Indira Ekadashi 2020: पितरों की मुक्ति के लिए करें इंदिरा एकादशी व्रत
नई दिल्ली। पितरों के अंतिम कर्म में यदि किसी प्रकार की कोई कमी या त्रुटि रह जाती है या वे स्वयं किसी पापकर्म में भागीदार रहे हैं तो वे मोक्ष के लिए भटकते रहते हैं। पितरों को कष्ट भोगना पड़ता है और इस कारण वे अपने वंशजों को भी चैन से नहीं रहने देते हैं। पृथ्वी पर निवास कर रहे उनके वंशजों को आर्थिक, पारिवारिक और सामाजिक जैसी अनेक परेशानियां भोगनी पड़ती हैं। यदि आपके जीवन में भी ऐसा कुछ चल रहा है तो पितृपक्ष में आने वाली इंदिरा एकादशी का व्रत आपको अवश्य करना चाहिए। यह एकादशी 13 सितंबर 2020, रविवार को आ रही है।
कृष्ण पक्ष की एकादशी इंदिरा एकादशी कहलाती है
आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी इंदिरा एकादशी के नाम से जानी जाती है। पितृपक्ष में आने के कारण इस एकादशी का महत्व अधिक है। मान्यता है कि यदि कोई पूर्वज जाने-अनजाने हुए अपने पाप कर्मों के कारण अपने कर्मों का दंड भोग रहे हैं तो उनके वंशज इस एकादशी पर विधिपूर्वक व्रत कर इसका पुण्यफल पितरों को दे दें तो पितरों को मोक्ष मिल जाता है और मृत्यु के बाद व्रती भी बैकुंठ में निवास करता है।
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इंदिरा एकादशी व्रत कथा
भगवान श्रीकृष्ण धर्मराज युधिष्ठिर को इंदिरा एकादशी का महत्व बताते हुए कहते हैं कि यह एकादशी समस्त पाप कर्मों का नाश करने वाली है। इस एकादशी को करने वाले व्रती के साथ-साथ उनके पितरों की भी मुक्ति हो जाती है। हे राजन! इंदिरा एकादशी की जो कथा मैं तुम्हें सुनाने जा रहा हूं। इसके सुनने मात्र से ही वाजपेय यज्ञ के समान फल की प्राप्ति होती है। कथा कहते हुए श्रीकृष्ण बताते हैं कि सतयुग में महिष्मति नाम की नगरी में राजा इंद्रसेन राज करते थे। वे बड़े धर्मात्मा थे और उनकी प्रजा सुख चैन से रहती थी। राज्य में धर्म कर्म के सारे कार्य अच्छे से किए जाते थे। एक दिन नारद जी इंद्रसेन के दरबार में जाते हैं। इंद्रसेन उन्हें प्रणाम करते हुए उनके आने का कारण पूछते हैं। तब नारद जी कहते हैं मैं तुम्हारे पिता का संदेश लेकर आया हूं जो इस समय पूर्व जन्म में एकादशी का व्रत भंग होने के कारण यमराज के निकट दंड भोग रहे हैं। नारदजी के मुख से इंद्रसेन अपने पिता की पीड़ा को सुनकर व्यथित हो गए और पिता के मोक्ष का उपाय पूछने लगे। तब देवर्षि ने कहा कि राजन तुम आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का विधिपूर्वक व्रत करो और इस व्रत के पुण्य को अपने पिता के नाम दान कर दो। इससे तुम्हारे पिता को मुक्ति मिल जाएगी। राजा इंद्रसेन ने नारदजी द्वारा बताई विधि के अनुसार एकादशी व्रत किया। जिससे उनके पिता की आत्मा को शांति मिली और मृत्यु के बाद इंद्रसेन को भी मोक्ष की प्राप्ति हुई।
पूजा विधि
इंदिरा एकादशी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करने के बाद सूर्य देवता को अर्घ्य दें। भगवान विष्णु का ध्यान करके व्रत का संकल्प करें। पितरों को याद करते हुए भगवान विष्णु की मूर्ति या तस्वीर पर गंगाजल, पुष्प, रोली और अक्षत चढ़ाकर भोग लगाएं। यह ध्यान रखें कि भगवान के भोग में तुलसी की पत्ती जरूर रखें। इसके बाद भगवान विष्णु की आरती और विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें। पूजा करने के बाद पितरों का श्राद्ध करें। ब्राह्मणों को भोजन करवाकर यथाशक्ति दान दें।
एकादशी तिथि कब से कब तक
- एकादशी प्रारंभ 13 सितंबर प्रातः 4.13 बजे से
- एकादशी पूर्ण 14 सितंबर तड़के 3.15 बजे तक
- एकादशी का पारण: 14 सितंबर को दोपहर 12.59 बजे से शाम 3.27 बजे तक
एकादशी श्राद्ध का महत्व
पितृ पक्ष में इंदिरा एकादशी के व्रत का महत्व तो है ही, इस दिन एकादशी का श्राद्ध भी बहुत महत्वपूर्ण होता है। जिन लोगों के पूर्वजों की मृत्यु एकादशी को होती है, माना जाता है कि वे सीधे भगवान विष्णु के परमधाम बैकुंठ को जाते हैं। इस एकादशी के दिन श्राद्ध अवश्य करना चाहिए। एकादशी के श्राद्ध को शास्त्रों में सर्वश्रेष्ठ बताया गया है।
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