Inspirational Story: ज्ञान की कोई उम्र नहीं होती
नई दिल्ली। अक्सर ऐसा माना जाता है कि ज्ञान देने वाला बड़ा होता है और ज्ञान लेने वाला छोटा। ज्ञान की महत्ता की दृष्टि से यह बात सही हो सकती है, लेकिन रोजमर्रा की जिंदगी में इसे आयु से संबद्ध मान लिया जाता है। यह माना जाता है कि जो आयु में बड़ा होता है, वही ज्ञान दे सकता है और शिष्य हमेशा आयु में छोटा ही होगा। वास्तव में इस तथ्य में कोई सार नहीं है। ज्ञानी की कोई आयु नहीं होती। जो ज्ञान प्राप्त कर ले, वह ज्ञानी होता है और वह किसी को भी ज्ञान दे सकता है।
आज इसी से संबद्ध एक प्यारी सी कथा सुनते हैं
एक महात्मा जी थे। उन्होंने अथाह ज्ञान प्राप्त किया था, महान ग्रंथों का विषद अध्ययन किया था। ऐसा कोई प्रश्न सामने ना आया था, जिसका उत्तर उनके पास ना हो। कहीं-ना-कहीं इस बात का उन्हें घमंड भी था। एक बार महात्मा जी किसी गांव से गुजर रहे थे। उन्होंने देखा कि एक छोटा बच्चा दीया जलाकर मंदिर की तरफ जा रहा है। महात्मा जी का ज्ञान जाग्रत हुआ। उन्होंने सोचा कि बात का सिरा निकालूं और अपना प्रभाव यहां सब पर जमा लूं। उन्होंने बच्चे के पास जाकर कहा- बेटा! यह दीपक लेकर तुम कहां जा रहे हो? बच्चे ने कहा- मैं मंदिर में ज्योति लेकर जा रहा हूं। महात्मा जी ने कहा- क्या तुम जानते हो कि यह ज्योति कहां से आई है?
बच्चे ने दो पल सोचा और फट से फूंक मार कर दिया बुझा दिया
महात्मा जी ने सोचा था कि बच्चा ऐसे प्रश्न का उत्तर ना दे पाएगा और जाग्रत ज्योति की विवेचना कर वे सब पर अपना प्रभाव जमा लेंगे। उधर बच्चा तो बच्चा ठहरा, बाल बुद्धि का भी भला कोई तोड़ होता है? बच्चे ने दो पल सोचा और फट से फूंक मार कर दिया बुझा दिया। इसके बाद ठहाका मार कर बोला- स्वामी जी! कहां से आई थी, ये तो नहीं पता, पर देखिए, जहां से आई थी, वहीं चली गई।
बच्चे की बात सुनकर महात्मा हतप्रभ रह गए
बच्चे की बात सुनकर महात्मा जी हतप्रभ रह गए। इस एक वाक्य में कितना गूढ़ अर्थ छिपा था। ज्योति जहां से आई, वहीं चली गई। आत्मा, परमात्मा से जन्म लेती है और मृत्यु के उपरांत उसी में समा जाती है। महात्मा जी ने मन-ही-मन बच्चे और परमात्मा को धन्यवाद दिया और मुस्कुरा कर आगे चल दिए। आज उन्होंने एक छोटे से बच्चे से बहुत ही साधारण तरीके से वह ज्ञान पाया, जिसे पाने में उन्हें पूरी उम्र लग गई।
शिक्षा
दोस्तों, यही सत्य है। ज्ञान की कोई आयु नहीं होती। ज्ञान जब जहां से मिले, उसे ग्रहण करें। असली बात यह है कि ज्ञान प्राप्त होना चाहिए, चाहे वह कहीं से भी, किसी से भी मिले।
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