Inspirational Story: रूप से अधिक महत्वपूर्ण होते हैं गुण, पढ़ें ये ज्ञानवर्धक कहानी
नई दिल्ली। संसार में रूप के महत्व को कौन नकार सकता है? सुंदरता का आकर्षण इतना तीव्र होता है कि इस भौतिक जगत में उसे चुम्बक की संज्ञा दी गई है। संसार के व्यवहार पर दृष्टि डालें, तो इस मामले में कोई दो राय नहीं हो सकता कि रूप का महत्व सर्वत्र है। यह भी माना जाता है कि कई बार रूप गुणों पर भी भारी पड़ जाता है।
कभी यह तक देखने को मिलता है कि गुणी व्यक्ति को पीछे छोड़कर अयोग्य व्यक्ति वह स्थान पा लेता है, जिसके योग्य वह वास्तव में नहीं होता है। कहने का तात्पर्य यही है कि संसार में रूप सबके सिर चढ़कर बोलता है। लेकिन क्या वास्तव में रूप, गुणों से अधिक महत्वपूर्ण हैं?
क्या सुंदरता के आगे गुणों का कोई मोल नहीं होता? आज की कथा से जानते हैं-
एक सेठ जी थे, अपार धन के स्वामी थे। अपनी एकलौती पुत्री के विवाह हेतु योग्य वर की खोज कर रहे थे। काफी खोज बीन के बाद 2 युवकों पर बात अटक गई। एक युवक अत्यंत रूपवान था, जिससे हर लड़की विवाह करना चाहती थी।सेठ जी की बेटी को वही सही लग रहा था। दूसरा युवक देखने में साधारण था, पर अत्यंत योग्य था। यह युवक सेठ जी को बहुत पसंद आ गया था। इसी मुद्दे पर पिता और बेटी में असहमति हो गई थी। सेठ जी परेशान थे कि बेटी को किस तरह बात समझाई जाए। सेठ जी ने एक संत महाराज से दीक्षा ली हुई थी। संयोग से वे पधारे हुए थे और शहर के बाहर आश्रम में ठहरे हुए थे। सेठ जी बेटी समेत उनके पास गए और सारी बात बताई। संत के कहा कि सेठ! तुम्हारी समस्या का समाधान मैं कल करूँगा। कल तुम दोपहर में कन्या समेत मेरे पास आना। कल तुम्हें दो काम करने होंगे। शहर की सीमा समाप्त होते ही वाहन छोड़ देना और बेटी समेत पैदल आना।दूसरी बात, तुम रास्ते मे पीने के लिए पानी सोने की रत्न जड़ित सुराही में लाना।
संत ने कहा- बेटी! उधर देखो, एक काली मटकी रखी है
दूसरे दिन सेठ अपनी बेटी के साथ पैदल चल पड़े। गर्मी के दिन थे और तपती दुपहरी में पैदल चलकर बेटी की जान आफत में पड़ रही थी। उस पर जब प्यास लगती तो सुराही का पानी ऐसा गर्म हो रहा था कि गले से न उतरता।दोनों किसी तरह आश्रम पहुंचे और निढाल होकर एक तरफ पड़ गए। उनकी हालत देखकर संत ने कहा- बेटी! उधर देखो, एक काली मटकी रखी है।उसमें शीतल जल है, जाकर अपनी प्यास बुझा लो। सेठ जी और उनकी बेटी लपक कर मटकी तक पहुंचे और जी भरकर पानी पिया, हाँथ, मुंह धोए। अब संत ने हंसते हुए कहा- देखा बेटी! सोने की सुराही कितनी सुंदर थी, पर जान में जान आई इस काली कुरुप मटकी के जल से। यही अंतर है रूप और गुणों में। जीवन यात्रा बड़ी लंबी है, रूप की आयु बहुत कम। आयु के साथ रूप घटता जाता है, पर गुण बढ़ते जाते हैं। जीवन पथ पर कभी भी कष्टों का किसी भी रूप में सामना हो सकता है। उस समय गुण काम आते हैं, रूप नहीं। अब सेठ जी की बेटी बात को समझ चुकी थी।
शिक्षा
दोस्तों, जीवन में रूप के महत्व को कम नहीं आंका जा सकता, पर वही सब कुछ नहीं होता। जब बात गुणों से तुलना की हो, तो रूप का पलड़ा सदा ही हल्का रहता है।
यह पढ़ें: Inspirational Story: गांधी जी ने बताया वेशभूषा का महत्व