क्या है हरिद्वार और प्रयाग में होने वाले अर्धकुंभ का रहस्य?
आज से हरिद्वार में अर्धकुंभ मेले का पहला स्नान है जिसके लिए सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालुगण देवनगरी पहुंच चुके हैं। श्रद्धा के इस पावन पर्व के लिए इस समय हरिद्वार में काफी चाक-चौबंध व्यवस्था की गई है।
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आईये जानते हैं इस पावन पर्व के बारे में कुछ खास बातें नीचे के स्लाइडरों के जरिये...
हरिद्वार में कुम्भ का योग
जब मेष राशि में सूर्य और कुम्भ राशि में बृहस्पति प्रवेश करते हैं तब हरिद्वार में कुम्भ का योग बनता है।
बारहवें वर्ष में कुम्भ मेला
चारों धामों, बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री एवं यमुनोत्री के लिये प्रवेश द्वार के रूप में प्रसिद्ध हरिद्वार में ग्रह नक्षत्रों के विशेष स्थितियों में हर बारहवें वर्ष कुम्भ के मेले का आयोजन किया जाता है।
अर्ध कुंभ और कुंभ
नक्षत्रों, ग्रहों और राशियों के संयोग से इस कुम्भ यात्रा का योग 6 और 12 वर्षो में इन स्थानों पर बनता है।
प्रयाग और हरिद्वार में
अर्द्ध कुम्भ का पर्व केवल, प्रयाग और हरिद्वार में ही मनाया जाता है।
मोक्ष दायी
ग्रह और राशियों के संगम के अनुसार इन स्थानों पर स्नान करना मोक्ष दायी माना जाता है।
पौराणिक कथा
कहा जाता है कि जब सागर मंथन के दौरान समुद्र से अमृत निकला तो देवताओं और असुरों में उसे पाने के लिए झगड़ा होने लगा लेकिन इसी बीच इन्द्र पुत्र जयन्त ने धन्वन्तरि के हाथों से अमृत कुम्भ छीना और भाग खडा हुआ। इससे बौखलाकर दैत्य भी जयन्त का पीछा करने के लिये भागे। जयन्त 12 वर्षो तक कुम्भ के लिये भागता रहा।
हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन और नासिक
इस अवधि में उसने 12 स्थानों पर अमतृ का कुम्भ रखा। जहां-जहां कुम्भ रखा वहां-वहां अमृत की कुछ बुन्दें छलक कर गिर गई और वे पवित्र स्थान बन गये इसमें से आठ स्थान, देवलोक में तथा चार स्थान भू-लोक अर्थात भारत में है। यह चार स्थान है हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन और नासिक।
अर्द्धकुंभ का पहला स्नान आज
अर्द्धकुंभ का पहला स्नान आज 14 जनवरी को है। इसके बाद कई शाही स्नान होंगे। आठ फरवरी (मौनी अमावस्या), 12 फरवरी (वसंत पंचमी), 22 फरवरी (माघ पूर्णिमा), आठ मार्च (महाशिवरात्रि), सात अप्रैल (सोमवती अमावस्या), 15 अप्रैल (राम नवमी), 22 अप्रैल (चैत्र पूर्णिमा स्नान) और छह मई (कृष्ण पक्ष अमावस्या) को शाही स्नान होगा।