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गालिब का अंदाज-ए-बयां कुछ और है....

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Mirza-Ghalib
नई दिल्ली। मिर्जा असदुल्ला खान 'गालिब" भारतीय इतिहास के वो मील के पत्थर है जहां कोई भी नहीं पहुंच सकता है। गालिब की ख्याती का पता आप इसी बात से लगा सकते है कि आज भी लोगों की जुबान पर गालिब का ही कलाम होता है। दिल्ली ने अपने इस महान सपूत की 213 वीं जयंती पर दिल से याद करते हुए उनकी लिखी गजलो को पढ़ा। उनकी विरासत से जुडे लोगों का कहना है कि गालिब को मानवीय मनोभाव पर मजबूत पकड थी और इसी कारण वो एक अमर शायर बने।

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बर्फी क्या हिन्दू होती है और जलेबी क्या मुसलमान यह मासूम सा सवाल मशहूर शायर मिर्जा गालिब ने अपने उस मुरीद से पूछा था जो एक हिन्दू थे। यहां से उनके घर बर्फी का तोहफा आने पर उनसे पूछा था कि क्या आप हिंदू के यहां से आई बर्फी खा लेगें। जबान और कलम के धनी मिर्जा गालिब ने तपाक से कहा था मुझे पता नहीं था कि बर्फी हिन्दू हो सकती हैं या लड्डू का भी कोई मजहब हो सकता है।

जाने माने शायर और फिल्म गीतकार गुलजार ने आज यहां इंडियन वुमेन प्रेस कोर द्वारा आयोजित एक प्रेस कांफ्रेस में यह किस्सा सुनाया। उनका कहना था कि हर चीज को दीन का नाम देकर रोजमर्रा की जिन्दगी तबाह कर दी जाती है जिससे देश बर्बाद हो जाते है। संवाददाता सम्मेलन में गालिब के पुस्तक के लेखक तथा भूटान में भारत के राजदूत पवन कुमार वर्मा भी उपस्थित थे।

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अंग्रेजी में लिखी गालिब की पुस्तक का हिन्दी अनुवाद गुलजार ने किया है। गुलजार ने कहा कि गालिब सही मायने में धर्म निरपेक्ष व्यक्तित्व थे। सही तो यह है कि वे धार्मिक न होकर आध्यात्मिक व्यक्तित्व थे। दिल्ली गालिब अकादमी के सचिव अकील अहमद ने कहा, ''गालिब ने जिस तरह से अपनी शायरी में जीवन के हर पहलू को शामिल किया उसने उन्हें एक आम आदमी का शायर बना दिया । उन्होंने अपनी शायरी के माध्यम से जो बातें कहीं हैं उससे जुडना बहुत आसान है। इसके बावजूद जिस तरह से उन्होंने अपनी बातें कहीं है उसकी उर्दू के अन्य रचनाओं से कोई तुलना नहीं है।'

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English summary
The legacy of the 19th century classical Sufi lyricist and poet Mirza Ghalib came alive Sunday when Delhi Chief Minister Sheila Dikshit installed the poet"s bust at his haveli in Chandi Chowk area of Delhi"s old quarters on the eve of his 213th birth anniversary.
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