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रेशम के धागे में घुली सामाजिक जागृति की महक

By कन्हैया कोष्टी
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अहमदाबाद। भाई-बहन के प्यार और स्नेह का प्रतीक रक्षा बंधन पर्व मंगलवार को मनाया जाने वाला है। वैसे बहनों ने राखियाँ तो खरीद ही ली होंगी और हर बहन की हर राखी में उसका प्यार और स्नेह अवश्य घुला होगा, इसमें कोई संदेह भी नहीं है, लेकिन अगर इस रेशम के धागे में प्यार और स्नेह के साथ सामाजिक जागृति की महक भी घुल जाए तो?

अहमदाबाद में एक व्यापारी जोड़ी पिछले दो दशक से ऐसा ही कुछ करने का प्रयास कर रही है। शहर के सरसपुर क्षेत्र में स्थित गुप्ता रक्षाबंधन से इस अभियान की महक फैल रही है और महक फैलाने का काम कर रही है ‘इकबाल-राधेश्याम' की जोड़ी। अपने व्यसन मुक्ति अभियान सहित सामाजिक जागृति के अभियान के लिए यह जोड़ी पिछले 20 वर्षों से मशहूर है।

इस जोड़ी से रूबरू होने पर अहमदाबाद में 1946 के दंगों में साम्प्रदायिक एकता के लिए शहीद हुए ‘वसंत-रजब' की याद ताजा हो जाती है। फर्क इतना ही है कि वसंत गजेंद्र गडकर और रजब अली ने हिन्दू-मुस्लिम एकता के लिए जान की बाजी लगा दी, वहीं इकबाल बेहलीम और राधेश्याम गुप्ता तम्बाकू विरोधी अभियान तथा सामाजिक जागृति के जरिए लोगों के मौत की ओर बढ़ते कदमों को रोकने की कोशिश कर रहे हैं।

हर पर्व को सामाजिक जागृति का जरिया बनाने वाले इकबाल-राधेश्याम का यह संबंध तो 30 साल पुराना है, लेकिन उन्होंने व्यसन मुक्ति अभियान सन् 1990 से शुरू किया। तब से रक्षा बंधन पर राखियों के जरिए, दीपावली पर पटाखों के जरिए और उत्तरायण पर पतंगों के जरिए यह अभियान निर्बाध गति से चल रहा है। इस वर्ष भी रक्षा बंधन पर्व को लेकर सरसपुर स्थित ‘गुप्ता रक्षा बंधन' में सामाजिक जागृति की महक घुली राखियां बन कर तैयार हैं। इकबालभाई बेहलीम और राधेश्याम गुप्ता दोनों ने संयुक्त रूप से अपील की कि रक्षा बंधन के पर्व पर हर बहन को अपने भाई से उपहार के रूप में ‘व्यसन मुक्ति' का संकल्प लेना चाहिए।

आइए तसवीरों के साथ जानते हैं इकबाल-राधेश्याम की जोड़ी के बारे में :

व्यावसायिक सम्बंध बना मित्रता

व्यावसायिक सम्बंध बना मित्रता

इकबाल बेहलीम मूलत: राजस्थान के हैं, जबकि राधेश्याम गुप्ता आगरा-उत्तर प्रदेश के हैं। वर्षों से हस्तशिल्प के कारीगर रहे परिवार में इकबाल को यह कारीगरी विरासत में मिली। बाद में उन्होंने इस कारीगरी को राखियों के निर्माण की तरफ मोड़ दिया। राधेश्याम गुप्ता से दोस्ती काफी पुरानी है।

राखियां बनाते थे इकबालभाई

राखियां बनाते थे इकबालभाई

पूर्व में राधेश्याम इकबालभाई के परिवार से राखियां बना कर बेचते थे। बाद में यह व्यवसायिक सम्बंध मित्रता में बदल गया। आज गुप्ता रक्षा बंधन फर्म इकबाल-राधेश्याम मिल कर चलाते हैं।

डॉ. पंकज शाह से मिली प्रेरणा

डॉ. पंकज शाह से मिली प्रेरणा

इकबाल बेहलीम को व्यसन मुक्ति अभियान की प्रेरणा गुजरात कैंसर सोसायटी के निदेशक डॉ. पंकज शाह से मिली। इकबालभाई के पिता को 40 वर्ष पूर्व सिगरेट पीने के कारण फेफड़े का कैंसर हुआ था। डॉ. शाह उनका इलाज कर रहे थे, लेकिन उनके पिता को बचाया नहीं जा सका।

पिता के निधन ने झकझोरा

पिता के निधन ने झकझोरा

पिता के निधन ने इकबालभाई को झकझोर कर रख दिया। तभी डॉ. शाह ने इकबालभाई को मशविरा दिया कि आप हस्तशिल्प के अच्छे कारीगर हैं। राखियां बनाते हैं, पतंग बनाते हैं। अपने व्यवसाय के साथ-साथ व्यसन मुक्ति का अभियान भी शुरू करें, जिससे कई लोगों की जिंदगी को नर्क से बचाया जा सके।

दो दशक से जारी अभियान

दो दशक से जारी अभियान

डॉ. शाह की प्रेरणा से 1990 में इकबालभाई ने रक्षा बंधन से ही इस अभियान की शुरूआत की। उनकी दुकान में वैसे तो तरह-तरह की राखियां हैं, परंतु खास तौर से व्यसन मुक्ति, एड्स जागृति व अन्य सामाजिक जागृति के मुद्दों से जुड़े नारे लिखी राखियों के लिए गुप्ता रक्षा बंधन मशहूर है।

संदेश देती राखियां

संदेश देती राखियां

व्यसन मुक्ति का संदेश देने वाली राखियों पर मुख्य रूप से ‘भाई बहन का अनोखा बंधन-व्यसन मुक्त तंदुरुस्त जीवन', ‘भाई-बहन का सच्चा प्यार-व्यसन मुक्त परिवार', ‘स्वस्थ व्यसन मुक्त देश-यह है राखी का संदेश', ‘बहना का भैया को कीमती आशीर्वाद-भैया बने व्यसन मुक्त सदा रहे तंदुरुस्त', ‘हैप्पी हैल्दी लाइफ-विदाउट एडिक्शन' नारे लिखे हुए हैं। इकबाल बेहलीम ने कहा कि ज्यादातर महिलाएं व्यसन मुक्ति का संदेश देने वाली राखियां खरीदना ही पसंद करती हैं।

कैंसर अस्पताल में राखी

कैंसर अस्पताल में राखी

इकबालभाई बताते हैं कि हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी राखियां सिविल अस्पताल परिसर स्थित कैंसर अस्पताल में पहुंचाई गईं। वहां ये राखियां कैंसर पीड़त बच्चों को बांधी गई। हाल ही में गुजरात कैंसर एवं अनुसंधान संस्थान में रक्षा बंधन पर्व मनाया गया। इस अवसर पर डॉ. शिलीन शुक्ला आदि भी उपस्थित थे।

साम्प्रदायिक सौहार्द की प्रतीक है जोड़ी

साम्प्रदायिक सौहार्द की प्रतीक है जोड़ी

सरसपुर के जिस इलाके में गुप्ता रक्षा बंधन नामक दुकान है, वह हिन्दू बहुल इलाका है। 2002 या उससे पहले भी हुए कई साम्प्रदायिक दंगों को देख चुके इकबालभाई कहते हैं कि उन पर कभी कोई आंच नहीं आई। वे यहां बेखौफ होकर काम करते हैं। तीन दरवाजा स्थित हनीफ लतीफ की गली में रहने वाले इकबालभाई और सरसपुर में ही रहने वाले राधेश्याम गुप्ता की इस जोड़ी को राज्य सरकार की ओर से सम्मानित भी किया जा चुका है।

English summary
Radheshyam Gupta and Iqbal Behlim are the trader of Rakhees. There Shop is located at Saraspur in Ahmedabad. They are added social awakening in him business of Rakhees.
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