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नवरात्रि विशेषः अवंतिका देवी मंदिर में हुआ था कृष्ण और रूक्मिणी का विवाह

राजकुमारी रुक्मिणी बाल्यावस्था से अपनी सहेलियों के साथ माता अवंतिका देवी की नाना प्रकार से पूजन करती थीं

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बुलंदशहर। अवंतिका देवी का मंदिर यूपी के बुलंदशहर जनपद की अनूपशहर तहसील के अंतर्गत जहांगीराबाद से 15 किमी. दूर पतित पावनी गंगा नदी के तट पर निर्जन स्थान पर स्थित है। यहां न कोई ग्राम है, न कस्बा है।

अवंतिका देवी सिद्धपीठ

अवंतिका देवी सिद्धपीठ

मान्यता है कि पृथ्वी पर जितनी भी सिद्धपीठ हैं वह सब सती जी के अंग हैं, लेकिन अवंतिका देवी सिद्धपीठ सती जी का अंग नहीं है।

शक्ति पीठ के रूप में विराजमान है मां अवंतिका देवी

शक्ति पीठ के रूप में विराजमान है मां अवंतिका देवी

कहा जाता है कि इस सिद्धपीठ पर जगत जननी करुणामयी माता भगवती अवंतिका देवी (अम्बिका देवी) साक्षात् प्रकट हुई थीं। मंदिर में दो संयुक्त मूर्तियां हैं, जिनमें बाईं तरफ मां भगवती जगदम्बा की है और दूसरी दायीं तरफ सतीजी की मूर्ति है। यह दोनों मूर्तियां ‘अवंतिका देवी' के नाम से प्रतिष्ठित हैं। मां भगवती अवंतिका देवी को पोशाक वस्त्रादि नहीं चढ़ाया जाता है, अपितु सिन्दूर व देशी घी का चोला (आभूषण) चढ़ाया जाता है।

ये हैं मान्यता

ये हैं मान्यता

अवंतिका देवी मंदिर की ऐसी मान्यता है कि जो भी भक्त मां भगवती अवंतिका देवी पर सिन्दूर व देशी घी का चोला चढ़ाता है, माता अवंतिका देवी उसकी समस्त मनोकामना पूर्ण करती हैं। कुंआरी युवतियां अच्छे पति की कामना से माता अवंतिका देवी का पूजन करती हैं। कहा जाता है कि रुक्मिणी ने भगवान कृष्ण को पति रूप में प्राप्त करने के लिए इन्हीं अवंतिका देवी का पूजन किया था। यह भी कहा जाता है कि भगवान श्री कृष्ण ने इसी मंदिर से रुक्मिणी की इच्छा पर उनका हरण किया था और बाद में इसी मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण और रूक्मिणी का विवाह भी हुआ था।

 श्रीकृष्ण-रूक्मिणी के विवाह से जुडा है नाम

श्रीकृष्ण-रूक्मिणी के विवाह से जुडा है नाम

अवंतिका देवी मंदिर तथा रुक्मिणी कुण्ड से एक पौराणिक कथा भी जुड़ी हुई है। यह कथा द्वापर युग की है तथा रुक्मिणी-कृष्ण विवाह से संबंधित है। किंवदंतियों के अनुसार बुलंदशहर जनपद की तहसील अनूपशहर के अंतर्गत स्थित वर्तमान कस्बा अहार द्वापर युग में राजा भीष्मक की राजधानी कुण्डिनपुर नगर था। कुण्डिन नरेश महाराज भीष्मक के पांच पुत्र तथा एक सुंदर कन्या थी। सबसे बड़े पुत्र का नाम रुक्मी था और चार छोटे थे जिनके नाम क्रमशरू रुक्मरथ, रुक्मबाहु, रुक्मकेश और रुक्मपाली थे। इनकी बहिन थीं सती रुक्मिणी।

कृष्ण से विवाह का विरोध

कृष्ण से विवाह का विरोध

राजा भीष्मक को जब यह मालूम हुआ कि रुक्मिणी श्रीकृष्ण को पति के रूप में चाहती हैं तो वह इस विवाह के लिए सहर्ष तैयार हो गये। जब इस विवाह के बारे में राजा भीष्मक के सबसे बड़े पुत्र रुक्मी को मालूम हुआ तो उसने श्रीकृष्ण-रुक्मिणी विवाह का विरोध किया। राजकुमार रुक्मी ने सती रुक्मिणी का विवाह चेदि नरेश राजा दमघोष के पुत्र शिशुपाल से उनके हाथ में मौहर बांधकर तय कर दिया। शिशुपाल ने अपनी सेना को विवाह से तीन दिन पहले ही कुण्डिनपुर के चारों ओर तैनात कर दिया और हुक्म दिया कि श्रीकृष्ण को देखते ही बंदी बना लिया जाए। राजकुमारी को जब यह मालूम हुआ कि उनका बड़ा भाई रुक्मी उनका विवाह शिशुपाल के साथ करना चाहता है तो वह बहुत दुखी हुई।

ब्राह्मण के हाथ भेजा था रूक्मिणी भगवान कृष्ण को संदेश

ब्राह्मण के हाथ भेजा था रूक्मिणी भगवान कृष्ण को संदेश

राजकुमारी रुक्मिणी ने एक ब्राह्मण के माध्यम से भगवान श्रीकृष्ण के पास द्वारिका संदेश भेजा कि उसने मन ही मन श्रीकृष्ण को पति के रूप में वरण कर लिया है, परंतु उसका बड़ा भाई रुक्मी उसका विवाह उसकी इच्छा के विरुद्ध, जबरदस्ती चेदि के राजा के पुत्र शिशुपाल के साथ करना चाहता है। इसलिए वह वहां आकर उसकी रक्षा करे। रुक्मिणी की रक्षा की गुहार पर भगवान श्रीकृष्ण अहार पहुंचे तथा रुक्मिणी की इच्छानुसार इसी माता अवंतिका देवी मंदिर से रुक्मिणी का हरण उस समय किया जब वह मंदिर में पूजन करने गयी थीं।

 यहां हुआ था कृष्ण से रूक्मिणी का युद्ध

यहां हुआ था कृष्ण से रूक्मिणी का युद्ध

जब श्रीकृष्ण रुक्मिणी को रथ में बैठाकर द्वारिका के लिए चले तो उनको राजा शिशुपाल, जरासिन्ध तथा राजकुमार रुक्मी की सेनाओं ने चारों ओर से घेर लिया। उसी समय उनकी मदद के लिए उनके बड़े भाई बलराम भी अपनी सेना लेकर आ गये। घोर-युद्ध हुआ। युद्ध में राजा शिशुपाल आदि की सेनाएं हार गयीं। उसी समय से कुण्डिनपुर का नाम अहार पड़ गया।

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English summary
Maa Markama Temple located at Bulandshahr district Uttar Pradesh, its a marriage place of Krishna and Rukmni.
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