Jagannath Yatra 2018: जानिए रथ से जुड़ी कुछ खास बातें
पुरी। जगन्नाथ पुरी की रथयात्रा को देखने के लिए हजारों की संख्या में लोग हर साल उड़ीसा आते हैं और इस यात्रा में रथ को छू कर अपने पापों का अंत करते हैं। स्कन्द पुराण के मुताबिक रथ-यात्रा में जो व्यक्ति श्री जगन्नाथ जी के नाम का कीर्तन करता हुआ गुंडीचा नगर तक जाता है वह सारे कष्टों से मुक्त हो जाता है और जो व्यक्ति श्री जगन्नाथ जी का दर्शन करते हुए, प्रणाम करते हुए मार्ग के धूल-कीचड़ आदि में लोट-लोट कर जाता है वो सीधे भगवान श्री विष्णु के उत्तम धाम को प्राप्त होता है और जो व्यक्ति गुंडिचा मंडप में रथ पर विराजमान श्री कृष्ण, बलराम और सुभद्रा देवी के दर्शन दक्षिण दिशा को आते हुए करता है वो मोक्ष को प्राप्त होता है।
रथयात्रा में सबसे आगे ताल ध्वज पर श्री बलराम होते हैं ....
आपको बता दें कि रथयात्रा में सबसे आगे ताल ध्वज पर श्री बलराम, उसके पीछे पद्म ध्वज रथ पर माता सुभद्रा और सबसे पीछे नन्दीघोष नाम के रथ पर श्री जगन्नाथ जी चलते हैं। तालध्वज रथ 65 फीट लंबा, 65 फीट चौड़ा और फीट ऊंचा है। इसमें 7 फीट व्यास के 17 पहिये लगे होते हैं। बलराम जी और सुभद्रा जी दोनों का रथ प्रभु जगन्नाथ जी के रथ से छोटा होता है।
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जगन्नाथ जी को दशावतारों के रूप में पूजा जाता है...
रथयात्रा में जगन्नाथ जी को दशावतारों के रूप में पूजा जाता है, मान्यता के मुताबिक भगवान जगन्नाथ विभिन्न धर्मो, मतों और विश्वासों का अद्भुत समन्वय है, इसलिए पुरी रथयात्रा में कई धर्म के लोग भी शामिल होते हैं।
नारियल की लकड़ी का रथ
भगवान जगन्नाथ, बलभद्र, व सुभद्रा के रथ नारियल की लकड़ी से बनाए जाते है। ऐसा इसलिए किया जाता है क्योंकि ये लकड़ी हल्की होती है। भगवान जगन्नाथ के रथ का रंग लाल और पीला होता है। इसके अलावा यह रथ बाकी रथों की तुलना में भी आकार में बड़ा होता है।
क्या है रथ यात्रा का मतलब ....
कहा जाता है कि रथ का निर्माण बुद्धि से किया जाता है, इसकी तुलना इंसान के शरीर से की जाती है, ऐसे रथ रूपी शरीर में आत्मा रूपी भगवान जगन्नाथ विराजमान होते हैं। इस प्रकार रथयात्रा शरीर और आत्मा के मेल की ओर संकेत करता है इसलिए श्री जगन्नाथ जी का रथ खींचकर लोग अपने आपको धन्य समझते हैं।
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