Kamada Ekadashi 2020: दुष्ट योनि से मुक्ति दिलाएगी कामदा एकादशी
नई दिल्ली। चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को कामदा एकादशी कहा जाता है। इसका महत्व इसलिए अधिक है क्योंकि यह नव संवत्सर की पहली एकादशी होती है। साथ ही यह समस्त प्रकार के भौतिक सुख तो प्रदान करती ही है, व्रत करने वाले को प्रेत और दुष्ट योनि तक से मुक्ति दिला देती है। इस बार यह एकादशी 4 अप्रैल 2020, शनिवार को है।
ऐसे करें कामदा एकादशी की पूजा
कामदा एकादशी की पूजा के लिए सर्वप्रथम एकादशी के दिन सूर्योदय पूर्व स्नान आदि के बाद व्रत का संकल्प लें। इसके बाद भगवान विष्णु की पूजा करें। भगवान विष्णु को फल, फूल, दूध, तिल और पंचामृत आदि सामग्री अपर्ण करें। पूजा के बाद एकादशी व्रत की कथा सुनें। कामदा एकादशी के व्रत और पूजन के बाद द्वादशी के दिन प्रात: ब्राह्मण दंपती को भोजन करवाकर यथाशक्ति दक्षिणा देकर व्रत का पारण करें।
यह पढ़ें: Coronavirus: कोरोना के खिलाफ लड़ाई में संबल बन सकता है ओम (ॐ) मंत्र का जाप
एकदशी की कथा
प्राचीनकाल में भोगीपुर नामक एक नगर था। वहां पुण्डरीक नामक राजा का राज्य था। भोगीपुर नगर में अनेक अप्सरा, किन्न्र तथा गंधर्व वास करते थे। उनमें से एक जगह ललिता और ललित नाम के दो स्त्री-पुरुष अत्यंत वैभवशाली घर में निवास करते थे। उन दोनों में अत्यंत स्नेह था। एक समय पुण्डरीक की सभा में अन्य गंधर्वों सहित ललित भी गान कर रहा था। गाते-गाते उसको अपनी प्रिय ललिता का ध्यान आ गया और उसका स्वर भंग होने के कारण गाने का स्वरूप बिगड़ गया। ललित के मन के भाव जानकर कार्कोट नामक नाग ने स्वर भंग होने का कारण राजा को बता दिया। इस पर क्रोधित होते हुए पुण्डरीक ने ललित को श्राप दे दिया कि तू कच्चा मांस और मनुष्यों को खाने वाला राक्षस बनकर अपने किए कर्म का फल भोग।
महाकाय विशाल राक्षस हो गया...
पुण्डरीक के श्राप से ललित उसी क्षण महाकाय विशाल राक्षस हो गया। उसका मुख अत्यंत भयंकर, नेत्र सूर्य-चंद्रमा की तरह प्रदीप्त तथा मुख से अग्नि निकलने लगी। इस प्रकार राक्षस होकर वह अनेक प्रकार के दु:ख भोगने लगा। जब उसकी प्रियतमा ललिता को यह वृत्तांत मालूम हुआ तो उसे अत्यंत खेद हुआ और वह अपने पति के उद्धार का यत्न सोचने लगी। वह राक्षस अनेक प्रकार के घोर दु:ख सहता हुआ घने वनों में रहने लगा। उसकी स्त्री उसके पीछे-पीछे जाती और विलाप करती रहती। एक बार ललिता अपने पति के पीछे घूमती-घूमती विंध्याचल पर्वत पर पहुंच गई, जहां पर श्रृंगी ऋषि का आश्रम था। ललिता शीघ्र ही श्रृंगी ऋषि के आश्रम में गई और वहां जाकर अपने पति की मुक्ति के लिए प्रार्थना करने लगी। उसे देखकर श्रृंगी ऋषि बोले कि हे सौभाग्यवती तुम कौन हो और यहां किसलिए आई हो? ललिता बोली कि हे मुनिवर मेरा नाम ललिता है। मेरा पति राजा पुण्डरीक के श्राप से विशालकाय राक्षस हो गया है। उसके उद्धार का कोई उपाय बताइए। श्रृंगी ऋषि बोले हे गंधर्व कन्या! अब चैत्र शुक्ल एकादशी आने वाली है, जिसका नाम कामदा एकादशी है। इसका व्रत को करने से मनुष्य के सब कार्य सिद्ध होते हैं। यदि तू कामदा एकादशी का व्रत कर उसके पुण्य का फल अपने पति को दे तो वह शीघ्र ही राक्षस योनि से मुक्त हो जाएगा और राजा का श्राप भी शांत हो जाएगा।
ललिता ने चैत्र शुक्ल एकादशी का व्रत किया
मुनि के ऐसे वचन सुनकर ललिता ने चैत्र शुक्ल एकादशी आने पर उसका व्रत किया और द्वादशी को ब्राह्मणों के सामने अपने व्रत का फल अपने पति को देती हुई भगवान से इस प्रकार प्रार्थना करने लगी - हे प्रभो! मैंने जो यह व्रत किया है इसका फल मेरे पतिदेव को प्राप्त हो जाए जिससे वह राक्षस योनि से मुक्त हो जाए। एकादशी का फल देते ही उसका पति राक्षस योनि से मुक्त होकर अपने पुराने स्वरूप को प्राप्त हुआ। फिर अनेक सुंदर वस्त्राभूषणों से युक्त होकर ललिता के पास लौट आया।
कब से कब तक एकादशी
- कामदा एकादशी प्रारंभ 3 अप्रैल को रात्रि 12.57 बजे से
- कामदा एकादशी पूर्ण 4 अप्रैल को रात्रि 10.29 बजे तक
- एकादशी का पारण 5 अप्रैल को प्रात: 7.26 से 9.32 तक
यह पढ़ें: Motivational Story: दुख तो सहना ही पड़ता है