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जानिए पुरी जगन्नाथ यात्रा के बारे में कुछ रोचक बातें

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पुरी। आज से विश्वप्रसिद्ध भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा शुरू होने जा रही है, जिसमें भाग लेने के लिए विश्व के कोने -कोने से लोग आते हैं। ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक समारोह की तैयारियों की समीक्षा भी कर चुके हैं। इस यात्रा के लिए सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए गए हैं।

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आइए जानते हैं भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा के बारे में कुछ खास बातें....

जगन्नाथ पुरी

जगन्नाथ पुरी

पुरी का श्री जगन्नाथ मंदिर भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित है। ये देश के चार धामों में से एक है। यह भारत के ओडिशा राज्य के तटवर्ती शहर पुरी में स्थित है। जगन्नाथ शब्द का अर्थ जगत के स्वामी होता है। इनकी नगरी ही जगन्नाथपुरी या पुरी कहलाती है।

ढोल, नगाड़ों, तुरही और शंखध्वनि...

ढोल, नगाड़ों, तुरही और शंखध्वनि...

  • यह वैष्णव सम्प्रदाय का मंदिर है।
  • इस मंदिर का वार्षिक रथ यात्रा उत्सव प्रसिद्ध है।
  • आषाढ़ माह की शुक्लपक्ष की द्वितीया तिथि को रथयात्रा आरम्भ होती है।
  • ढोल, नगाड़ों, तुरही और शंखध्वनि के बीच भक्तगण इन रथों को खींचते हैं।
  • बलरामजी- देवी सुभद्रा- भगवान जगन्नाथ

    बलरामजी- देवी सुभद्रा- भगवान जगन्नाथ

    रथयात्रा में सबसे आगे बलरामजी का रथ, उसके बाद बीच में देवी सुभद्रा का रथ और सबसे पीछे भगवान जगन्नाथ श्रीकृष्ण का रथ होता है,इसे उनके रंग और ऊंचाई से पहचाना जाता है।

    आस्था का मानक

    आस्था का मानक

    बलरामजी के रथ को 'तालध्वज' कहते हैं, जिसका रंग लाल और हरा होता है। देवी सुभद्रा के रथ को 'दर्पदलन' या ‘पद्म रथ' कहा जाता है, जो काले या नीले और लाल रंग का होता है, जबकि भगवान जगन्नाथ के रथ को ' नंदीघोष' या 'गरुड़ध्वज' कहते हैं। इसका रंग लाल और पीला होता है

     रथों का निर्माण

    रथों का निर्माण

    रथयात्रा के लिए जिन रथों का निर्माण किया जाता है उनमें किसी तरह की धातु का इस्तेमाल भी नहीं होता,ये सभी रथ नीम की पवित्र और परिपक्व काष्ठ (लकड़ियों) से बनाये जाते है, जिसे ‘दारु' कहते हैं। इसके लिए नीम के स्वस्थ और शुभ पेड़ की पहचान की जाती है, जिसके लिए जगन्नाथ मंदिर एक खास समिति का गठन करती है।

    10वें दिन होती है रथ वापसी

    10वें दिन होती है रथ वापसी

    जगन्नाथ मंदिर से रथयात्रा शुरू होकर पुरी नगर से गुजरते हुए ये रथ गुंडीचा मंदिर पहुंचते हैं। यहां भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और देवी सुभद्रा सात दिनों के लिए विश्राम करते हैं और फिर आगे की ओर प्रस्थान करते हैं। आषढ़ माह के दसवें दिन सभी रथ पुन: मुख्य मंदिर की ओर प्रस्थान करते हैं। रथों की वापसी की इस यात्रा की रस्म को बहुड़ा यात्रा कहते हैं।

Comments
English summary
The cart festival of Lord Jagannath, traditionally known as the Jagannath Rath Yatra, is more than 5,000 years old and marks the return of Lord Krishna to Vrindavan with his brother Balabhadra and sister Subhadra.
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