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Janmashtami 2020: जब द्रौपदी का सुहाग बचाया था श्रीकृष्ण ने

By Pt. Gajendra Sharma
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नई दिल्ली। महाभारत में द्रौपदी और श्री कृष्ण के बीच के रिश्ते की सुंदरता ऐसी विलक्षण है कि उसे केवल एक नाम से पुकारना या एक संबोधन में समेट देना अनुचित प्रतीत होता है। इन दोनों के स्नेह की पवित्रता ऐसी अनुपम है कि कहीं वे सखा हैं, तो कहीं भाई-बहन। कभी श्री कृष्ण द्रौपदी का मार्गदर्शन करते हैं, तो कभी उनके रक्षाकवच बन जाते हैं। ऐसा ही एक प्रसंग महाभारत युद्ध के बीच देखने में आता है, जब श्री कृष्ण ने अपनी चतुराई से द्रौपदी के सुहाग की रक्षा की थी।

पांडव सेना कौरवों को भयंकर क्षति पहुंचा चुकी थी

पांडव सेना कौरवों को भयंकर क्षति पहुंचा चुकी थी

यह उस समय की बात है, जब महाभारत युद्ध अपने चरम पर था और पांडव सेना कौरवों को भयंकर क्षति पहुंचा चुकी थी। इस समय कौरवों के अनेक महारथी युद्ध में काम आ चुके थे, जबकि पांचों पांडवों को तनिक भी हानि नहीं पहुंची थी। इस बात से दुर्योधन बुरी तरह बौखला गया और उसके मन में यह शंका उत्पन्न हुई कि भीष्म पितामह उसके पक्ष में खड़े अवश्य हैं, परंतु पांडवों का बचाव कर रहे हैं।

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भीष्म अपराजेय माने जाते थे

भीष्म अपराजेय माने जाते थे

कारण यह था कि भीष्म अपराजेय माने जाते थे और उनके रहते कौरव सेना को पीछे हटना पड़ रहा था। मन में ऐसी शंका आते ही दुर्योधन सीधे पितामह के पास पहुंचा और उनसे लड़ने लगा। दुर्योधन के आरोपों से व्यथित और क्रोधित होकर भीष्म ने उसी समय वचन दिया कि कल के युद्ध में वे पांचों पांडवों का संहार करेंगे।

पितामह ने आशीर्वाद दिया- सदा सौभाग्यवती भवः

पितामह ने आशीर्वाद दिया- सदा सौभाग्यवती भवः

लीलाधर श्री कृष्ण से तो कोई बात छिपी रहनी नहीं थी, तो वे तुरंत ही जान गए कि पांडवों पर महान संकट आ चुका है और भीष्म को रोकना संसार में किसी के बस की बात नहीं है। इसी के साथ यह भी सर्वसिद्ध है कि ऐसी कोई समस्या नहीं, जिसका हल श्री कृष्ण के पास ना हो। श्री कृष्ण ने तुरंत ही द्रौपदी को बुलाया और उसे साधारण दासी का वेश धारण करने को कहा। उन्होंने द्रौपदी से कहा कि भोर की बेला में जब पितामह नदी से नहाकर निकलें, तब तुम उनके चरण छूकर उनसे सदा सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद प्राप्त करो। द्रौपदी आधी रात को ही नदी किनारे जाकर बैठ गई और जैसे ही पितामह स्नान कर नदी से निकले, उसने तुरंत साष्टांग दंडवत किया। द्रौपदी ने अपना चेहरा छुपाया हुआ था और वैवाहिक चिन्ह प्रदर्शित किए हुए थे। उन्हें देखकर पितामह ने स्वाभाविक रूप से आशीर्वाद दिया- सदा सौभाग्यवती भवः।

लीलाधर श्री कृष्ण ने रची लीला

लीलाधर श्री कृष्ण ने रची लीला

उनके इतना कहते ही श्री कृष्ण सामने आ गए और द्रौपदी का परिचय देकर भीष्म को उनके ही आशीर्वाद से बांध दिया। भीष्म इस छल से अत्यंत क्रोधित हुए, किंतु अब उनके पास कोई राह ना थी। इस तरह श्री कृष्ण ने अपनी चतुराई से अपनी प्रिय सखा द्रौपदी के सुहाग की रक्षा की।

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English summary
Among the many relationships that one reads about and sees in the Mahabharata, the one between Lord Krishna and Draupadi is a beautiful and awe-inspiring one. here is beautiful story.
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