Mahashivratri 2021: पढ़ें महाशिवरात्रि कथा
नई दिल्ली। महाशिवरात्रि का पर्व फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि 11 मार्च 2021 को आ रहा है। इस दिन भगवान शिव की पूजा करके समस्त सुख-वैभव प्राप्त किया जा सकते हैं।
यह है विधान : महाशिवरात्रि का व्रत करने के लिए त्रयोदशी को एक समय भोजन करके चतुर्दशी को निराहार रहना होता है। पत्र, पुष्प तथा सुंदर वस्त्रों से मंडप तैयार करके वेदी पर कलश की स्थापना करके गौरी शंकर तथा नंदी की मूर्तियां स्थापित करें। कलश को जल से भरकर रौली, मौली, चावल, पान, सुपारी, लौंग, इलायची, चंदन, दूध, घी, शहद, कमलगट्टा, धतूरा, बेल पत्र आदि शिवजी को अर्पित करें। रात को जागरण करके चार बार शिवजी की आरती करें। दूसरे दिन प्रात: जौ, तिल, खीर तथा बेलपत्र का हवन करके ब्राह्मणों को भोजन करवाकर व्रत का पारण करें।
शिव पर चढ़ा नैवेद्य खाना निषिद्ध है
भगवान शिव पर चढ़ाया गया नैवेद्य खाना निषिद्ध होता है। जो मनुष्य इस नैवेद्य को खा लेता है वह नरक को प्राप्त होता है। इस कष्ट के निवावरण के लिए शिवजी की मूर्ति के पास शालिग्राम की मूर्ति रखी जाती है। यदि शिवजी की मूर्ति के पास शालिग्राम रखा होगा तो नैवेद्य खाने पर कोई दोष नहीं लगता है।
महाशिवरात्रि कथा :एक गांव में एक शिकारी रहता था। वह शिकार करके अपने परिवार का पालन पोषण करता था। एक बार उस पर साहूकार का ऋण हो गया। ऋण न चुकाने पर सेठ ने उसे शिव मंदिर में बंदी बना लिया। उस दिन शिवरात्रि थी। वह मंदिर में शिवरात्रि और भगवान शिव से जुड़ी बातें, कथाएं ध्यान से सुनता रहा। संध्या होने पर सेठ ने उसे अपने पास बुलाया। शिकारी ने अगले दिन ऋण चुकाने का वादा किया तो सेठजी ने उसे कैद से मुक्त कर दिया। वह जंगल में एक तालाब किनारे एक पेड़ पर शिकार करने के लिए मचान बनाने लगा। वह पेड़ बेल का था, यह उसे पता नहीं था। उस पेड़ के नीचे शिवलिंग था। पेड़ के पत्ते मचान बनाते समय शिवलिंग पर गिरते रहे। इस प्रकार दिनभर भूखे रहने से अनजाने में शिकारी का व्रत हो गया और शिवलिंग पर बेलपत्र भी अर्पित होते गए।
गर्भिणी हिरणी तालाब पर पानी पीने आई
एक प्रहर बीतने पर एक गर्भिणी हिरणी तालाब पर पानी पीने आई। शिकारी ने उसे देखकर धनुष बाण उठा लिया। यह देख वह हिरणी बोली मैं गर्भवती हूं, मेरा प्रसव काल समीप है। मैं बच्चे को जन्म देकर शीघ्र ही तुम्हारे समीप उपस्थित हो जाऊंगी। यह सुनकर शिकारी ने उसे छोड़ दिया। कुछ देर बार एक दूसरी हिरणी उधर से निकली। शिकारी ने फिर धनुष बाण उठाया। हिरणी बोली हे व्याघ्र! मैं थोड़ी देर पहले ही ऋतु से निवृत हुई हूं। कामातुर विरहिणी हूं। अपने पति से मिलन करने के पश्चात शीघ्र ही तुम्हारे पास आ जाऊंगी। शिकारी ने उसे भी छोड़ दिया। रात्रि के अंतिम प्रहर में एक मृगी अपने बच्चों के साथ उधर से निकली। शिकारी बाण चलाने ही वाला था किहिरणी बोली मैं इन बच्चों को इनके पिता के पास छोड़ आऊं फिर तुम मेरा शिकार कर लेना। शिकारी को इस पर दया आ गई और उसे जाने दिया। पौे फटने को हुई तो एक मोटा ताजा हिरण आता दिखा। शिकारी ने बाण उठाया लेकिन हिरण बोला, हे व्याघ्र यदि इससे पहले तीन हिरणियों को मार दिया हो तो मुझे भी मार दीजिए ताकिमुझे उनका वियोग न सहना पड़े। मैं उन तीनों का पति हूं। यदि तुमन उन्हें जीवनदान दिया है तो कुछ समय के लिए मुझे भी जीवनदान दें तो मैं उनसे मिलकर तुम्हारे सामने आत्मसमर्पण कर सकूं।
बेल पत्र चढ़ाने से उसमें भगवद् भक्ति का संचार
यह सुनकर उसके मन में रात की सारी घटनाएं घूम गई। रात्रि जागरण, भूख प्यास और शिवलिंग पर बेल पत्र चढ़ाने से उसमें भगवद् भक्ति का संचार हो गया। उसका मन पवित्र हो गया और उसने हिरण को भी जाने दिया। थोड़ी देर बाद हिरण सपरिवार शिकारी के सामने उपस्थित हो गया। जंगली पशुओं की सत्यप्रियता और सामूहिक प्रेम भावना देखकर उसे आत्मग्लानि हुई। उसने नेत्रों से आंसू बहने लगे। उसने हिरण के परिवार को मुक्त कर दिया। आकाश से समस्त देवता यह घटनाक्रम देख रहे थे। भगवान शिव की कृपा से साहूकार ने शिकारी का ऋण भी माफ कर दिया।
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