशान था
दूल्हे का पिता बात खुल जाने पर रिश्ता टूट जाने के डर से परेशान था। साहूकार के सुंदर बेटे को देख उसने एक योजना बनाई और अपने बेटे के स्थान पर उसे दूल्हा बनाकर भेज दिया। शादी हो जाने पर उसने साहूकार के बेटे को बहुत सारा धन देकर विदा कर दिया, पर जाने से पहले साहूकार का बेटा राजकुमारी की चुनरी पर लिख गया कि तुम्हारी शादी राजा के बेटे से नहीं, मुझसे हुई है और मैं अध्ययन करने काशी जा रहा हूं। मैं वही हूं, जो हर शहर में यज्ञ और ब्राहमण भोज करवाता हूं। राजकुमारी ने वह चुनरी अपने पिता को दिखाई और राजा के काने बेटे के साथ जाने से मना कर दिया।
धन देकर उसे बेटी समेत विदा किया
इधर, साहूकार का बेटा काशी में अध्ययन करने लगा। यहां भी मामा- भांजा यज्ञ और ब्राह्मण भोज करवाते रहते थे। जिस दिन लड़के की आयु 12 वर्ष हुई, उसकी तबियत बिगड़ी और वह मर गया। मामा विलाप करने लगा और उसका मर्मांतक रूदन वहीं से निकल रहे शिव-पार्वती को सुनाई पड़ा। जब पार्वती ने देखा कि यह तो वही साहूकार का बेटा है, तो वह वापस हठ करने लगीं कि यह भी आपका भक्त है, इसे जीवन दान दें नहीं तो इसके माता-पिता तड़पकर मर जाएंगे। शिव जी ने उसे वापस जीवित कर दिया। लड़के को जीवन दान मिला देखकर मामा वापस यज्ञ और ब्राह्मण भोजन कराता उसे लेकर घर चल पड़ा। रास्ते में वही राज्य पड़ा, जहां की राजकुमारी से लड़के की शादी हुई थी। मामा-भांजा के यज्ञ कराने से राजा उन्हें पहचान गया और बड़ी आवभगत के बाद ढेर सारा धन देकर उसे बेटी समेत विदा किया। अपने शहर आकर मामा ने लड़के को बाहर रोक दिया और सुखद समाचार देने घर चल पड़ा। घर आकर उसने देखा कि उसके बहन-जीजा छत पर इस संकल्प के साथ बैठे हैं कि बेटा जीवित ना लौटा, तो वहीं से कूदकर जान दे देंगे। मामा ने दोनों को पूरा हाल सुनाया। बेटे के साथ लक्ष्मी स्वरूपा बहू पाकर साहूकार और उसकी पत्नी अत्यंत प्रसन्न हुए और जीवन पर्यंत परिवार समेत सोमवार का व्रत कर सुख पाते रहे।
व्रत की विधि
सोमवार का व्रत सामान्यतः दिन के तीसरे प्रहर तक होता है। इस दिन शिव पार्वती की पूजा-ध्यान में ही मन एकाग्र करना चाहिए। इस दिन फलाहार का कोई नियम नहीं है, पर दिन-रात में केवल एक बार भोजन ग्रहण करना चाहिए। इस दिन सुबह से स्नान कर, साफ वस्त्र पहनकर शिव जी और मां पार्वती का ध्यान-पूजन करना चाहिए। पूजा के पश्चात कथा अवश्य सुनना चाहिए। सोमवार के तीनों ही व्रतों की विधि एक समान है, बस, कथा का अंतर है। किसी भी तरह का सोमवार करें, यह मानकर चलें कि शिव भोले हैं और भक्त प्रेमी भी। पूरी श्रद्धा से की गई सामान्य पूजा भी वह अंतर्मन से स्वीकार करते हैं।