Makar Sankranti 2018: क्यों उड़ाते हैं इस दिन पतंग, क्यों बूढ़ों पर भी छा जाता है लड़कपन?
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लखनऊ। आज पूरे भारत में मकर संक्रांति का त्योहार हर्षो-उल्लास के साथ मनाया जा रहा है। बाजारों में तिल-गुड़, चूड़े, गजक-मूंगफली की भरमार है तो वहीं दूसरी ओर गुड्डी यानी पतंगों की दुकानें भी सजी हुई हैं। लाल-पीली, हरी-गुलाबी पतंगों से सजी दुकानें इस वक्त हर किसी का मन मोह रही है लेकिन क्या कभी आपने सोचा है कि मकर संक्रांति पर पतंग क्यों उड़ाते हैं और इसका इस त्योहार से क्या रिलेशन है, आखिर क्यों संक्रांति के दिन बड़े-बूढ़े भी बच्चों को पतंग उड़ाने से रोकते नहीं है और तो और वो खुद भी इस खेल में बड़ी खुशी से शामिल होते हैं।
पतंग है शुभ संदेश की वाहक
दरअसल मान्यता है कि पतंग खुशी, उल्लास, आजादी और शुभ संदेश की वाहक है, संक्रांति के दिन से घर में सारे शुभ काम शुरू हो जाते हैं और वो शुभ काम पतंग की तरह ही सुंदर, निर्मल और उच्च कोटि के हों इसलिए पतंग उड़ाई जाती है। काम की शुभता के लिए तो कहीं-कहीं लोग तिरंगे को भी पतंग रूप में इस दिन उड़ाते हैं।
नई सोच और शक्ति
पतंग उड़ाने से दिल खुश और दिमाग संतुलित रहता है, उसे ऊंचाई तक उड़ाना और कटने से बचाने के लिए हर पल सोचना इंसान को नयी सोच और शक्ति देता है इस कारण पुराने जमाने से लोग पतंग उड़ा रहे हैं।
सूरज की रोशनी के लिए
सर्दी के दिनों में सूरज की रोशनी बहुत जरूरी होती है इस कारण भी लोग पतंग उड़ाते हैं। ऐसा माना जाता है मकर संक्रांति के दिन से सूरज देवता प्रसन्न होते हैं इस कारण लोग घंटो सूर्य की रोशनी में पतंग उड़ाते हैं, इस बहाने उनके शरीर में सीधे सूरज देवता की रोशनी और गर्मी पहुंचती है, जो उन्हें सीधे तौर पर विटामिन डी देती है और खांसी, जुकाम से बचाती है।
एकता का पाठ
पतंग अकेले उड़ाई नहीं जा सकती है, एक इंसान माझा पकड़ता है तो डोर किसी और के हाथ में होती है, एक छोटी सी पतंग लोगों को एकता का पाठ पढ़ाती है, यही नहीं पतंग के जरिए लोग हार-जीत का अंतर भी समझते हैं, वो भी बेहद प्यार से।
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