Makar Sankranti 2021 : मकर संक्रांति पर क्यों खाते हैं खिचड़ी और क्यों होता है तिल दान?
नई दिल्ली। मकर संक्रांति ही एक ऐसा पर्व है जिसका निर्धारण सूर्य की गति से होता है।। पौष मास में जब सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करते हैं उस काल विशेष को ही संक्रांति कहते हैं। शनि देव मकर राशि के स्वामी हैं और जब सूर्य मकर में प्रवेश करता है तो उसे मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है। मान्यता है कि इस दिन सूर्य का मकर में प्रवेश होने से ही सारे शुभ काम शुरु हो जाते हैं जैसे बच्चों के मुंडन, छेदन संस्कार , यही नहीं संक्रांति के बाद लड़कियां मायके से ससुराल जाती हैं क्योंकि खरमास समाप्त हो जाता है।
क्यों मनाते हैं मकर संक्रांति?
पौष मास के शुक्ल पक्ष में मकर संक्रांति को सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है। इसी दिन से सूर्य उत्तरायण हो जाता है। शास्त्रों में उत्तारायण की अवधि को देवी-देवताओं का दिन और दक्षिणायन को देवताओं की रात के तौर पर माना गया है। मकर संक्रांति के दिन स्नान, दान, तप, जप, श्राद्ध तथा अनुष्ठान आदि का अत्यधिक महत्व है।
सौ गुना पुण्य प्राप्त होता है दान से
शास्त्रों के अनुसार इस अवसर पर किया गए दान से सौ गुना पुण्य प्राप्त होता है। मकर संक्रांति के दिन घी और कंबल के दान का भी विशेष महत्व है। इस त्योहार का संबंध केवल धर्मिक ही नहीं है बल्कि इसका संबंध ऋतु परिवर्तन और कृषि से है। इस दिन से दिन एंव रात दोनों बराबर होते है।
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धार्मिक क्रियाकलापों का विशेष महत्व
इस दिन जप, तप, दान, स्नान, श्राद्ध, तर्पण आदि धार्मिक क्रियाकलापों का विशेष महत्व है। ऐसी धारणा है कि इस अवसर पर दिया गया दान सौ गुना बढ़कर पुन: प्राप्त होता है। इस दिन शुद्ध घी एवं कम्बल का दान मोक्ष की प्राप्ति करवाता है तो वहीं इस दिन खास तौर पर तिल का दान किया जाता है।
तिल
का
दान
सबसे
शुभ
कहा जाता है कि संक्रान्ति के लिए तिल का दान सबसे शुभ माना गया है क्योंकि मान्यता है कि तिल शनि का द्रव्य है, तिल के जरिए इंसान अपने पूर्व जन्मों में किए गए पापों की माफी मांगता है, इस कारण लोग आज के दिन काला और सफेद दोनों तिल दान करते हैं।
मकर संक्रांति पर खिचड़ी का प्रयोग क्यों?
उत्तर प्रदेश में मकर संक्रांति के दिन भोजन के रूप में खिचड़ी खाने की परंपरा है, दरअसल यूपी में चावल की पैदावार अधिक होती थी। मकर संक्रांति को नए वर्ष के रूप में मनाया जाता है इसलिए नए चावल से नए साल का स्वागत किया जाता है।