Inspirational Story: अंत निश्चित है अहंकार का
नई दिल्ली। मनुष्य की सबसे बड़ी कमी उसका अहंकार होता है। बड़ी ही अजीब बात है कि मनुष्य को जरा- सी प्राप्ति होते ही वह अहंकारी हो जाता है। अब यह प्राप्ति ज्ञान की हो, धन की हो या प्रभाव की, इन सबसे व्यक्ति में अहंकार का भाव पैदा हो जाता है। अहंकार आते ही व्यक्ति का व्यवहार बदल जाता है, वह दूसरों के साथ दुर्व्यवहार करने लगता है। यदि समय रहते वह अपने व्यवहार में सुधार ना करे तो इसी अहंकार के साथ व्यक्ति के पतन की राह भी खुल जाती है।
आज हम अहंकार के संबंध में महाभारत की एक कथा सुनते हैं-
महाभारत में महाबलशाली भीमसेन के बल से कौन परिचित नहीं है? ऐसा माना जाता है कि उनमें 8 हजार हाथियों के बराबर बल था। स्वयं भीम भी अपने बल और पराक्रम से ना सिर्फ परिचित थे, बल्कि उन्हें अपनी शक्ति पर अहंकार भी था। एक बार की बात है, भीम वन में भ्रमण कर रहे थे। उनके रथ के मार्ग पर एक बूढ़ा वानर बीचों- बीच बैठा था। भीम ने उसे भगाने की चेष्टा की, पर वह टस- से- मस नहीं हुआ। तब भीम ने उसे क्रोधित हाेते हुए मार्ग से हटने को कहा।
वानर ने कहा- आप महाबलशाली प्रतीत होते हैं
वानर ने कहा- आप महाबलशाली प्रतीत होते हैं। मेरी शक्ति क्षीण हो चुकी है। अब मैं एक जगह से दूसरी जगह हटने में असमर्थ हूं। मेरी पूंछ ही आपके मार्ग में बाधक हो रही है। कृपया आप ही कष्ट उठाकर मेरी पूंछ एक किनारे खिसका दीजिए। वानर की बात सुनकर भीम उसे अपशब्द कहते हुए रथ से उतरे और पूंछ हटाने लगे। इसके बाद कुछ ऐसा हुआ कि भीमसेन हतप्रभ रह गए। अपनी पूरी शक्ति लगाकर भी वे वानर की पूंछ रत्ती भर भी हिला ना पाए। भीम समझ गए कि वानर कोई साधारण प्राणी नहीं है। उन्होंने तुरंत वानर को प्रणाम कर उनका परिचय मांगा। भीमसेन के व्यवहार से प्रसन्न होकर वानर अपने असली रूप में प्रकट हुए। वे स्वयं हनुमान जी थे और भीमसेन का घमंड तोड़ने आए थे। भीम ने अपने अपराध की क्षमा मांगी और उनका आशीर्वाद लिया।
शिक्षा
दोस्तों, यही जीने का सही तरीका है। यदि प्रकृति या किस्मत ने आपको किसी तरह का विशेष उपहार दिया है, तो उस पर प्रसन्न रहिए, पर घमंड ना कीजिए क्योंकि अहंकार कभी- ना- कभी टूटता अवश्य है।