Puri Jagannath Rath Yatra: जानिए क्या है 'रथयात्रा' का अर्थ, क्यों रास्ते किए जाते हैं सोने की झाड़ू से साफ?
नई दिल्ली। आखिरकार लंबी जदोजहद के बाद कोरोना संकट के बीच विश्व प्रसिद्ध भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा प्रारंभ हो रही है, यह यात्रा कई मायनों में मायने रखती है और इसी कारण ये भक्तों की आस्था का विषय है, ऐसा माना जाता है कि इस रथयात्रा में शामिल होने से इंसान के सारे कष्टों का अंत होता है, उसके पापों का नाश होता है और उसे सुख की प्राप्ति होती है।
इसलिए चलिए जानते हैं इस पावन यात्रा से जुड़ीं बेहद खास बातें
स्कंद पुराण में ही है रथयात्रा का वर्णन
प्रभु जगन्नाथ की रथयात्रा का वर्णन स्कंद पुराण में भी है, जिसमें साफ तौर पर लिखा है कि जो व्यक्ति जगन्नाथ के नाम का कीर्तन करता हुआ गुंडीचा नगर तक जाता है वह सारे कष्टों से मुक्त हो जाता है, जबकि जो व्यक्ति जगन्नाथ को प्रणाम करते हुए मार्ग के धूल-कीचड़ आदि में लोट-लोट कर जाता है वो सीधे भगवान विष्णु के उत्तम धाम को प्राप्त होता है और जो व्यक्ति गुंडिचा मंडप में रथ पर विराजमान श्री कृष्ण, बलराम और सुभद्रा देवी के दर्शन दक्षिण दिशा को आते हुए करता है उसे मोक्ष मिलता है।
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रथयात्रा में निकलते हैं तीन रथ
गौरतलब है कि पुरी का जगन्नाथ मंदिर चार धाम में से एक है, 800 साल पुराने इस मंदिर में भगवान कृष्ण को जगन्नाथ के रूप में पूजा जाता है और इनके साथ उनके बड़े भाई बलराम और बहन सुभद्रा भी विराजमान हैं, रथयात्रा में तीनों ही लोगों के रथ निकलते हैं। रथयात्रा में तीन रथ होते है, जिसमें सबसे आगे ताल ध्वज पर श्री बलराम, उसके पीछे पद्म ध्वज रथ पर माता सुभद्रा और सबसे पीछे नन्दीघोष नाम के रथ पर श्री जगन्नाथ चलते हैं। तालध्वज रथ 65 फीट लंबा, 65 फीट चौड़ा और फीट ऊंचा है। इसमें 7 फीट व्यास के 17 पहिये लगे होते हैं। बलराम और सुभद्रा दोनों का रथ प्रभु जगन्नाथ के रथ से छोटा होता है।
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जानिए क्या है रथयात्रा का अर्थ
ऐसा माना जाता है कि रथ का निर्माण बुद्धि से किया जाता है, इसकी तुलना इंसान के शरीर से की जाती है, ऐसे रथ रूपी शरीर में आत्मा रूपी भगवान जगन्नाथ विराजमान होते हैं। इस प्रकार रथयात्रा शरीर और आत्मा के मेल की ओर संकेत करता है इसलिए श्री जगन्नाथ का रथ खींचकर लोग अपने आपको धन्य समझते हैं।
नारियल की लकड़ी से बनाए जाते हैं रथ
भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के रथ नारियल की लकड़ी से बनाए जाते है। ऐसा इसलिए किया जाता है क्योंकि ये लकड़ी हल्की होती है। भगवान जगन्नाथ के रथ का रंग लाल और पीला होता है। इसके अलावा यह रथ बाकी रथों की तुलना में भी आकार में बड़ा होता है, भगवान के रथ में एक भी कील या कांटे आदि का प्रयोग नहीं होता। यहां तक की कोई धातु भी रथ में नहीं लगाई जाती है। रथ की लकड़ी का चयन बसंत पंचमी के दिन और रथ बनाने की शुरुआत अक्षय तृतीया के दिन से होता है।
'सोने की झाड़ू'
तीनों रथ के तैयार होने के बाद इसकी पूजा के लिए पुरी के गजपति राजा की पालकी आती है। इस पूजा अनुष्ठान को 'छर पहनरा' नाम से जाना जाता है। इन तीनों रथों की वे विधिवत पूजा करते हैं और 'सोने की झाड़ू' से रथ मंडप और रास्ते को साफ करते हैं।
एकादशी पर मंदिर खोले जाते हैं
जगन्नाथ मंदिर पहुंचने के बाद भी सभी प्रतिमाएं रथ में ही रहती हैं। अगले दिन एकादशी पर मंदिर खोले जाते हैं और तब देवों को स्नान के बाद वैदिक मंत्रोच्चार के बीच उन्हें प्रतिष्ठित किया जाता है। रथयात्रा में जगन्नाथ को दशावतारों के रूप में पूजा जाता है, मान्यता के मुताबिक भगवान जगन्नाथ विभिन्न धर्मो, मतों और विश्वासों का अद्भुत समन्वय है, इसलिए पुरी रथयात्रा में कई धर्म के लोग भी शामिल होते हैं।
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