Karwa or karva Chauth 2018: जानिए छलनी से क्यों देखते हैं चांद?
नई दिल्ली। करवा चौथ का व्रत सभी सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र की कामना के लिए निर्जला व्रत रखती हैं और शाम को चंद्रमा को अर्ध्य देकर पानी पीती हैं। लेकिन क्या कभी आपने सोचा है कि आखिर चंद्रमा की ही पूजा इस दिन क्यों होती है , जबकि चंद्रमा को चतुर्थी के दिन निहारना अच्छा नहीं माना जाता है, तो सुनिए इसके पीछे एक खास कारण है।
गोस्वामी तुलसी दास रचित रामचरितमानस में वर्णन
दरअसल गोस्वामी तुलसी दास रचित रामचरितमानस के लंका कांड में इस प्रसंग का जिक्र है, जिसके मुताबिक भगवान श्रीराम समुद्र पार करके जब लंका में स्थित सुबेल पर्वत पर उतरे और श्रीराम ने पूर्व दिशा की ओर चमकते हुए चंद्रमा को देखा तो अपने साथियों से पूछा - चंद्रमा में जो कालापन है, वह क्या है? सभी ने अपनी-अपनी बुद्धि के अनुसार जवाब दिया।
चंद्रमा में जो कालापन है, वह क्या है?
तब राम ने कहा कि विष यानी जहर चंद्रमा का बहुत प्यारा भाई है और इसी कारण उसने विष को अपने ह्रदय में स्थान दे रखा है, जिसके कारण चंद्रमा में कालापन दिखाई देता है। अपनी विषयुक्त किरणों को फैलाकर वह वियोगी नर-नारियों को जलाता रहता है।
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इसलिए होती है चांद की पूजा
जिसका मतलब ये हुआ कि जो पति-पत्नी किसी कारणवश एक-दूसरे से बिछड़ जाते हैं, चंद्रमा की विषयुक्त किरणें उन्हें अधिक कष्ट पहुंचाती हैं। इसलिए करवा चौथ के दिन चंद्रमा की पूजा कर महिलाएं ये कामना करती हैं कि किसी भी कारण उन्हें अपने अपने पति से अलग ना होना पड़े और इसी वजह से वो चतुर्थी वाले दिन उसकी पूजा करती हैं।
इसलिए छलनी से देखते हैं चांद?
लेकिन मान्यता ये है कि चतुर्थी के दिन चंद्रमा को नहीं निहारना चाहिए क्योंकि ऐसा करने से इंसान कलंक का भागीदार बनता है इसलिए चंद्रमा की पूजा करने के लिए छलनी से देखते हैं या पानी में उसकी परछाई देखकर उसे अर्ध्य दिया जाता है।
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